चुनाव हारने के बाद क्या केशव मौर्य की प्रासंगिकता भाजपा मैं बनी रहेगी?

चुनाव हारने के बाद क्या केशव मौर्य की प्रासंगिकता भाजपा मैं बनी रहेगी?

चुनाव हारने के बाद क्या केशव मौर्य की प्रासंगिकता भाजपा मैं बनी रहेगी?


स्वतंत्र प्रभात

प्रयागराज ब्यूरो

दया शंकर त्रिपाठी की रिपोर्ट।

लोकतंत्र में कहा जाता है कि किसी भी नेता की अहमियत और प्रासंगिकता तभी तक रहती है जब तक वह जनता में लोकप्रिय और अपनी चुनावी जीत बरकरार रखता है ।इसमें कोई नेता न तो पैसे से बड़ा माना जाता है न ही जाति से और न ही अधिक दिनों तक बड़े नेताओं की गणेश परिक्रमा से। बल्कि किसी भी नेता की स्वीकारिता तथा उसका अस्तित्व उसके दल और जनता में तब तक बना रहता है 

जब तक वह जनता में लोकप्रिय रहता है और चुनाव में कम से कम अपनी जीत लगातार सुनिश्चित किए रहता है उत्तर प्रदेश के  विधानसभा के चुनाव २०२२ में अनेक बड़े नेता धराशाई हुए और अनेक नए चेहरे रातो रात बड़े नेताओं को चुनाव हराकर प्रदेश में चर्चित हो गए हैं। उसी में से भारतीय जनता पार्टी के एक कद्दावर नेता तथा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जी भी हैं केशव प्रसाद मौर्य बहुत ही जमीनी नेता और संघर्ष से ऊपर उठे थे ।

 विश्व हिंदू परिषद से राजनीति शुरू किए और प्रचारक से लेकर लोकसभा सदस्य का चुनाव जीत कर अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा लिए थे ।इसमें कोई शक नहीं वह बहुत ही मेहनती और संघर्षशील नेता के तौर पर प्रयागराज जनपद मैं मान्य थे ।2017 में हुए प्रदेश अध्यक्ष उनके नेतृत्व में उनके प्रदेश अध्यक्ष  नेतृत्व के कार्यकाल में भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ प्रदेश में चुनाव जीती थी 

 वह मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदारों में से भी एक थे लेकिन भारतीय जनता पार्टी के हाईकमान तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपनी पकड़ मजबूत  रखने वाले गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री का पद पाने में सफल रहे और केशव प्रसाद मौर्य को उप मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी के उच्च कमान ने संतुष्ट करने की कोशिश की लेकिन मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की तल्खी समय-समय पर बराबर दिखाई पड़ती थी ।

○5 वर्ष बाद 2022 में जब विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तो  योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को भी हाईकमान के निर्देश पर चुनाव मैदान में उतरना पड़ा जबकि इसके पूर्व इन लोगों को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा परिषद में चुनाव कर लिया गया था और सीधे यह जनता के बीच में नहीं गए थे ।

 केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर की लोकसभा की सीट 2014 में लड़कर प्रचंड बहुमत से जीते थे और महंत योगी आदित्यनाथ पांचवी बार गोरखपुर से लगातार चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य हुए थे मुख्यमंत्री बनने के पूर्व योगी आदित्यनाथ कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़े थे जबकि केशव प्रसाद मौर्य लोकसभा चुनाव लड़ने के पूर्व सिराथू विधानसभा जो उनका गृह क्षेत्र था दो बार चुनाव लड़ कर विधानसभा में पहुंच चुके थे।

 लेकिन 22के चुनाव में दोनों को अपने अपने गृह जनपद की सीट पर चुनाव लड़ने के लिए हाईकमान का टिकट मिला और दोनों व्यक्ति को मैदान में आना पडा।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां पूरे प्रदेश में चुनावी दौरा करते रहे और अपने क्षेत्र में बहुत ही कम समय वे पर्चा दाखिल करने के बाद दे पाए लेकिन गोरखपुर में गोरक्षा पीठ के पीठाधीश्वर होने के कारण इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें चुनाव जीतने में कोई बहुत कठिनाई नहीं हुई और लाखों ओट से चुनाव जीत गए लेकिन केशव प्रसाद मौर्य की समाजवादी पार्टीने ऐसी किलेबंदी की जिसको वह समझ नहीं पाए और अधिक समय तक वह भी प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवार को जिताने में लगे रहे।

○ उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जमीनी हकीकत समझ नहीं पाए और उनके हाथ से उनकी सीट फिसल गई और वह एक ऐसे नव सीखिए महिला से चुनाव हार गए जो इसके पूर्व में कभी चुनाव लड़ी  लड़ी थी ना तो उसका क्षेत्र में सिवाय इसके कि वहां की बहू थी जीत गई। इतना जरूर था की अपना दल के संस्थापक डॉक्टर सोनेलाल पटेल की फायर ब्रांड लड़की के रूप में जानी जाती थी लेकिन पारिवारिक फूट होने के कारण पटेल समुदाय अपना दल सोनेलाल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को नेता मान बैठा था जिनका भारतीय जनता पार्टी से लगातार  गठबंधन था 

जबकि अपना दल  कमेरा वादी की अध्यक्ष डॉक्टर सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल तथा उसकी महामंत्री डॉक्टर पल्लवी पटेल थी जिन्हें चुनाव में अब तक कोई सफलता नहीं मिली थी और वे अपने दल के स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही थी। इसी बीच अनुप्रिया पटेल के अस्तित्व को कम करने के लिए और पटेल समुदाय को अपने पाले में खींचने के लिए अखिलेश यादव ने एक दांव लगाया अपना दल का कमेरा वादी पार्टी की अध्यक्ष कृष्णा पटेल से अपने गठबंधन में शामिल करउन्हे और उनकी बेटी पल्लवी पटेल को सिराथू निर्वाचन क्षेत्र से केशव प्रसाद मौर्य उप मुख्यमंत्री के सामने चुनाव लडाने की घोषणा कर दी

 डॉक्टर पल्लवी पटेल जो एक बहुत ही जुझारू  फायर ब्रांड वक्ता मानी जाती है पहले तो वह इतनी बड़ी हस्ती के सामने चुनाव लड़ने में झिझक  रही थी लेकिन अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष समाजवादी पार्टी के समझाने पर वह मैदान में उतर गई और क्षेत्र में डेरा डाल दिया। उनका भाषण जो भी सुना  बिना प्रभावित हुए नहीं रहा उन्होंने केशव  के विरुद्ध इतनी कसकर के लामबंदी  क्षेत्रीय लोगों की कर दी कि उसको उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भांप ही नहीं पाए जबकि उनके चुनाव में पूरे प्रदेश और मध्य प्रदेश तक से कार्यकर्ता डेरा डाले थे। 

○जिनका संपर्क उस क्षेत्र के लोगों से सीधे ना होकर  केवल भीड़ तंत्र के रूप में दिखाई पड़ा ।और चुनाव बहुत ही हाई-फाई और मंहगा साबित हुआ। इसको भी देख कर वहां की जनता को नाराजगी हुई कि बाहरी लोग आकर के क्या यहां मौर्य को जीता पाएंगे ।उनका स्थानीय लोगों पर कोई विश्वास नहीं है ।

○इसका संकेत उनके चुनाव में नाम नेशन के समय में ही दिखाई पड़ गया था और जगह-जगह  उनका विरोध हुआ था बताते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष होने के बाद सिराथू क्षेत्र में 5 बरस तक कभी दिखाई नहीं दिए और बाहर बाहर ही पार्टी के कार्य में लगे रहे और प्रयागराज जनपद में जहां पर उनका एक दूसरा आवास भी है उस जनपद में भी ज्यादा व्यस्त  रहे।

जब भी आए  लेकिन उनको यह पूर्ण विश्वास था कि वह तो उनका गृह क्षेत्र है उनकी नाराजगी को दूर कर लेंगे पार्टी की अंदरूनी खींचतान स्वामी प्रसाद मौर्य जो समुदाय के कद्दावर नेता है l4 वर्ष तक लगातार मंत्री पद पर रहते हुए अंतिम चरण में समाजवादी पार्टी का दामन थाम कर के और समाज में फूट डालने में का प्रयास किए ।उसका भी असर केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव में दिखाई पड़ गया और केशव प्रसाद मौर्य जिनके क्षेत्र में प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री तक नेसभाएं की इसके बावजूद भी उनका जादू नहीं चल पाया और वे 7 हजार से अधिक मतों से चुनाव राजनीति में पहला कदम रखने वाली डॉक्टर पल्लवी से हार गए ।

जिस पल वि पटेल को प्रदेश में कोई विशेष तौर पर जानते नहीं थे रातों-रात एक स्टार और मजबूत नेता के रूप में उभर कर सामने आ गई। राजनीतिक पंडितों का अप कहना है कि क्या केशव प्रसाद मौर्य की प्रासंगिकता अभी बीजेपी में बनी रहेगी या नहीं यह तो समय बताएगा लेकिन मां और समाज के दो दिग्गज नेता एक समाजवादी पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य दूसरे भारतीय जनता पार्टी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य दोनों चुनाव अपने अपने क्षेत्र से हार चुके हैं।

सवाल राजनीति में यह भी उठ रहा है कि क्या इस चुनाव में मौर्य समुदाय की राजनीति हाशिए पर चली गई। वह केशव प्रसाद मौर्य हो या स्वामी प्रसाद धर्म सिंह सैनी हो अथवा बाबूराम कुशवाहा सब के सब जनता की राजनीति में 2022 में असफल साबित हो गएहैं।
 

Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel