मजबूरी का नाम महात्मा मोदी है
स्वतंत्र प्रभात
आप कहेंगे कि राजनीति में मोदी जी के बिना कोई बात शुरू या खत्म क्यों नहीं होती ? तो मेरा उठता है कि मोदी जी के बिना अब देश का एक पल नहीं बीतता। मोदी जी हैं तो राजनीति का मजा है अन्यथा सब कुछ नीरस है। अक्सर भाजपा के मित्र एक जमाने में कहते थे कि राहुल गाँधी से पहले राजीव गांधी थे जिनके बिना राजनीति की बात पूरी नहीं होती थी। यानि हर किरदार का एक महत्व है। मोदी जी का भी अपना महत्व है। वे आज की राजनीति में किसी के लिए यदि मजबूती का नाम हैं तो मेरे लिए वे मजबूरी का नाम बन गए हैं। महात्मा मोदी जी की मजबूरियों की फेहरिस्त उनकी मजबूतियों से ज्यादा लम्बी है।
महात्मा मोदी जी और उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में राष्ट्र जीतने की ठानी है किन्तु उनके लिए इस समय महाराष्ट्र सबसे बड़ी चुनौती है। महाराष्ट्र जीतने के लिए मोदी जी ने अपने दोनों कार्यकालों में महाराष्ट्र की शिव सेना,एनसीपी और कांग्रेस को खंड-खंड करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुंबइया लहजे में कहें तो - ऐसा कोई सगा नहीं ,जिसे भाजपा यानि मोदी जी ने ठगा नहीं ,लेकिन बात नहीं बन रही । एकनाथ शिंदे और अजित पंवार के बाद भी महात्मा मोदी को अब महाराष्ट्र में मनसे के राज ठाकरे की चिरोरियाँ कर उन्हें अपनी अक्षोहणी सेना में शामिल करना पड़ रहा है।
महाराष्ट्र में हिंदुत्व की धुरी पर राजनीति करने वाले स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे की विरासत के दावेदार रहे राज ठाकरे को शिवसेना ने ठुकराया तो उन्होंने अपनी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बना l। हमारे यहां सेनाएं बनाने पर कोई रोक नहीं है लेकिन राज ठाकरे को सूबे की जनता ने विधानसभा चुनाव में ही खारिज कर दिया था । राज साहब की पार्टी के 101 प्रत्याशियों में से कोई 86 की जमानत जब्त हो गयी थी। बावजूद इसके राज भाई महाराष्ट्र का एक प्रमुख चेहरा है। महात्मा मोदी की मजबूरी ने उन्हें और महत्वपूर्ण बना दिया है।
महाराष्ट्र में सियासत की किष्किंधा तैयार हो रही है। महात्मा मोदी जी के हनुमान अमित शाह राज और मोदी जी की मिटाई करने के लिए पावक को साक्षी बनाकर उन्हें भाजपा के साथ खड़ा करने जा रहे हैं।महाराष्ट्र में महात्मा मोदी जी को अपना किला सुरक्षित रखने के साथ ही दोबारा जीतने के लिए कहीं की ईंट ही नहीं कहीं के भी रोड़े भी जुटाने पड़ रहे है। भवन निर्माण में ईंटों के साथ ही खाली जगह भरने के लिए रोड़े यानि अद्धा,पौना सबकी जरूरत पड़ती है। महाराष्ट्र ही क्या बिहार में महात्मा मोदी जी ने बुझते हुए चिराग को भी अपने साथ रख लिया है।
लेकिन इसके लिए उन्हें पारस से हाथ धोना पड़ा। यदि महात्मा मोदी मजबूती का नाम होते तो ये सब आखिर क्यों होता ? पारस की क्या मजाल होती कि वे मोदी जी के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर भाग निकलते ? मोदी जी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की नौना लगी ईंटें तक जमा करने में संकोच नहीं किया ,अन्यथा जिंदगी में एक भी चुनाव न जीतने वाले सुरेश पचौरी को पीले चावल देकर भाजपा में शामिल करने की क्या जरूरत थी ? मध्यप्रदेश में तो डबल इंजिन की सरकार हाल ही में बनीं है।
दरअसल मै महात्मा मोदी जी की दरियादिली और उदारता का कायल हूँ। वे दीन-हीन, दलित,पददलित ,भ्र्ष्ट,ईमानदार कमजोर और बाहुबली किसी में कोई भेद नहीं करते। सभी को गले लगा लेते है। वे राजनीति के शिव हैं। उन्हें किसी के विष से कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका स्पर्श पाकर विष अमृत और लोहा सोना हो जाता है। बहुत कम राजनेताओं के पास ये गुण होता है। गुण क्या आप इसे चुंबकीय आकर्षण कह सकते हैं। मुझे तो कभी-कभी लगता है कि किसी दिन महुआ मोइत्रा ,ममता और माया दीदी भी कहीं भाजपा में शामिल न हो जाएँ !
महात्मा मोदी जी को मैंने मजबूरी का नाम ऐसे ही नहीं दिया। मेरे पास अपनी बात के समर्थन के लिए एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। मै उन लोगों में से नहीं हों जो महात्मा मोदी को असुर सम्राट कहते है। मै उन्हें महात्मा मानता हूँ ,लेकिन मुझे ये बताने में कोई लज्जा नहीं आती कि जिन मोदी जी को दुनिया मजबूती का पर्याय समझते हैं वे सचमुच इतने कमजोर हैं की उन्हें झारखण्ड जीतने के लिए झामुमो की सीता की जरूरत पड़ गयी। झारखण्ड में मोदी जी का ऑपरेशन लोट्स पहले ही नाकाम हो चुका है ,लेकिन मोदी जी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अब जेल में बंद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन को भाजपा में शामिल कर लिया।
ये बात और है कि झामुमो की सीता भाजपा की अशोक वाटिका में बैठकर खुश दिखाई दे रहीं हैं,क्योंकि उन्हें यहां कोई त्रिजटा सताने नहीं आ रही। महात्मा मोदी ने झामुमो की सीता का अपहरण नहीं किया ,वे खुद बाखुद राजी-ख़ुशी से भाजपा में शामिल हुईं हैं। मजबूरी का नाम महात्मा मोदी होने के एक नहीं अनेक उदाहरण है। मोदी जी को हरियाणा जीतने के लिए अच्छे -खासे अपने पुराने हमराही मनोहर खटटर को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। अब हरियाणा भाजपा के असल हीरो अनिल विज साहब मुंह फुलाये घूम रहे हैं। लेकिन उनके लिए न कांग्रेस ने अपना दरवाजा खोला है और न वे खुद भाजपा से बाहर जाने का साहस जुटा पा रहे ,आखिर हैं तो वे भी महात्मा मोदी जी के ही भाई- बंधु।
एकदम मजबूर। महात्मा मोदी जी को अपना मिशन 400 पार पूरा करने के लिए दक्षिण में पीएमके के साथ हाथ मिलाना पड़ा । मजबूरी थी,क्योंकि उन्हें दक्षिण में कोई महात्मा मानने को राजी ही नहीं था। ख़ुशी की बात ये है कि महात्मा मोदी अपनी कमजोरी को हंसकर छिपा लेते हैं और अपनी सेंधमारी को ' सबका साथ, सबका विकास ' का चोला पहना देते हैं।
मुझे पूरा यकीन है कि जिस पीढ़ी ने महत्मा गाँधी को देखा नहीं,पढ़ा नहीं वो पीढ़ी ' मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी ' पर यकीन करे या न करे किन्तु ' मजबूरी का नाम महात्मा मोदी ' के जुमले पर जरूर यकीन कर लेगी,क्योंकि उसने महात्मा मोदी जी को देखा है।
महात्मा गांधी कभी महात्मा के चोले में नजर नहीं आये। लोग उन्हें अधनंगा फकीर कहते थे,लेकिम महात्मा मोदी जी को आप महात्मा के अनेक स्वरूपों में देख चुके है। कभी बद्रीनाथ मंदिर में कभी बाबा विश्वनाथ के प्रांगण में ,कभी तिरुपति में तो कभी यूएई में। मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्मा की उपाधि गुरुदेव रविंद्र नाथ ठाकुर ने दी थी किन्तु मोदी जी को ये उपाधि मेरे जैसा मामूली लेखक दे रहा है । अब वे इसे स्वीकार करें या न करें। जय सियाराम
@ राकेश अचल
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