शाबास इरशाद वाली ,शाबास

शाबास इरशाद वाली ,शाबास

भारतीय पुलिस सेवा के 2004 बैच के अधिकारी इरशाद वाली ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ऊपर डंडा उठाया ,लेकिन गनीमत है की मारा नहीं .इस साहस के लिए मै इरशाद का मुरीद हो गया हूँ.मध्यप्रदेश में तैनात 43 साल के इरशाद वाली उन गिने चुने आईपीएस अफसरों में से हैं जो अपने आपको मूलत:सिपाही

भारतीय पुलिस सेवा के 2004 बैच के अधिकारी इरशाद वाली ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ऊपर डंडा उठाया ,लेकिन गनीमत है की मारा नहीं .इस साहस के लिए मै इरशाद का मुरीद हो गया हूँ.मध्यप्रदेश में तैनात 43 साल के इरशाद वाली उन गिने चुने आईपीएस अफसरों में से हैं जो अपने आपको मूलत:सिपाही समझते हैं और सिपाही की ही तरह व्यवहार करने में कोई शर्म महसूस नहीं करते .उनकी लाठी के समाने सब बराबर हैं .

मध्य्प्रदेश की राजधानी भोपाल में डीआईजी पद पर तैनात इरशाद वाली ने गोविंदपुरा में सरकार के एक फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ऊपर न सिर्फ पानी की बौछार कराई बल्कि उनके ऊपर अपनी लाठी भी तानी क्योंकि दिग्विजय सिंह के नेत्रियव में कांग्रेसी कार्यकर्ता पुलिस द्वारा खड़े किये गए अवरोध को टायडने की कोशिश कर रहे थे .वाली ने इस दुःसाहस के बाद दिग्विजय सिंह समेत 200 कांग्रेसियों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया .

क़ानून की रक्षा करने और सरकार की लाज बचने के लिए डीआईजी से सिपाही बनने वाले इरशाद वाली जैसे पुलिस अफसर चिराग लेकर खोजने से भी नहीं मिलेंगे .ऐसे अफसरों को सेल्यूट किया जाना चाहिए .मध्यप्रदेश में पैदा हुए आईपीएस अफसरों में तो इतना मद्दा होता नहीं है .ये तो बिहार की मिटटी का ही पुण्यप्रताप है ,जो इरशाद वाली के भीतर भी छिपा है .मई दिग्विजय सिंह का समर्थक नहीं हूँ,किन्तु प्रशंसक जरूर हूँ. मुझे हैरानी होती है की दिग्विजय सिंह 75 साल की उम्र में पुलिस की लाठी और पानी की बौछारों का सामना करने के लिए निकल पड़ते हैं .दिग्विजय सिंह की किस्मत अच्छी है की उन्हें भी उन जैसे सरकार भक्त पुलिस अफसर मिल जाते हैं

जाहिर है की इरशाद वाली ने जो किया कानों के दायरे में रहकर किया .आईपीएस अफसरों से ज्यादा भला क़ानून के दायरे को कौन जानता है ?लेकिन उन्होंने जो किया उसके एवज में उन्हें राष्ट्रपति का वीरता पदक तो मिलने से रहा .वली साहब डीआईजी बनने से पहले बहुत से जिलों के पुलिस अधीक्षक भी रहे .दतिया और मुरैना में भी थे वे ,हर जगह उनके पीछे विवाद चस्पा रहते आये हैं. वे ग्वालियर में भी प्रेस से उलझकर सुलझ चुके हैं ,लेकिन सुधरते नहीं हैं .उलझना उनका स्वभाव बन गया है. और इसे बदलना आसान काम नहीं है क्योंकि अब प्रदेश में ऐसे पुलिस महानिदेशक ही नहीं हैं जो अपने किसी मातहत का स्वभाव बदल सकें .

