भदोही में जमींदार भी ले रहे है वृद्धा पेंशन ।

भदोही में जमींदार भी ले रहे है वृद्धा पेंशन ।

भदोही में जमींदार भी ले रहे है वृद्धा पेंशन । उमेश दुबे (रिपोर्टर ) सरकार कितनी भी पारदर्शिता की बात करे लेकिन स्थानीय स्तर पर लोग है कि मनमानी करने से बाज नही आते है। यह बात सभी को पता है कि सरकार की कोई भी योजना उन लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जाती

भदोही में जमींदार भी ले रहे है वृद्धा पेंशन ।

उमेश दुबे (रिपोर्टर )

सरकार कितनी भी पारदर्शिता की बात करे लेकिन स्थानीय स्तर पर लोग है कि मनमानी करने से बाज नही आते है। यह बात सभी को पता है कि सरकार की कोई भी योजना उन लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है जो सच में गरीब, असहाय व पात्र है लेकिन योजनाएं तो आती है पात्रों के लिए लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही व मिलीभगत से योजना का लाभ अपात्र भी लेने से नही चुकते है। बस किसी तरह फर्जी रिपोर्ट को भेजने की देरी ही तो होती है। और बेशर्म अपात्र है कि गरीब और असहायों के योजना का लाभ लेकर अपनी बेशर्मी का परिचय देते है। और इस तरह के कुकृत्यों में अपात्र व्यक्ति के साथ साथ सरकार के नुमाइंदे भी लापरवाही करते है जिसके वजह से अपात्र लोग योजना का लाभ लेते है।
सरकार की योजनाओं में कई पेंशन की योजनाएं है जिसमें वृद्धा, विधवा पेंशन व दिव्यांग पेशन शामिल है। यह सभी पेंशन उन लोगों को सरकार देना चाहती है जो सच में पात्र है जो बेसहारा है लेकिन भदोही जिले में ऐसे ऐसे कुपात्रों को जिम्मेदार लोग पात्र बना दिये है कि देखकर ऐसा नही लगेगा कि यह किसी तरह की सरकारी योजना का लाभ लेने का पात्र है लेकिन स्थानीय जिम्मेदार लोग कुछ निजी स्वार्थों के वशीभूत होकर इस तरह के अपात्रों को सरकारी योजना का लाभ दिलाते है। डीघ ब्लाक के एक गांव में ऐसा ही मामला आया है कि जहां एक जमींदार जिसके नाम से कम से आधा दर्जन से अधिक खेतों का नाम खतौनी में है। लेकिन ग्राम प्रधान की कृपा से उस अपात्र व्यक्ति का राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना के अन्तर्गत वृद्धावस्था पेंशन बन गया है। और धड़ल्ले से इस पेंशन का दुरूपयोग कर रहा है। जबकि इस योजना के अन्तर्गत उन लोगों को लाभ दिया जाता है जो बीपीएल हो, 60 वर्ष के ऊपर हो लेकिन वह शख्स न तो किसी तरह से बीपीएल की श्रेणी में आता है बल्कि वह व्यक्ति तो गांव के अच्छे जमीदारों में गिना जाता है लेकिन फिर भी सरकारी योजना के लालच में एक गरीब का हक छिन रहा है। और जिम्मेदार लोगों को इतना समय नही है कि सही जांच करके रिपोर्ट शासन को भेजे। ग्रामप्रधान व सेक्रेटरी ने जो लिखकर भेज दिया वही मान लिया जाता है। आखिर ऐसे किस तरह सरकार की मंशा कामयाब होगी?

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