स्वतन्त्र प्रभात एक्सक्लुसिव :- खाद माफिया मस्त ,किसान पस्त

400 तक बिक रही यूरिया, डीएपी की कालाबाज़ारी से हलकान किसान

स्वतन्त्र प्रभात एक्सक्लुसिव :- खाद माफिया मस्त ,किसान पस्त

सुपौल  ब्यूरो:

जिले के किसान प्रकृति के साथ साथ प्रसासनिक दोहरी मार झेलने को बिबश हैं।एक तो बारिश नहीं होने के कारण किसान खेतों में पंपसेट से सिंचाई कर जैसे तैसे रोपाई कर रहे है ,वही दूसरी तरफ  किसान अब खाद की कालाबाजारी से दोहरी मार झेल रहे हैं। सरकार की तय दरें सिर्फ कागजों पर हैं,।कृषि विभाग के निर्देशक के आदेश को अब खुद जिले के कृषि अधिकारी ही फेल करने से जुटे हुए हैं।हकीकत यह  है कि यूरिया और डीएपी  खाद बाजार में खुलेआम  मनमाने दामों पर बेची जा रही है।

यूरिया की सरकारी दर जहां ₹266 प्रति बोरी है, वहीं बाजार में ₹370 से लेकर ₹400 तक में बेचा जा रहा है। डीएपी  की स्थिति और भी खराब है — जिसकी सरकारी दर ₹1350 है, वो ₹1700 से ₹1830 में खुलेआम बिक रही है।

 किसानों की बेबसी: "या तो महंगा खाद खरीदें, या खेत सूखा छोड़ें!"

 जिले के ग्रामीण इलाकों के किसान बताते हैं कि जब दुकानदार से रेट अधिक होने पर पूछा जाता है, तो जवाब मिलता है — "ऊपर से ही रेट बढ़ा हुआ है, हम क्या करें!"खास बात यह है कि अधिकतर दुकानों पर सूचना बोर्ड पर सरकारी दरें लिखी रहती हैं, लेकिन अमल नहीं होता है।सबसे बड़ी बिडम्बना है कि स्वेप मशीन शोभा की बस्तु बनी हुई है।दुकानदार केसमेमो नही देना अपनी शान समझते हैं।

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धान की रोपाई के सीजन में खाद नहीं मिलने या ऊंचे दाम पर मिलने से किसान खेतो में  जरूरत के अनुसार खाद नहीं डाल पा रहे। इससे पैदावार पर असर पड़ने की आशंका है।प्रशासनिक चुप्पी, अधिकारी बगल झांकते नज़र आए

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प्रभारी प्रखंड कृषि पदाधिकारी सतीश चंद्रा से जब पूछा गया तो उन्होंने सिर्फ यह कहा कि "होलसेलर किस दर पर रिटेलर को खाद दे रहा है, इसकी जानकारी वरीय अधिकारियों को है। जिला से ही सब क्लियर होगा।

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उन्होंने सरकारी दर की जानकारी तो दी, लेकिन यह कबूला नहीं कि रिटेलर कौन सी दर पर किसानों को खाद बेच रहा है।

खाद का सरकारी बनाम असली बाजार भाव

खाद का नाम    सरकारी दर    बाजार दर

यूरिया    ₹266/बोरी    ₹370–₹400/बोरी
डीएपी     ₹1350/बोरी    ₹1700–₹1830/बोरी

: ट्रकों से दुकानों तक कालाबाजारी का खेल

कई किसानों ने बताया कि रात्रि में ट्रकों से खाद उतारकर निजी दुकानों में जमा की जाती है, फिर वही खाद बेहिसाब मुनाफे पर बेची जाती है।

 न कोई जांच, न छापेमारी, न ही कोई निगरानी।
 सारा खेल "ऊपर तक" पहुंचा हुआ है, ऐसा दुकानदारों का दावा हैं।

खेतीमें लागत पहले से ही महंगी हो गई है बीज, डीज़ल, बिजली और मज़दूरी की लागत बढ़ी हुई है। ऊपर से खाद की यह ऊंची कीमत खेती को घाटे का सौदा बना रही है। अगर प्रशासन ने सख्ती नहीं दिखाई, तो इस बार किसान भारी नुकसान झेलेंगे।किसानों ने सुपौल के नव पदस्थापित  जिलाधिकारी सावन कुमार से मूल्य नियंत्रण के लिए हस्तक्षेप की माँग की है।


 किसानों की मांग

 कालाबाजारी पर रोक

दुकानों की नियमितजांच

होलसेल  से रिटेल तक निगरानी

सरकारी दर पर खाद की गारंटी

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