मध्यप्रदेश को किस्मत से ऐसे अनेक आईपीएस अफसर मिलते रहे हैं जो सरकार और क़ानून के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं .यानि हर युग में ऐसे अफसर जन्म लेते हैं. दिग्विजय सिंह के गुरु और प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के जमाने में भी बिहार में जन्मे स्वर्गीय अयोध्यानाथ पाठक ग्वालियर में डीआईजी हुआ करते थे .इरशाद भाई जैसे संघ के समर्थक दिखाई देते हैं [भले ही हैं नहीं ]वैसे ही पाठक जी संघ के कटटर विरोधी थे. संघ के लिए जो बात अर्जुन सिंह कहने में हिचकते थे,वो बात पाठक जी ने एक आम सभा में सीना ठोंक कर कह दी थी .इरशाद वली संघ को दी एक जमीन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के सामने थे जबकि पाठक जी संघ के खिलाफ खोले गए एक मोर्चे के साथ थे .उन्होंने कहा था की संघ को हिंदमहासागर में डुबो देना चाहिए .पाठक जी डीजीपी बने थे और ऊपर वाले ने चाहा तो वाली साहब भी किसी न किसी दिन मध्यप्रदेश के डीजीपी बनेंगे ही .

बहरहाल कहने का असहय ये है कि हमारे आईपीएस अफसर भले ही किसी भी पद पर पहुँच जाएँ लेकिन उनकी मानसिकता जो है, सो रहती है .आईपीएस अफसरों की अति से ज्यादा सत्ता भक्ति समझ से परे होती है .ऐसे अफसरों को या तो खाकी उतारकर खादी पहन लेना चाहिए या फिर अपने पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए अपनी हदों में रहकर काम करना चाहिए .एक पूर्व मुख्यमंत्री के ऊपर लाठी तानना एक सिपाही के लिए तो क्षम्य है लेकिन एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर के लिए क्षम्य बिलकुल नहीं है .मुझे लगता है कि इरशाद वाली की कोशिश पर कम से कम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने तो ‘इरशाद’ नहीं कहा होगा .वे खुद दिग्विजय सिंह का दिल से आदर करते हैं .

इरशाद वाली के बारे में कहा जाता है कि वे सामान्य से हटकर अलग अफसर हैं.अपने प्रशिक्षण काल से लेकर अब तक विवाद उनके पीछे साये की तरह लगे रहते हैं.उन्हें इनका खमियाजा भी भुगतना पड़ता है. अपनी ड्यूटी के प्रति कोताही उन्होंने कभी की नहीं.हर फोन काल वे खुद उठाते हैं .कोरोनाकाल में उनकी सेवाएं सराहनीय रहीं.वे 18 घंटे की कठिन ड्यूटी के बीच अपने परिवार और नमाज के लिए भी समय निकाल लेते थे ,ये सब आसान नहीं है .लेकिन वाली साहब कभी कभी अति उत्साह में अपनी सीमाएं लांघ जाते हैं ,इसमें उनका कोई दोष भी नहीं है.आखिर वे भी तो किसी के प्रति उत्तरदायी हैं .

आपको याद होगा की दिग्विजय सिंह गोविंदपुरा इलाके में एक सार्वजनिक बागीचे की 10 हजार वर्ग फीट जमीन आरएसएस की संस्था लघु उद्योग भारती को दी गयी है .अब संघ के लिए जमीन देना उचित है या नहीं इस विवाद पर अभी कोई बात नहीं है भी तो ये है की संघ को दी गयी जमीन का विरोध भोपाल में यदि दिग्विजय सिंह नहीं करते तो कौन करता ? कमलनाथ के पास न तो इतनी फुरसत है और न साहस .बाक़ी कांग्रेसी संघ से लोहा लेने में डरते हैं .ऐसे में एक दिग्विजय सिंह ही बचते हैं जो इरशाद वाली की लाठी और पानी की बौछारों के सामने खुद को प्रस्तुत कर सकते हैं .

मध्यप्रदेश में संघ को सरकार जमीने लुटाये या न लुटाये ये अलग मुद्दा है ,अभी तो बात ये है कि क्या आगे भी प्रदेश में संघ और सरकार के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों के साथ सरकार अपने इरशाद वालियों का निर्मम इस्तेमाल करती रहेगी ? यदि ये सब जारी रहा तो इससे कटुता और बढ़ेगी ,लेकिन विरोध कम नहीं होगा .सबको अपनी-अपनी हदों में रहना चाहिए फिर चाहे वो इरशाद वली हों या दिग्विजय सिंह या शिवराज सिंह चौहान ..
@ राकेश अचल .

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