'भारतरत्न ' सम्मान है या ' लॉलीपॉप '

'भारतरत्न ' सम्मान है या ' लॉलीपॉप '

स्वतंत्र प्रभात 

केंद्र सरकार द्वारा बीस दिन में पांच महापुरुषों को ' भारतरत्न ' सम्मान देने की घोषणा से एक बात तो साफ़ हो गयी है कि सत्तारूढ़ भाजपा राजनीतिक चालें चलने में कांग्रेस समेत दूसरी तमाम राजनीतिक पार्टियों से कोसों आगे निकल गयी है ।  पिछले महीने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और फिर पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को ' भारतरत्न ' देने की घोषणा के बाद मौनी अमावस्या के दिन पूर्व प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिम्हाराव ,चौधरी चरण सिंह और एस स्वामीनाथन को ' भारतरत्न ' देने की घोषणा कर प्रमाणित कर दिया है कि  सरकार ने ' भारतरत्न' सम्मान को लॉलीपॉप में तब्दील कर दिया है। कहने को भारत सरकार के ये फैसले राजनीति से परे हैं क्योंकि एक लालकृष्ण आडवाणी को छोड़कर जिन चार अन्य नेताओं को ' भारतरत्न ' सम्मान दिया गया है वे दूसरे दलों के नेता हैं।


मैंने पिछले माह 24  जनवरी को ही ' भारतरत्न' सम्मान के बारे में एक लेख लिखा था। मैंने कहा था कि अफ़सोस इस बात का है कि  ये फैसला लेने में सरकार ने न सिर्फ दस वर्ष लगा दिए बल्कि इस पुरस्कार को भी 'राम  मंदिर ' मुद्दे की तरह एक चुनावी तुरुप की तरह इस्तेमाल किया।
' भारत -रत्न' मिलता नहीं है ,इसे जीता जाता है। बहुत कम लोग हैं जो इसे जीते-जी हासिल कर सके ,बहुत से लोगों को ये मरणोपरांत दिया गया ,इसमें पाने वालों का कोई दोष नहीं है,सारा दोष देने वालों का है। चूंकि ' भारत -रत्न ' के लिए चयन का कोई स्थापित मापदंड नहीं है इसलिए इसमें अक्सर देर हो जाती है ,बल्कि अब इसे लॉलीपॉप की तरह इस्तेमाल भी किया जाने लगा है।   मौजूदा सरकार ने भी पिछले पांच साल में किसी को ' भारत -रत्न ' सम्मान नहीं दिया। अब दे रही है जब लोकसभा चुनाव सिर पर है और विपक्ष देश में जातीय जनगणना का मुद्दा लेकर आगे बढ़ा है। मजे की बात ये है कि  जातीय जनगणना का मुद्दा उठाने वाले बिहार के ही दलित नेता कर्पूरी ठाकुर का नाम इसके लिए चुना गया ,क्योंकि 24  जनवरी को उनकी जन्म शताब्दी है। ये सम्मान अब स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के तो किसी काम का नहीं है किन्तु भाजपा के लिए चुनाव में बहुत काम आएगा।


केंद्र सरकार ने 9  फरवरी 2024 को जिन तीन नेताओं को ' भारतरत्न ' से सम्मानित करने की घोषणा की उनके  जरिये भी भाजपा उत्तर प्रदेश में विपक्ष को कमजोर करने कि साथ ही दक्षिण में अपने लिए  कामयाबी  की दो नयी सीढ़ियां लगाने में  सफल होती दिखाई दे रही है।क्योंकि कर्पूरी ठाकुर को ' भारतरत्न' देते ही भाजपा को बिहार में नीतीश कुमार और बिहार की सरकार मिल गयी और चौधरी चरण सिंह को भारतरत्न देते ही चौधरी साहब कि पौत्र जयंत  चौधरी की पार्टी  आरएलडी का समर्थन भी मिल गया। दक्षिण में स्वर्गीय पीव्ही नरसिम्हाराव और वैज्ञानिक एस स्वामीनाथन के भक्त  भी भाजपा को अपना आशीर्वाद दे सकते हैं। भाजपा के लिए ये बेहत सस्ता सौदा है। दुर्भाग्य  ये है कि जिस तरह से ' भारतरत्न ' सम्मान चुनाव से एन  पहले दिए जा रहे हैं उससे इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान की सुचिता  और गरिमा ख़ाक में मिल गयी है।
आज  की भाजपा कि नेताओं ने भाजपा संस्थापक श्री लालकृष्ण आडवाणी को पिछले दस साल में बीसियों बार अपमानित किया ।  हाल ही में 22  जनवरी 24  को भी अयोध्या में रामलला कि विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से भी उन्हें दूर रखा ,लेकिन जब पता चला  कि  उनकी इस हरकत से पार्टी में गहन असंतोष है तो आडवाणी जी को ' भारतरत्न ' देने की घोषणा कर दी ,हालाँकि  भाजपा को अपनी भूल सुधार का कोई फायदा होने वाला नहीं है। भाजपा में जहाँ एक और भक्तिभाव हिलोरें ले रहा है वहीं दूसरी और असंतोष कि बीज भी अंकुरित हो चुके हैं। ये अंकुर पनपेंगे या नहीं ये कहना कठिन है।


भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने संसद में आने  वाले  आम  चुनाव  में भाजपा को 370 सीटें जितने और भाजपा गठबंधन को 400  सीटें दिलाने का ऐलान कर अपने गले में खुद फंदा  डाल  लिया है ।  भाजपा को इस लक्ष्य तक पहुँचने कि लिए ईव्हीएम कि साथ ही चुनाव मैदान में खड़े छोटे-बड़े दलों की सहायता  की भी जरूरत  है। भाजपा ने बिहार में कर्पूरी ठाकुर को ' भारतरत्न ' देकर जदयू का समर्थन हासिल कर लिया। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने आरएलडी का समर्थन हासिल करने कि लिए चौधरी चरण सिंह को ' भारतरत्न ' दे दिया।लेकिन झारखण्ड में उसे मुंह की खाना पड़ी। दिल्ली में भी भाजपा अभी तक आम आदमी पार्टी को अपने सामने झुका नहीं पायी है। भाजपा दक्षिण में भी पीव्ही नरसिम्हाराव और स्वामीनाथन कि जरिये नए साथी हासिल करना चाहती है। भाजपा को आजकल  में नए साथी मिल भी जायेंगे लेकिन क्या वे भाजपा कि लक्ष्य को पूरा  करने में सहायक साबित होंगे ये कहना कठिन है। 


भाजपा को सत्ताच्युत  करने कि लिए चुनाव मैदान में खड़े तमाम राजनीतिक दल भाजपा नेतृत्व कि कौशल  का लोहा माने या न माने किन्तु मै मोदी-शाह की जोड़ी का लोहा मानता  हूँ ,इसका असहाय ये बिलकुल नहीं है कि मै भी नीतीश कुमार या जयंत चौधरी की तरह भाजपा की गोदी में बैठ जाऊंगा। मेरा  अपना रास्ता  है और नेताओं का रास्ता  अलग  है। भाजपा तीसरी  बार सत्ता हासिल करने कि लिए कुछ  भी कर सकती  है ।  किसी  भी चीज  का इस्तेमाल  कर सकती  है ।  ' भारतरत्न ' तो उसके  लिए बहुत  छोटी  चीज  है। '

