होम क्वारंटाइन का ‘प्रवासी’ उडा रहे धज्जियां, राजनीतिक ‘डर’ वश प्रधान नही हो रहे ‘सख्त’।

होम क्वारंटाइन का ‘प्रवासी’ उडा रहे धज्जियां, राजनीतिक ‘डर’ वश प्रधान नही हो रहे ‘सख्त’।

होम क्वारंटाइन का ‘प्रवासी’ उडा रहे धज्जियां, राजनीतिक ‘डर’ वश प्रधान नही हो रहे ‘सख्त’। संतोष तिवारी (रिपोर्टर ) देश भले की कोरोना महामारी के चपेट में है लेकिन कुछ लोगो को अपनी आदतों में तनिक भी सुधार करने की हिम्मत नही है और वे केवल अपनी मनमानी करने से बाज नही आ रहे है।

होम क्वारंटाइन का ‘प्रवासी’ उडा रहे धज्जियां, राजनीतिक ‘डर’ वश प्रधान नही हो रहे ‘सख्त’।


संतोष तिवारी (रिपोर्टर )


देश भले की कोरोना महामारी के चपेट में है लेकिन कुछ लोगो को अपनी आदतों में तनिक भी सुधार करने की हिम्मत नही है और वे केवल अपनी मनमानी करने से बाज नही आ रहे है। और इस तरह की मनमानी करने वालों की निगरानी करने वाले जिम्मेदार मौन साधे हुए है। जो कही न कही आगे आने वाले समय की लिए बेहद ही खतरों से भरा है। देखा जा सकता है कि देश में कितनी तेजी से इसका संक्रमण फैल रहा है। सरकार देश के लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर लगातार लाॅकडाऊन को बढाते हुए आर्थिक नुकसान को सह रही है लेकिन सरकार के इस फैसले से गैरजिम्मेदार और लापरवाह लोगों को कोई भी फर्क नही पड रहा है।
सरकार ने अन्य राज्यों में रहने वाले लोगो को अपने गृह राज्य राज्य आने की राहत दी। और आने के बाद उनकी जांच करके उन्हे क्वारंटाइन रहने की हिदायत दी है। प्रवासियों के लिए दो विकल्प है क्वारंटाइन का चाहे वे सरकारी सेंटर में क्वारंटाइन रहे या अपने घर में। लेकिन सरकार का होम क्वारंटाइन विकल्प लोगो के लिए खतरा साबित हो सकता है। क्योकि सरकारी स्थलों पर बने क्वारंटाइन सेंटर में तो सभी प्रवासी है जिससे संक्रमण का खतरा बाहर फैलने का कम है लेकिन होम क्वारंटाइन वाले प्रवासी अपने घर के साथ साथ पूरे गांव को अपने मनमानी कार्यों से खतरे में डाल रहे है। जहां सरकार ने होम क्वारंटाइन के लिए 14 दिन की अवधि एक अलग कमरे में बिताने की बात कही है।यदि परिवार के लोग मिलना चाहें तो दो मीटर की दूरी से मिल सकते है। क्वारंटाइन व्यक्ति को मुंह पर मास्क या रुमाल लगाना अनिवार्य है। हाथों को बार-बार साबुन पानी से धोते रहें या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। गले में खरास, सर्दी-खांसी, बुखार होने पर तत्काल अस्पताल जाने की सलाह दी गई है। होम क्वारंटाइन व्यक्ति का बिस्तर, बर्तन और वस्तुएं घर के अन्य सदस्य न प्रयोग करें और सब अलग रहे। होम क्वारंटाइन का मतलब यह नहीं कि संबंधित व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव ही हो। वह इस संक्रमण का वाहक ही हो सकता है। लेकिन इन सभी नियमों को प्रवासी ताक पर रखकर मनमानी कर रहे है। सरकार ने ग्रामस्तर पर निगरानी समिति बनाई है लेकिन वह निगरानी समिति के केवल कागज तक ही सीमित है।
