स्वागत योग्य एवं अनुकरणीय है शराबबन्दी

स्वागत योग्य एवं अनुकरणीय है शराबबन्दी

डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)


मध्य प्रदेश सरकार ने धार्मिक महत्व के 19 नगरों एवं ग्राम पंचायतों में एक अप्रैल से शराब बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया है। प्रदेश के मुख्यमन्त्री मोहन यादव के अनुसार उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मण्डलेश्वर, ओरछा, मैहर, चित्रकूट, दतिया, पन्ना, मण्डला, मुलताई, मंदसौर और अमर कण्टक की नगरीय सीमा में शराब नहीं बिकेगी।  इसके अलावा सलकनपुर, कुण्डलपुर, बांदकपुर, बरमानकलां, बरमानखुर्द एंव लिंग ग्राम पञ्चायत सीमा में भी शराब की सभी दुकाने और बार बन्द करवाने का आदेश दिया गया है।  प्रदेश सरकार का यह कदम स्वागत योग्य एवं अनुकरणीय है। अच्छा होता यदि यह बन्दी पूरे प्रदेश में लागू होती।

 मध्य प्रदेश सरकार का यह कदम पहला और नया नहीं है। ।बिहार, गुजरात, मिजोरम और नागालैण्ड में पहले से ही शराब बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा हुआ है।  शराब पर प्रतिबन्ध लगाने वाला गुजरात इस देश का पहला राज्य है।  जहाँ उसके जन्म वर्ष 1960 से ही शराब का निर्माण, बिक्री और सेवन पूर्णतया प्रतिबन्धित है।  जबकि बिहार में अप्रैल 2016 में शराब बन्दी कानून लागू हुआ था।  हालाकि प्रतिबन्ध के बावजूद बिहारियों की एक बड़ी आबादी मदिरा पान करती है।  केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय द्वारा कराये गये सर्वे में बिहार के 17 प्रतिशत लोग मदिरासेवी पाये गये।  परन्तु इससे शराब बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाना निरर्थक नहीं हो जाता।  उपरोक्त राज्यों में प्रतिबन्ध लगा होने के कारण ही भारत में शराब पीने वालों की संख्या में काफी हद तक कमी आई है।  केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय की तरफ से हाल ही जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार भारत के 22.4 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं।  जबकि 2015-16 में जारी आंकड़ों में यह प्रतिशत 29.2 था।

 वहीं शराब पीने वाली महिलाओं का प्रतिशत 1.2 से घटकर 0.7 हो गया है।  जिन राज्यों में शराब बिक्री पर प्रतिबन्ध नहीं है वे राष्ट्रीय औसत से बहुत आगे हैं।  जिसमें गोवा के 59.1 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश के 56.6 प्रतिशत, तेलंगाना के 50 प्रतिशत, झारखण्ड के 40.4 प्रतिशत, ओडिशा के 38.4 प्रतिशत, सिक्किम के 36.3 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ के 35.5 प्रतिशत, उत्तराखण्ड के 32.1 प्रतिशत, आन्ध्र प्रदेश के 31.2 प्रतिशत, दिल्ली के 27.9 प्रतिशत, पंजाब के 27.5 प्रतिशत, असम के 26.5 प्रतिशत, केरल के 26 प्रतिशत तथा पश्चिम बंगाल के 25.7 प्रतिशत पुरुष मदिरा पान करते हैं।  इसी तरह प्रदेश वार यदि महिलाओं की बात करें तो सबसे अधिक असम में 26.3 प्रतिशत तथा मेघालय में 8.7 प्रतिशत स्त्रियाँ शराब का सेवन करती हैं।  

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अरुणाचल प्रदेश में शराब पीने वाली महिलाओं का आंकड़ा पहले 33.6 था।  जो अब घटकर मात्र 3.3 प्रतिशत रह गया है।  क्रिसल नामक एजेंसी द्वारा 2020 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार शराब की खपत में पहले नम्बर पर छत्तीसगढ़ और दूसरे पर त्रिपुरा राज्य है।  तीसरे नम्बर पर आन्ध्र प्रदेश, चैथे पर पंजाब, पांचवें पर अरुणाचल प्रदेश है।  जबकि जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, महाराष्ट्र और लक्षद्वीप में सबसे कम शराब पी जाती है।  उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाँ की 23.8 प्रतिशत आबादी शराब का सेवन करती है।  जिसका आयु वर्ग 10 वर्ष से 75 वर्ष के बीच है।  गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी लगभग 24 करोड़ है।  जिसका 23.8 प्रतिशत अर्थात लगभग 6 करोड़ लोग शराबी हैं।  जो एक गम्भीर चिन्ता का विषय है।  

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मदिरा व्यापार का प्रमुख पहलू सरकारों को इससे मिलने वाला भारी भरकम राजस्व है।  इसीलिए अन्य सभी प्रदेश सरकारें बिहार, गुजरात, मिजोरम और नागालैण्ड की तरह शराब बन्दी का साहस नहीं जुटा पा रही हैं। उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग ने वर्ष 2024-25 में 52297.08 करोड़ रूपये का राजस्व अर्जित किया है और चालू वित्त वर्ष में 55 हजार करोड़ रूपये से अधिक का लक्ष्य रखा है। पंजाब सरकार को 10743.72 करोड़ का राजस्व बीते वित्तीय वर्ष में प्राप्त हुआ।  जबकि चालू वित्त वर्ष का लक्ष्य 11020 करोड़ रूपये है।  वहीं दिल्ली की प्रदेश सरकार ने बीते वित्तीय वर्ष में 5068.92 करोड़ का राजस्व शराब से प्राप्त किया।  छत्तीसगढ़ सरकार की वर्ष 2023-24 में शराब बिक्री से 8 हजार करोड़ रूपये से अधिक कमाई हुई थी।  इस तरह जिन राज्यों में शराब की बिक्री प्रतिबन्धित नहीं है वहां की सरकारें शराब से जबर्दस्त कमाई कर रही हैं।  कोरोना काल में लॉक डाउन के चलते खाली होते खजाने को भरने के लिए सरकार को शराब की दुकाने खोलनी पड़ी थीं।  

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शराब की बिक्री सरकारों का राजस्व बढ़ाने में भले ही महती भूमिका निभा रही हो।  परन्तु इसका सेवन किसी भी दृष्टि से हितकारी नहीं है।  समाज के आर्थिक और नैतिक पतन के लिए शराब ही सर्वाधिक जिम्मेदार है।  गृह कलह और घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों के मूल में शराब ही दिखाई देती है।  31 मार्च को हमीरपुर जनपद के मुस्करा नामक कस्बे में शराबी पति की प्रताड़ना और गृह कलह से आजिज आकर पत्नी ने चाकू से गला रेतकर उसकी हत्या कर दी थी।  नशेबाजी के चलते गाँवों, कस्बों तथा शहरों की गलियों में विवाद, मारपीट और हत्या तक के समाचार आये दिन प्राप्त होते हैं।  दरकते रिश्ते, टूटते परिवार, बिखरता सामाजिक ताना-बाना, छेड़छाड़ और बलात्कार के बढ़ते मामलों के लिए शराब का नशा ही प्रथम दृष्टया दोषी है।  

हर दिन होती मार्ग दुर्घटनाओं के ज्यादातर मामले शराब पीकर वाहन चलाने के कारण ही होते हैं।  जबकि शराब पीकर वाहन चलाना कानूनी जुर्म है।  फिर भी कोई मानने को तैयार नहीं है।  क्योंकि बाजार में शराब उपलब्ध है।  बिहार जैसे राज्यों में यदि शराब बिक्री प्रतिबन्धित है तो वहां अवैध रूप से शराब बिक रही है।  अन्यथा 17 प्रतिशत बिहारी शराबी न होते।  कोई कितने भी तर्क क्यों न दे परन्तु शराब का सेवन किसी भी दृष्टि से लाभदायक नहीं है।  आज गुजरात के विकास मॉडल की चर्चा हर जगह होती है।  सभी प्रदेश सरकारें उसका अनुकरण करना चाहती हैं।  परन्तु वहां की शराबबन्दी नीति की चर्चा कोई नहीं करता।  गुजरात राज्य यदि प्रगति के नित नये सोपान चढ़ रहा है तो उसके मूल में कहीं न कहीं वहां के लोगों का शराब मुक्त जीवन है। उत्तर प्रदेश सहित सभी राज्य सरकारों को इस दिशा में गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।  

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