भारतरत्न ' चूंकि कोई  जीती -जगती चीज नहीं है इसलिए वो अपने दुरूपयोग कि खिलाफ बोल नहीं सकता। अपने आपको लॉलीपॉप बनने    से नहीं रोक  सकता ,लेकिन जनता  इसे रोक सकती  है।
भारत की नयी पीढ़ी   जो इतिहास पढ़ेगी  उसमें   भाजपा कि दस साल कि कार्यकाल  में घटिया सियासत  कि वे तमाम अध्याय  भी पढेगी  जो कि इससे पहले के  इतिहास में नहीं है। कांग्रेस कि छह दशक  के इतिहास में भ्रष्टाचार  और बेईमानी के भी अनेक उदाहरण मिलेंगे ,वे आजाद  भारत की राजनीतिक  इतिहास कि अभिन्न  अंग  भी होने किन्तु वे 2014  से 2024  तक के इतिहास कि मुकाबले  कम  गणित होंगे। पहले कि जमाने  में राजनितिक इतिहास सत्ता प्रतिष्ठान  अपनी  पसंद  के लेखकों  से लिखवाने    में कामयाब  हुए  किन्तु अब जमाना  बदल  गया है । भाजपा का यही दुर्भाग्य है कि वो अपनी  पसंद  का इतिहास नहीं लिखवा  सकती  क्योंकि अब इतिहास लेखक  सत्ता प्रतिष्ठान  से बाहर  बड़ी  संख्या  में हैं। 
भाजपा के राज में बल्कि कहिये कि  मोदी राज में अब तक क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर,स्वर्गीय मदन मोहन मालवीय ,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ,पूर्व राष्ट्रपति प्रण। मुखर्जी ,भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को ' भारत रत्न ' से नवाजा गया। भारतरत्न सम्मान पाने वाले अधिकांश इसके पात्र हैं,लेकिन कुछ को लेकर सवाल उठाये गए ,उठाये जाते रहेंगे ।  कुछ को उनके समर्थकों  के मांगने पर भी 'भारत रत्न' नहीं मिला। कुछ को बिना मांगे मिल गया। कांग्रेस के तो लगभग हर  प्रधानमंत्री को ये सम्मान मिला या उन्होंने खुद ले लिए भगवान जाने।
आजादी के बाद सबसे पहले 1954  में ' भारत रत्न ' सम्मान देने की व्यवस्था की गई ।  पहले भारतरत्न बने देश के अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी ,फिर राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन ,चंद्रशेखर वेंकटरमन ,भगवानदास ,एम् विश्वेसरैया ,जवाहरलाल नेहरू
बल्ल्भ पंत,धोडो केशव बर्बे ,विधान चंद रे,पुरषोत्तम टंडन ,डॉ राजेंद्र प्रसाद ,जाकिर हुसैन ,पांडुरंग वामन काणे और लाल बहादुर शास्त्री को ये सम्मान मिला । शास्त्री के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी पहली महिला नेत्री थीं जिन्हें ये सम्मान मिला।  श्रीमती गाँधी के बाद बीवी गिरी ,के कामराज ,मदर टेरेसा , बिनोवा भावे ,खान अब्दुल गफ्फार खान,एमजी रामचंद्रन ,डॉ भीमराव आंबेडकर, नेल्शन मंडेला, राजीव गाँधी ,सरदार बल्लभ भाई पटेल , मोरारजी  देसाई ,अबुल  कलम आजाद ,जे आरडी  टाटा, सत्यजित रे,गुलजारी लाल नंदा को भारत रत्न सम्मान दिया गया।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अरुणा आसिफ अली,एपीजे अब्दुल कलाम आजाद ,एसबी सुबलक्ष्मी ,चिदंबरम सुब्रमणियम,जय प्रकाश नारायण ,अमृत्य सेन ,गोपी नाथ बोरदोलोई ,संगीतज्ञ पंडित रविशंकर,लता मंगेशकर ,बिस्मिल्लाह खान ,भीमसेन जोशी ,सीएन आर राव को भारत रत्न सम्मान दिया गया। कोई आगे ,कोई पीछे ये सब चलता रहा । आज भी चल रहा है ।
मै पहले भी कह  चुका हूँ कि सरकार अपनी सुविधा और सूझबूझ से भारतरत्न चुनती है ।  सरकार की भी विवशता है। भारत भूमि है ही रत्नगर्भा ।  यहां एक खोजिये दस रत्न मिल जायेंगे। बहरहाल ये सिलसिला जारी है और चलते हुए स्वामीनाथन  तक आ गया है।  जैसे हिन्दुओं को राम मंदिर देकर मुदित किया गया वैसे ही कर्पूरी ठाकुर को ' भारतरत्न ' देकर दलितों और महादलितों को खुश किया गय।  चौधरी  चरण सिंह को भारतरत्न देकर जाटों  को खुश  किया जा रहा है।  राव  और स्वामीनाथन को देकर  दक्षिण कि उच्चवर्गों  को फांसने  की कोशिश  की जा रही है। । कर्पूरी ठाकुर,राव साहेब,स्वामीनाथन  की आत्मा को इससे कोई अंतर् पड़ने वाला नहीं है। वे जहाँ भी होंगे सरकार के फैसले पर मुस्करा रहे होंगे। उन्हें इस फैसले के पीछे का गणित भी समझ आ गया होगा।मुस्करा तो लालकृष्ण आडवाणी भी रहें हैं।
बहरहाल जो हुआ सो अच्छा हुआ। केंद्र सरकार के इस निर्णय का पुन: स्वागत और स्वर्गीय पीव्ही नरसिम्हाराव ,चौधरी चरण सिंह और स्वामीनाथन  के परिजनों तथा उत्तर प्रदेश  और देश के जाटों और बड़े लोगों को भी बधाई।मै फिर कहता हूँ कि  ' तेल देखिये और तेल की धार ' देखिये। अभी तो राजनीतिक दलों को और विपक्षियों  को ही नहीं बल्कि मतदाताओं  को भी बहुत से लॉलीपॉप बांटे  जायेंगे।

@ राकेश अचल

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