माता कभी कुमाता नही बन सकती - स्वामी आशुतोषानन्द गिरी महराज

माता कभी कुमाता नही बन सकती - स्वामी आशुतोषानन्द गिरी महराज

 

स्वतंत्र प्रभात 

 

अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पवित्र जन्मभूमि अयोध्या में स्थानीय मंत्रार्थ मंडपम हनुमान गुफा में आयोजित श्री राम कथा में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त काशी के महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोष आनंद गिरि जी महाराज ने भक्तों को कथा का अमृतपान कराते हुवे कहा कि माता कभी कुमाता नही बन सकती है माँ हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करती है माँ के ही आशीर्वाद से बेटा बनता है भाग्य विधाता जब प्रभु श्री राम वन गए और जब 14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे तो वह का ही आशीर्वाद था जो शक्तिशाली रावण था उसे रण भूमि में परास्त किया औऱ उसका अंत कर दिया महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानन्द गिरी महर5 ने वन गमन के संबंध में कई महत्वपूर्ण प्रसंगो का उल्लेख किया। स्वामी जी के कथा में कथा का रस तो आता ही है बल्कि श्रोताओं को गहरे चिंतन की दशा में लेकर जाते हैं। एक प्रसंग के समानांतर कई प्रसंगों का उल्लेख श्रोताओं के हृदय पर अमिट छाप छोड़ता आप को बताते चलें कि महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानन्द जी महराज न्याय वेदांत के प्रकांड विद्वान है।वे बाल्य काल से ही राम कथा का प्रचार कर रहे है तथा सच्चे ज्ञान की तलाश में स्वामी जी घर परिवार और भौतिक सुख सुविधा को त्याग कर स्वामी रामबालक दास जी के सानिध्य में संत सेवा और योग साधना में लग गए। ऋते ज्ञानान्न मुक्ति: जैसे श्रुति वचन को आत्मसात कर अनंत ज्ञान की खोज में निकल पड़े। ज्ञान की खोज के सफर में हरिद्वार में स्वामी भरतानंद जी महाराज से लघु सिद्धांत कौमुदी, तर्क संग्रह एवं सांख्य दर्शन का अध्ययन किया। इसके पश्चात उच्च शिक्षा के लिए काशी आ गए। कैलाश मठ काशी में 14 सल तक उन्होंने व्याकरण एवं वेदांत का गहरा अध्ययन किया। अध्ययन क्रम में उन्होंने कई बर शास्त्रार्थ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेशों में राम कथा का अमृत पान कराया वे कोलकाता के स्वामी विवेकानन्द विश्वाविद्यालय में वे असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए पर संयास की ओर लगाव होने के कारण मार्च 2014 में शिवरात्रि के दिन उन्होंने संन्यास धारण कर लिया और एक नए जीवन में उनका प्रवेश हुआ। उन्होंने वन गमन प्रसंग के माध्यम से पुत्र और माता का प्रेम, भाई भाई का प्रेम, पति और पत्नी का प्रेम,पिता और पुत्र का प्रेम तथा एक राजा का अपनी प्रजा के प्रति प्रेम संबंध को दर्शाया। उन्होंने पुत्र और माता के प्रेम संबंध को दर्शाते हुए प्रभु श्री राम का माता कैकई का पैर छूना और उनसे आशीर्वाद लेकर विदा होने जैसे दृश्यों की और श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट किया। स्वामी जी ने कहा माता चाहे जिस परिस्थिति में हो वह कभी कुमाता नहीं हो सकती है। वह जैसी है उसे स्वीकार करो। वह हमेशा से वंदनीय रही है। उन्होंने पिता और पुत्र के संबंधों को लेकर कहा कि पिता की आज्ञा की अवहेलना मत करो। उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर ही महान बना जा सकता है। भाई और भाई के प्रेम को लेकर उन्होंने कहा की इस सदी में शांति की स्थापना के लिए भाई भाई के बीच आपस में प्रेम होना आवश्यक है। एक पति और पत्नी का संबंध तो शुरू से ही एक पवित्र संबंध रहा है। वनगमन जैसे प्रसंगओं की वजह से कथा आज भावुकता के चरम स्तर पर पहुंच गयी कथा का अमृतपान करने के लिए हजारों की संख्या में भक्तों का तांता लगा हुआ है

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