कब बुझेगी ग्रामीणों की प्यास कैसे लड़े कोविड-19 से
चित्रकूट / मानिकपुर का यह इलाका काफी पिछड़ा माना जाता है जो पाठा के नाम से जाने जाने वाला यह मानिकपुर का क्षेत्र है । एक तरफ कोरोना वायरस ने अपना कहर बरपा रखा है , तो वहीं दूसरी तरफ जल संकट का भी गहरा रहा है जैसा कि यह कहना वाजिब होगा कि हर
चित्रकूट / मानिकपुर का यह इलाका काफी पिछड़ा माना जाता है जो पाठा के नाम से जाने जाने वाला यह मानिकपुर का क्षेत्र है । एक तरफ कोरोना वायरस ने अपना कहर बरपा रखा है , तो वहीं दूसरी तरफ जल संकट का भी गहरा रहा है जैसा कि यह कहना वाजिब होगा कि हर वर्ष की तरह ही यहां पानी की विकराल समस्या उत्पन्न होती है ना तो सरकार कभी ध्यान दे पाती है और ना ही प्रशासन।
वही कोविड-19 तो अपना कहर बरपा ही रहा है तो दूसरी तरफ जल संकट भी गहरा रहा है। मानिकपुर क्षेत्र के ऐसे कई ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां अभी तक पानी की कोई समुचित या उचित व्यवस्था नहीं है। वही अगर गांव में कुछ हैंडपंप है तो कुछ बिगड़े है तो कुछ हैंडपंप से निकलने वाला पानी पीने योग्य नही जिसे पाठा का लाल जहर कहा जा सकता है।
अगर ग्रामीणों की मानें तो यह पानी पीने योग्य नहीं है क्यों कि इससे कई बीमारियां होती है और कोई न कोई बीमार पड़ रहता है जिससे कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है जैसे – हैजा , मलेरिया , पीलिया जैसी कई बीमारियां हो सकती है ।वहीं अगर गांव में ग्रामीणों से बात करने से पता चला कि चोहड़े – कुएं का गन्दा पानी पी रहे हैं , तो खुले कुए का पानी पीने से आप समझ सकते हैं कि कितनी कीटाणु होते हैं जो मनुष्य को बीमार करने के लिए काफी हैं। आपको बताते चलें कि ऐसे ही कुछ मामले गांव से निकल कर आ रहे है गोपीपुर – बेलहा जैसे गांव में हैं।
ग्राम पंचायत खिचरी गांव में पानी की यह समस्या लगभग 11 वर्षों से है। पी० वी० सी० 1975 के तहत पाइपलाइन पड़ी थी जो टूटी पड़ी हुई है जिसकी शिकायत ग्रामीणों ने कई बार किये है लेकिन ना तो मरम्मत हुई और ना ही पेयजल मिल सका। अब यह प्रश्न यह उठता है कि क्या कोरोना वायरस से लड़े या जल संकट से गंभीर विषय है कि आखिर पीने योग्य जल कब मिल पाएगा? जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक ने कभी तक ध्यान नहीं ।
मानिकपुर जैसे क्षेत्र में यहां जल संकट अक्सर इस समय अप्रैल महीने से ही जल संकट गहरा जाता है। जिससे ग्रामीणों को काफी समस्याएं होती हैं और अभी देखा जाए तो ताजा तस्वीरें आ रही हैं कि कुएं में महिलाएं एकत्र होकर पानी भर्ती नजर आई है जो सोशल डिस्टेंस पर भी बड़ा प्रश्न उठाती है कि क्या इस प्रकार से कोरोना से लड़ा जा सकता है?
महिलाओं से जब हमारी टीम ने बात की तो उन्हों बताते हुए कहा अगर पानी नही भरेंगे तो पियेंगे क्या ? उन्हों कहा हम गांव से लगभग 1 किलोमीटर दूर पानी लेने आते है और एक साथ सब लोग पानी ले कर जाते है । पेयजल न मिल पाने के कारण लोगो की यह समस्या प्रशासन पर भारी पड़ती न आ रही है ।
वही जिम्मेदार अधिकारियों की बात करे तो ठाढ़े बक्से में कैद है वह पत्र जो ग्रामीणों ने दिए थे । ग्रमीणों ने आशा जाते हुए कहा हमे अपने अधिकारों और जनप्रतिनिधियों से अभी भी आशा है कि हमे पेयजल मिल पायेगो ।
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