
कर्म के फल को छोड़ो, कर्म के रस का आनंद लो- मोरारी बापू
“मानस अक्षयवट” के छठे दिन उमड़ा भक्ति का सैलाब, प्रयागराज । अरैल में चल रही राम कथा “मानस अक्षयवट” के छठे दिन गुरुवार को कथा मर्मज्ञ मोरारीबापू ने नारद भक्ति सूत्र के छह लक्षण बताते हु बापू ने कहा कि अगर आपके दिल में प्रेम है तो 24 घंटे आप अक्षयवट की छाया में है। आप
“मानस अक्षयवट” के छठे दिन उमड़ा भक्ति का सैलाब,

प्रयागराज । अरैल में चल रही राम कथा “मानस अक्षयवट” के छठे दिन गुरुवार को कथा मर्मज्ञ मोरारीबापू ने नारद भक्ति सूत्र के छह लक्षण बताते हु बापू ने कहा कि अगर आपके दिल में प्रेम है तो 24 घंटे आप अक्षयवट की छाया में है। आप निरन्तर और अगर आपके दिल में द्वेष, ईष्या है तो आप अक्षयवट की छांव में होकर भी अक्षयवट से कोसों दूर हो। नारद भक्त सूत्र का दूसरा लक्षण बताते हुए बापू कहते हैं कि जहां परमात्मा पर भरोसा है, दृढ़ विश्वास है, वह अक्षयवट है। तीसरा लक्षण बताते हुए बापू ने कहा कि राम कथा सुनते हुए यह महसूस हो जाए कि यहां विश्राम है, शांति है, तो वहीं अक्षयवट है। चौथे लक्षण के रूप में बापू कहते हैं कि किसी वस्तु का सोच समझकर निर्णय करना और उस पर अडिग रहना ही अक्षयवट है। बापू कहते हैं कि भोजन का पहला हिस्सा किसी जरूरतमंद,को देना चाहिए यही त्याग, वैराग्य ही अक्षयवट है, पांचवा लक्षण है। नारद भक्ति सूत्र के अंतिम छठे लक्षण में कहा कि फल की इच्छा किए बिना जो कर्म करते जाए, वहीं अक्षयवट है। बापू ने कहा कि जो गुण रहित, कामना रहित और अविच्छिन्न है, वहीं अक्षयवट है।
मानस अक्षयवट” कथा के दौरानबापू कहते हैं कि मेरा कोई सिद्धांत नहीं है, बल्कि स्वभाव है। सिद्धांत पंडितों का होता है, साधु का स्वभाव होता है। सिद्धांत भी स्वभाव से बनते हैं। बापू कहते हैं कि मैं सिद्धांतों का आदर करता हूँ, लेकिन जिसने भी सिद्धांत बनाएं वह उसका स्वभाव था। क्योंकि सिद्धांत बांधता है, स्वभाव मुक्त करता है। सिद्धांत बदल जाता है, स्वभाव अखंड है। बापू युवाओं को आव्हान करते हुए कहते हैं कि अच्छे स्वभाव बनाओं, अच्छे स्वभाव में जिओ, जो रास नहीं आए वो संग छोड़ दो। बापू कहते हैं कि दुनिया में मौज में रहो, आनंद में रहो, लेकिन त्याग से रहो। आप अच्छा खाओ लेकिन बाकी को भी खिलाओ। युवाओं को आव्हान करते हुए बापू ने कहा कि कोई भी बड़ी विपत्ति आए तो धैर्य मत खोना। परमात्मा हर व्यक्ति को उतनी ही विपत्ति देता है, जितनी वह सहन कर पाता है। कमजोर को विपत्ति देना हिंसा है और सामर्थ्यों को विपत्ति देना, सामर्थ्य का स्वागत है।
जो शांति प्रयाग में है वह कहीं नहीं है

”मानस अक्षयवट” में मोरारीबापू ने कहा कि बहुत कथाएं कही है, लेकिन कथा को सुनने की शांति जो यहां है, वह कहीं और नहीं मिली। यह सिर्फ प्रयाग के लोग ही कर सकते है। प्रयाग के वासियों ने इस धरा का मान रखा है, जहां भारद्वाज जैसे ऋषि हुए जो तीर्थराज है। कथा में शांत खड़े यह लोग ही प्रयागराज की शान है। इतनी शांति सिर्फ प्रयाग वाले ही रख सकते हैं,। बापू कहते हैं कि गीतावली में प्रेम ही अक्षयवट है, यहीं प्रयाग है। प्रेम का अक्षयवट विश्वास रूपी डाल, प्रेम कभी नहीं टूटती है। बापू ने कहा कि यह प्रेम सभा मेरा मयखाना है, जहां सियाराम भक्ति की रसधारा निशुल्क पिलाई जाती है और यहां सबका स्वागत है। मेरी व्यासपीठ मुक्त है, मेरे पास आने वाला भी मुक्त है।
कथा के दौरान मोरारीबापू ने कहा कि हर आत्मा में शिव है, व्यक्ति सो रहा है तब उसकी समाधि है, अगर काम पर जा रहा है तो वह उसकी परिक्रमा है। व्यक्ति की बुद्धि ही शिव-पार्वती है। मानव की भाषा ही शिव की स्मृति है । शिव तो भोला है, सुसंस्कृत और व्याकरण नहीं समझता है। बापू ने एक भ्रांति रूपी सवाल के जवाब में कहा कि शिव को मानते है तो भले शिवलिंग को घर में रखो, घट में रखो।
राम कथा के दौरान मोरारीबापू ने एक श्रोता के पत्र के संदर्भ में स्वामी शरणानंद के तीन सूत्र का भावार्थ समझाते जिज्ञासा दूर की। बापू ने कहा कि स्वामीजी ने तीन सूत्र बताए। बिना विवेक के कोई कर्म विश्वास और सत्संग नहीं करना चाहिए। हालांकि बापू के कहा कि विश्वास वाले सूत्र में मेरा मानना अलग है, में सब पर विश्वास करता हूँ, मुझे सभी स्वीकार्य है। । बापू कहते हैं कि राम भी सभी को अतिप्रिय है, इस धरा पर शायद ही कोई हो जिसे राम प्रिय न हो। एक ही परम तत्व है जो सभी को सभी प्रिय लगते हैं, वह हैपरमात्मा ।
मेरे पास कोई गुरु मंत्र नहीं, मानस ही सबसे बड़ा गुरु मंत्र है।
राम कथा के दौरान मोरारीबापू ने कहा कि मेरे पास कोई गुरु मंत्र नहीं है। श्रोता मुझसे गुरु मंत्र मांगने आते हैं, मैं किसी को गुरु मंत्र नहीं देता, मैं मोहब्बत देता हूँ, क्योंकि में इतना बड़ा नहीं। मंत्र का एक अर्थ विचार भी है, अगर आपको व्यासपीठ से कोई अच्छा विचार मिल जाए, तो उसे ही मंत्र मानते हुए, उस पर जीवन यापन करे। तुलसीदासजी की रामचरितमानस सबसे बड़ा मंत्र है, मानस पढ़ो, राम के नाम का जप करो। व्यक्ति को कर्मफल की ईच्छा न करते हुए कर्म रस का आनंद लेना चाहिए। कर्म के फल को छोड़ो, उस कर्म के रस का आनंद लो।
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