विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के रिश्ते पर विश्व समुदाय सशंकित।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के रिश्ते पर विश्व समुदाय सशंकित।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के रिश्ते पर विश्व समुदाय सशंकित। संतोष तिवारी( रिपोर्टर ) कोविड-19 वायरस का प्रकोप आज दुनिया के कई देशों में अपना पांव पसार चुका है। और इससे हजारों की संख्या में लोग मौत के मुंह में समा चुके है और लाखों इससे संक्रमित है। इस महामारी से पुरा विश्व समुदाय

विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के रिश्ते पर विश्व समुदाय सशंकित।

संतोष तिवारी( रिपोर्टर )

कोविड-19 वायरस का प्रकोप आज दुनिया के कई देशों में अपना पांव पसार चुका है। और इससे हजारों की संख्या में लोग मौत के मुंह में समा चुके है और लाखों इससे संक्रमित है। इस महामारी से पुरा विश्व समुदाय चिंतित है। और लोग अपने अपने स्तर से सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे है। लेकिन पूरे विश्व के स्वास्थ्य के निगरानी और बचाव व जागरूकता के लिए आज से 72 साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई थी। जो विश्व भर में फैले रोग और उनके बचाव व ईलाज के लिए दिशा निर्देश जारी करता है। और पुरा विश्व विश्व स्वास्थ्य संगठन की बातों को मानता था। लेकिन इस समय फैली कोविड-19 महामारी में विश्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति देशों का नजरिया नकारात्मक दिख रहा है। और विश्व अब इस संगठन के कार्यों को संदिग्ध भूमिका में आंक रहा है। खासकर पुरे विश्व में यह चर्चा है कि इस महामारी के फैलने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लापरवाही की और सही समय पर सही कदम नही उठाया जिससे विश्व को कोविड-19 की इस महामारी को झेलना पड रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यों को देखकर लगता है कि वह चीन को बचाने के लिए पूरे विश्व को इस महामारी में झोंक दिया। जो अब पूरे विश्व के लिए बहुत बडी समस्या बन कर उभर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के वुहान शहर से फैले वायरस को ‘वुहान वायरस’ वायरस देने के बाद इसका नाम बदलकर कोविड-19 कर दिया। जिससे विश्व के दिमाग से इस वायरस का नाम चीन के शहर से न रहे। जब यह वायरस अपने शुरूआती दौर में था तब ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को लोगों ने इस पर ध्यान देने की बात कही लेकिन चीन के दबाव की वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसा कुछ करना उचित नही समझा। और चीन के दबाव में मनमानी कार्य करता रहा। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वायरस के बढते संक्रमण को महामारी घोषित किया तब तक पूरे विश्व में चार हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी थी और एक लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके थे। यदि यह संगठन इस बात को पहले ही संज्ञान में ले लेता तो शायद यह इतना विकराल रूप न लेता। ताइवान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस महामारी की भयावहता के बारे में दिसम्बर में ही बता दिया था लेकिन चीनी प्रेम की वजह से संगठन पर जूं तक न रेंगी। और परिणाम आज विश्व के सामने है। चीन मे तो अब इसका प्रभाव बहुत कम हो गया। लेकिन विश्व के कई देशो में कोरोना का कहर जारी है। मालूम हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डा ट्रेडोस ने जनवरी में चीन का दौरा किया था और उस समय भी कोरोना वायरस पांव पसार रहा था। और इसके बात को विश्व स्वास्थ्य संगठन को बताया भी गया लेकिन इस संगठन ने चीन को बचाने के लिए इस संक्रमण को महामारी घोषित न करके केवल ‘ग्लोबल इमरजेंसी’ घोषित कर दिया। जबकि उस समय इस वायरस का संक्रमण विश्व के दर्जन देशों से अधिक जगह पर फैल चुका था। चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अन्तरंग सम्बन्धों को लेकर विश्व में काफी चर्चा है और तीखी प्रतिक्रिया भी हो रही है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन को ‘चीन-प्रेम’ विश्व को ‘मौत’ के मुंह में झोंकने पर अमादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस संदिग्ध कार्यों से पूरा विश्व नाराज है। विश्व स्वास्थ्य महामारी से निपटने की आलोचना के बीच आया है। जहां पर कुछ संगठन चीन को लेकर समर्थन कर रहे है तो कुछ विरोध। विश्व भर में चीन को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन पर हो रही आलोचनाओं के जवाब में, महानिदेशक टेड्रोस ने कहा है कि चीन को प्रशंसा करने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं है। चीन ने वायरस को धीमा करने के लिए कई अच्छे काम किए हैं। पूरी दुनिया न्याय कर सकती है। यहां कोई लापरवाही नहीं है। संगठन पर बहुत दबाव है जब हम सराहना करते हैं कि चीन क्या कर रहा है लेकिन दबाव के कारण हमें सच्चाई बताने में विफल नहीं होना चाहिए, हम किसी को खुश करने के लिए कुछ नहीं कहते हैं क्योंकि यह सच्चाई है। महामारी के बीच, अफ्रीकी नेताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए समर्थन व्यक्त किया, अफ्रीकी संघ ने कहा कि संगठन ने “अच्छा काम” किया है और नाइजीरियाई राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने “वैश्विक एकजुटता” का आह्वान किया है।’ वही विश्व के कुछ पर्यवेक्षकों ने कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन की सरकार को खतरे में डालने में असमर्थ है। क्योंकि अन्यथा एजेंसी प्रकोप के घरेलू राज्य पर सूचित नहीं रह पाती है और वहां प्रतिक्रिया के उपायों को प्रभावित करती है, जिसके बाद ऐसी संभावना हो सकती है। ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी पर चैथम हाउस सेंटर में वन हेल्थ प्रोजेक्ट के निदेशक उस्मान डार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आचरण का बचाव किया कि संयुक्त राष्ट्र के संगठन हमेशा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े रहे हैं। संगठन की दैनिक स्थिति रिपोर्ट में “ताइवान क्षेत्र” को शामिल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप ताइवान को आरएचओ-शासित द्वीप पर मामलों की अपेक्षाकृत कम संख्या होने के बावजूद मुख्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के रूप में एक ही डब्ल्यूएचओ “उच्च” जोखिम रेटिंग प्राप्त हुई है। ताइवान के विरोध के लिए, जो कहता है कि रेटिंग के परिणामस्वरूप उसे यात्रा प्रतिबंध प्राप्त हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताइवान की गैर-सदस्यीय स्थिति के बारे में आगे की चिंताओं का प्रभाव इस पर पड़ा है कि संगठन को उचित चैनलों के बिना इस क्षेत्र में प्रकोप के मामले में ताइवान की भेद्यता बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि हमारे सभी परामर्शों में ताइवान के विशेषज्ञ शामिल हैं। इसलिए वे पूरी तरह से लगे हुए हैं और विशेषज्ञ नेटवर्क के सभी घटनाक्रमों से पूरी तरह अवगत हैं। इसलिए जो भी कार्य हो रहे है एक रणनीति के तहत हो रहे है। लेकिन संगठन की इस दलील को न मानते हुए 14 अप्रैल 2020 को, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की कि संगठन गंभीर रूप से दुस्साहसी और कोरोनो वायरस के प्रसार को कवर करने वाले के रूप में वर्णित अपनी भूमिका की समीक्षा करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के संयुक्त राज्य कोष को रोक देंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोरोनो वायरस महामारी पर “कॉल मिसिंग” के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की आलोचना की थी और संगठन को अमेरिकी फंडिंग को रोक देने की धमकी दी थी। अमेरिकी कांग्रेस ने पहले ही 2020 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को लगभग 122 मिलियन डॉलर का आवंटन किया था, और ट्रम्प ने पूर्व में व्हाइट हाउस के 2011 के बजट में इस संगठन के वित्तपोषण को 5 मिलियन तक कम करने का अनुरोध किया था। विदित हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को लगभग 15% का सहयोग अमेरिका करता है। ऐसे में इस संगठन की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कदम ने विश्व नेताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों से व्यापक निंदा तो कुछ ने समर्थन भी किया है। और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रकोप की तैयारी में उनकी विफलता की लगातार आलोचना के बीच, देश संकट से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका के निर्णय को “खेदजनक” कहा और कहा कि संगठन ने पहली बार जनवरी की शुरुआत में दुनिया को सतर्क किया जब हर साल होने वाले लाखों समान मामलों में एटिपिकल निमोनिया के 41 मामलों के एक समूह को बाहर निकाल दिया गया था। 10 जनवरी को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानव-से-मानव संचरण की एक मजबूत संभावना के कारण सावधानियों का आग्रह किया। लेकिन अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन से नाराजगी बनी है और 14 अप्रैल 2020 को एक चिट्ठी के माध्यम से कुछ जानकारी मांगी है। जिसमे अमेरिका को लगता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन का रिश्ता संदिग्ध है। लेकिन विश्व के कई देश भी अमेरिका के इस फैसले से खुश नही है। और इसे अमेरिका का ‘सुप्रीम स्टंट’ मान रहे है। क्योकि इस वायरस से अमेरिका काफी प्रभावित है और चीन में इससे राहत है। इसलिए चीन की बादशाहत कही विश्व में कायम न हो जाये इसीलिए अमेरिका ऐसा आरोप विश्व स्वास्थ्य संगठन पर लगा रहा है। वैसे अमेरिका कई जगहों पर ऐसा कार्य किया है जहां उसका फैसला लोगों के लिए किरकिरी बन गया लेकिन कोई कुछ कर नही सका। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का चीन के प्रति नरम रवैया या झुकाव कही न कही कुछ मजबूरियों को दर्शाने में काफी सहायक है। लोग अलग अलग के दृष्टिकोण से चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन को देख रहे है। और लोगों का आरोप है कि चीन को बचाने या चीन के इशारे पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह सब किया।

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