पिपरा बना अपराधियों का गढ़, पुलिस प्रशासन पर उठे सवाल – जनता में आक्रोश, व्यापारियों में भय
प्रशासन के दावे खोखले साबित, जनता में गुस्सा
जितेन्द्र कुमार "राजेश"
सुपौल, पिपरा – कभी शांतिप्रिय इलाकों में गिना जाने वाला पिपरा अब लगातार हो रही गोलीबारी की घटनाओं के चलते अपराध का केंद्र बनता जा रहा है। पिछले तीन महीनों से लगातार हो रही आपराधिक वारदातों ने न केवल स्थानीय जनता के दिलों में डर बसा दिया है, बल्कि पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हत्या, लूट और गोलीबारी की बढ़ती घटनाएं
17 जनवरी को पिपरा के समीप पेट्रोल पंप के मुंशी दीपनारायण पोद्दार की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद 18 मार्च को देवीपट्टी के पास एक ई-रिक्शा चालक को पैसों की मांग का विरोध करने पर अपराधियों ने गोली मार दी। 4 अप्रैल को दीनापट्टी रेलवे ट्रैक के पास सुबोध शाह को और 11 अप्रैल को कटिया निवासी विकास यादव को लालपट्टी के समीप गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया।
लगातार बढ़ती इन घटनाओं के कारण पिपरा के बाजारों में डर और सन्नाटा पसर गया है। शाम होते ही लोग घरों में कैद हो जाते हैं और दुकानदार समय से पहले ही अपनी दुकानें बंद करने को मजबूर हो रहे हैं।
प्रशासन के दावे खोखले साबित, जनता में गुस्सा
इन घटनाओं के बाद प्रशासन द्वारा "जांच जारी है" और "जल्द अपराधी सलाखों के पीछे होंगे" जैसे आश्वासन दिए जा रहे हैं, पर जनता अब इन खोखले दावों से थक चुकी है। अब तक किसी भी बड़ी घटना में अपराधी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं।
कटिया निवासी विकास यादव की हत्या के विरोध में परिजनों ने 327ई राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया। आक्रोशित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी।
अपराधियों का बढ़ता मनोबल, पुलिस की नाकामी
स्थानीय निवासियों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि न केवल पिपरा, बल्कि पूरे जिले में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। आए दिन लूट, हत्या और गोलीबारी की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन पुलिस कप्तान और अन्य अधिकारी सिर्फ प्रेस विज्ञप्तियों में व्यस्त हैं। “पुलिस सिर्फ बयान देती है, कार्रवाई कहीं नहीं दिखती,” एक स्थानीय दुकानदार ने कहा।
व्यापारियों में डर, आमजन में बेचैनी
इन घटनाओं का सीधा असर बाजार और आम जीवन पर पड़ा है। खासकर व्यापारी वर्ग बेहद डरा हुआ है। उन्हें डर है कि कभी भी उनका निशाना बनाया जा सकता है। जिलेभर में कई लूट की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हो रही हैं।
क्या फिर लौट रहा है 'मधेपुरा' जैसा दौर?
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि सुपौल एक बार फिर मधेपुरा जिले जैसे काले दिनों की ओर लौट रहा है, जब लोग घर से बाहर निकलने में डरते थे। “अब फिर वही दौर लौटता दिख रहा है, जहां गोली चलना आम बात हो गई है,” उन्होंने चिंता व्यक्त की।
जनता की मांग – अपराधियों की गिरफ्तारी और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था
स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की मांग की है। उनका कहना है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो जनता को मजबूर होकर सड़क पर उतरना पड़ेगा।
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