इस लापरवाही में ग्राम प्रधान की सबसे बडी लापरवाही है। जो अपने राजनीतिक स्वार्थ वश आने वाले प्रवासियों पर अपनी कृपा बनायें है और प्रवासी मनमानी करने से बाज नही आ रहे है। यदि ग्राम प्रधान इस मामले में सख्त हो जाये और आने वाले सभी प्रवासियों को सरकारी भवन में बने क्वारंटाइन सेंटर में ही रखे जो सेंटर में रहने से नौटंकी करें उसकी शिकायत प्रशासन से करें। क्योकि होम क्वारंटाइन का विकल्प कही न कही बडे खतरे की घंटी दे रहा है। लेकिन ग्राम प्रधान अपने राजनीतिक डर के वजह से आने वाले प्रवासियों को सख्ती से सरकारी भवन में रहने के लिए नही कह रहे है। जो प्रवासियों के परिवार के साथ साथ पूरे गांव के लिए खतरा बना है। अमूमन सभी गांवों में सैकडों की संख्या में प्रवासी आये है और लगातार इनकी संख्या बढ रही है लेकिन ग्राम प्रधान इस पर अपनी राजनीतिक स्वार्थ के कारण सख्त नही हो रहे है। शासन के निर्देश पर बनी निगरानी समिति का कोई काम ही नही समझ में आ रहा है। सरकारी भवनों में बने क्वारंटाइन सेंटर में जब ग्राम प्रधानों को आने वाले प्रवासियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था न करनी है तो फिर भी होम क्वारंटाइन के लिए छूट क्यों दे रहे है? आने वाले प्रवासी जैसे अपने घर पर खाना खा रहे है वैसे ही सरकारी भवनों में बने क्वारंटाइन सेंटर में भी प्रवासी अपने घर से खाना मंगाकर खा रहे है। ग्राम प्रधानों को केवल प्रवासियों के लिए साफ-सफाई, बिजली-पानी की व्यवस्था करनी है।तो फिर इस छूट का क्या औचित्य? केवल इस छूट से दो चीजे समझ में आ रही है कि पहला ग्राम प्रधान के चुनाव में ग्राम प्रधान का ‘वोट’ नही कटेगा और ग्राम प्रधान देशहित को ताक पर रखकर अपनी ‘राजनीति’ को चमकाने में सफल होने की आशा से यह छूट दे रखी है। दूसरा यह है कि बाहर से आने वाले प्रवासियों की लापरवाही से गांव में संक्रमण के खतरे की संभावना और बढ गई है। होम क्वारंटाइन में रह रहे अधिकतर प्रवासी मनमानी अपने घरों के परिजनों और पडोसियों से बातचीत कर रहे है, बर्तन व बिस्तर में कोई अलगाव नही है। मास्क लगाना तो बडी बात है। और उनका कहना है कि चेक कराकर आये है जबकि सरकार ने 14 दिन तक ‘अलग’ रहने की व्यवस्था इसलिए की है कि इसका लक्षण और प्रकोप 14 दिन में भी दिख सकता है इसीलिए ‘एकांतवास’ की योजना बनाई जिससे संक्रमण के प्रसार को रोका जा सके। लेकिन लोग है कि अपने ही हिसाब से कार्य कर रहे है। रही बाद प्रशासन की तो प्रशासन के लोग गांव में सबसे अधिक जिम्मेदार ग्राम प्रधान को मानकर उनके तरफ से भेजी ग्ई रिपोर्ट को ही सही मानकर आगे बढाकर अपना काम कर लेते है।
इस मामले में ग्राम प्रधान, प्रवासी, प्रवासियों के परिजन तथा सभी ग्रामीणों को एकजुट होकर इस महामारी के बचाव के लिए सरकार के तरफ से जारी दिशा निर्देश का पालन करें। नही तो थोडी सी मनमानी और लापरवाही ऐसा गुल खिलायेगी कि सबको जिन्दगी भर याद रहेगा। सरकार जब लोगों को बचाने के लिए इतनी आर्थिक क्षति उठा रही है तो हमारी आपकी भी जिम्मेदारी होती है कि सरकार के निर्देश का अक्षरशः पालन करें। और इस महामारी में फैल रहे संक्रमण को अपने स्तर से प्रसार होने से रोकने में सहयोग करें।







Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel