देश में महिलाओं की सुरक्षा पहला उद्देश्य हो
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पिछले कुछ समय में देश के अलग-अलग हिस्सों में महिलाओं के प्रति अत्याचार और घृणित कृत्य के तमाम मामले सामने आए हैं। और उनमें से कोलकाता की घटना ने तो देश को झकझोर कर रख दिया। इसी तरह निर्भया केस को भी हम कभी नहीं भूल सकते। महिलाओं के प्रति लोग कैसे इतना हिंसक हो सकते हैं। आज जब हम महिलाओं को समाज में बराबर की हिस्सेदारी, सम्मान और सुरक्षा की बात करते हैं तो निर्भया और कोलकाता जैसे घृणित कृत्य हमें यह सोचने पर बाध्य कर देते हैं कि क्या महिलाएं सुरक्षित हैं। उसको समाज में हिस्सेदारी और सम्मान मिल रहा है जिसकी वह हकदार हैं। नहीं, हम जब तक नारी को सुरक्षित नहीं कर सकते तब तक उसके लिए हर बात बेमानी होगी। कोलकाता जैसी घटनाएं घट जाती हैं और हम महिलाओं की सुरक्षा की बात करते रहते हैं। इस तरह का कृत्य करने वाले दरिंदे आतंकवादियों से भी अधिक खतरनाक हैं। भारत में महिलाओं की सुरक्षा एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जो समय-समय पर चर्चा का विषय बनता रहता है। भले ही समाज में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, फिर भी महिलाओं की सुरक्षा के मामले में चुनौतियां बरकरार हैं।
यदि हम महिलाओं की सुरक्षा के आंकड़ों की बात करें तो भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या चिंताजनक है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि दर्ज की गई है। घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, और मानव तस्करी जैसे अपराध महिलाओं के लिए गंभीर खतरे हैं। ये आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कोलकाता की घठना के बाद गृहमंत्रालय द्वारा महिलाओं के सुरक्षा को और कड़ा करने के लिए कहा गया है। कानूनी सुरक्षा की बात हो रही है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत में कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14, 15, और 21 महिलाओं को समानता, भेदभाव से सुरक्षा, और जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। इसके अलावा, महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई विशेष कानून बनाए गए हैं, जैसे कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005, यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए विशाखा गाइडलाइंस और 2013 में बने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण पोस्को अधिनियम। हालांकि, कानूनों के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। इसका मुख्य कारण है कानून का सही तरह से लागू न हो पाना, न्याय प्रक्रिया में देरी, और सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव की कमी।
महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सामाजिक और सांस्कृतिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पारंपरिक सोच और पितृसत्तात्मक समाज के कारण महिलाओं को कई प्रकार के भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। कई बार, अपराधियों को समाज से समर्थन मिलता है, जिससे महिलाओं के खिलाफ अपराध करने का साहस बढ़ता है। इसके अलावा, महिलाओं को खुद की सुरक्षा के प्रति जागरूक व आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों में भी कमी है।हम लगातार महिलाओं की सुरक्षा में सुधार के उपाय ढूंढ रहे हैं।
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं कानून का सख्त पालन: कानूनों का सख्ती से पालन करना और अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दिलाना जरूरी है, ताकि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आ सके। सामाजिक जागरूकता: जिससे महिलाओं के प्रति समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण देना जरूरी है। तकनीकी उपाय: महिलाओं की सुरक्षा के लिए टेक्नोलॉजी का बेहतर उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि मोबाइल ऐप्स, सीसीटीवी कैमरों का विस्तार और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं। आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना उनके सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे वे आत्मनिर्भर होंगी और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकेंगी।
ऐसा नहीं है कि हमने महिला सुरक्षा पर काम नहीं किया हो लेकिन उसके निष्कर्ष हमारे सामने इतने अच्छे नहीं आ रहे हैं जैसा कि हम सोचते हैं। भारत में महिलाओं की सुरक्षा एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा है, जिसमें सामाजिक, कानूनी और सांस्कृतिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे सुधारने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कानूनी सुधार, सामाजिक जागरूकता और महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास शामिल हैं। केवल तभी हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं, जहां महिलाएं सुरक्षित और सम्मानित महसूस कर सकें। और जब तक हम देश में महिलाओं को सुरक्षित नहीं कर सकते तब तक हम देश की तरक्की के बारे में नहीं सोच सकते। हमारे देश में महिलाओं ने एक से बढ़कर एक नये आयामों को छुआ है। महिलाएं आज देश की तरक्की के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। लेकिन जब कोलकाता जैसी घटनाएं घटती हैं तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आखिर महिलाएं घर से बाहर कैसे निकलें। कैसे वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें। कैसे वह देश की तरक्की में अपना नाम लिखें। महिला सुरक्षा के मुद्दे पर अभी हमें बहुत कुछ सोचना है। और वह है लोगों में कड़े कानून का भय क्यों कि जब तक दरिंदों में भय व्याप्त नहीं होगा तब तक इस तरह की घटनाएं घटती रहेंगी।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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