सत्संग से मिलता है जीवन का सार: पं. झिलमिल महाराज का संदेश

जब मनुष्य सत्संग से जुड़ता है, तो उसके अंतर्मन में विवेक और आत्मचिंतन की भावना जागृत होती है, जिससे जीवन के अच्छे-बुरे का निर्णय करना सरल हो जाता है।

सत्संग से मिलता है जीवन का सार: पं. झिलमिल महाराज का संदेश

लालगंज (रायबरेली)।
 
क्षेत्र के ऐहार गांव स्थित बाल्हेश्वर मंदिर के निकट ऋषि आश्रम परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन कथा व्यास पं. झिलमिल महाराज ने पूतना उद्धार की कथा सुनाते हुए सत्संग के महत्व पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि सत्संग ही मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का प्रथम सोपान है।
 
जब मनुष्य सत्संग से जुड़ता है, तो उसके अंतर्मन में विवेक और आत्मचिंतन की भावना जागृत होती है, जिससे जीवन के अच्छे-बुरे का निर्णय करना सरल हो जाता है। पंडित जी ने पूतना उद्धार के प्रसंग को विस्तार से बताते हुए कहा कि राक्षसी पूतना बालकृष्ण का वध करने के उद्देश्य से गोकुल पहुंची। प्रभु ने उसे भी मोक्ष प्रदान कर यह संदेश दिया कि यदि भाव में तनिक भी भक्ति हो, तो भगवान उसे व्यर्थ नहीं जाने देते।
 
पूतना के उद्धार से यह स्पष्ट होता है कि प्रभु श्रद्धा और समर्पण रखने वाले हर जीव को उबारने के लिए तत्पर रहते हैं। कथा व्यास ने आगे कहा कि जब हम सत्संग में बैठते हैं, तो हमारे भीतर की नकारात्मकता स्वतः नष्ट होने लगती है और हृदय में भक्ति, करुणा और सेवा की भावना बढ़ने लगती है। उन्होंने पूतना प्रसंग के माध्यम से यह भी बताया कि भगवान की कृपा असीमित है। वह पापियों को भी गले लगा लेते हैं यदि उनमें थोड़ा भी प्रेम का भाव हो। 
 
कथा के दौरान उन्होंने बालकृष्ण की माखन लीला, गोवर्धन पूजा, इंद्र का मान मर्दन सहित अन्य प्रसंगों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस दौरान कथा के मुख्य यजमान रज्जन गुप्ता, रुक्मणी गुप्ता, अंकित, रामशरण सिंह, पप्पू सैनी, अनिल सैनी, राजा शुक्ला, शिवम शुक्ला, सोनू वर्मा, उमेश गुप्ता, सत्यम गुप्ता, मस्टराइन आदि श्रद्धालु  मौजूद रहे।
 
 

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