निर्भया केस: इकलौते गवाह के खिलाफ FIR दर्ज करने की याचिका खारिज

निर्भया केस: इकलौते गवाह के खिलाफ FIR दर्ज करने की याचिका खारिज

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप केस के एकमात्र चश्मदीद गवाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका खारिज कर दी है. निर्भया केस के गवाह के खिलाफ FIR दर्ज की याचिकापटियाला हाउस से खारिज, दोषियों के पिता ने की थी दायरदिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप केस के एकमात्र

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप केस के एकमात्र चश्मदीद गवाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका खारिज कर दी है.  

निर्भया केस के गवाह के खिलाफ FIR दर्ज की याचिकापटियाला हाउस से खारिज, दोषियों के पिता ने की थी दायर
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप केस के एकमात्र चश्मदीद गवाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका खारिज कर दी है. चार दोषियों में से एक के पिता ने यह याचिका दायर की थी.

इससे पहले निर्भया केस के दोषी पवन गुप्ता ने पटियाला हाउस कोर्ट में निर्भया के दोस्त और केस के इकलौते गवाह अवनींद्र पांडे के खिलाफ याचिका दायर की थी. साथ ही उसने जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. याचिका में दोषी पवन ने निर्भया के दोस्त पर आरोप लगाया कि उसने पैसे लेकर गवाही दी.

वहीं, दोषी पवन कुमार गुप्ता की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में खारिज हो पहले ही खारिज हो चुकी है. कोर्ट ने वकील पर भी 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था.

पवन ने अपने आपको नाबालिग बताया था

दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पवन ने अपने आपको नाबालिग बताया है. अपनी याचिका में पवन ने कहा कि 2012 में वह नाबालिग था और उसके साथ किशोर न्याय कानून के तहत बर्ताव किया जाए.

निर्भया गैंगरेप मामले में फांसी की सजा पाए पवन गुप्ता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि वह दिसंबर 2012 में हुई वारदात के समय नाबालिग था और ट्रायल कोर्ट ने गलत तरीके से उसके खिलाफ काम किया. याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट ने एक नाबालिग के तौर पर उसके अधिकारों का हनन किया है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही पवन की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर चुका है. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पवन ने जब अपनी पुनर्विचार याचिका लगाई थी तो उसमें नाबालिग होने से जुड़ी कोई बात सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं रखी गयी थी, ऐसे में हाइकोर्ट में लगाई गई ये याचिका सिर्फ समय बर्बाद करने के लिए लगाई गई है, ताकि फांसी की सजा को टाला जा सके.

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