कथित भू माफिया आफताब खान को बचाने में लगा तहसील प्रशासन

कथित भू माफिया आफताब खान को बचाने में लगा तहसील प्रशासन

स्वतंत्र प्रभात
विक्रीत आबादी की जमीन गाटा संख्या 327 एनजेड ए खाता संख्या 1 मिलकियत सुधीर माथुर ,संजय माथुर, सुजीत माथुर पुत्र गण सुरेश चंद्र माथुर के नाम दर्ज कागजात है उक्त जमीन महेश चंद्र माथुर ने किस आधार पर कर दी बिक्री अहम सवाल
 
बिना अधिकार छल कपट एवं साजिशी  फर्जी बैनामा कराए जाने के आरोप
लखीमपुर खीरी जिस भवन/ सहन भूमि का जूज अंश का विक्रय पत्र महेश चंद्र माथुर ने बिना किसी अधिकार के धोखाधड़ी पूर्ण ढंग से आफताब खान को करके एकबडा फर्जी वाडा किया है। उक्त विवादित बिक्रयपत्र को फर्जी जाली एवं साजिशी होने के साथ शून्य दस्तावेज भी वादी द्वारा बताया जा चुका है। उक्त प्लाट का कथित प्रतिफल 480000 बताया जाता है।
 
राजस्व अभिलेखों में वही संख्या एक जिल्द संख्या 10 143 पृष्ठ संख्या 271 से 318 पर क्रमांक 18555 पर उपनिवंधक कार्यालय लखीमपुर जिला खीरी में दिनांक 22/ 12 /2015 को कराया गया बैनामा पूर्णता फर्जी एवं जाली होने के आरोप लगाए गए हैं। यदि यह मान भी लें की महेश चंद्र माथुर का कोई अंश उक्त विवादित भूमि में है तो उसे बिना किसी सक्षम न्यायालय द्वारा विभाजन करने के पूर्व विक्रय करने का कोई अधिकार महेश चंद्र माथुर को प्राप्त नहीं होता है ।विभाजन से पूर्व किया गया बैनामा पूर्णता फर्जी जाली प्रतीत होता है।
 
बिना अधिकार छल कपट एवं साजिशन कराया गया फर्जी जाली बैनामा।
 
महेश चंद्र माथुर द्वारा दिनांक 22 /12 /2015 को किया गया आफताब खान को प्लाट का बैनामा फर्जी जाली एवं छल कपट पूर्ण ढंग से साजिशी मालूम पड़ता है ।उक्त विक्रीत जमीन महेश चंद माथुर के नाम नहीं है ।इसलिए इन्हें जमीन बेचने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है ।उक्त भूमि पर दुकानें बनी है जिसमें सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान का संचालन लगभग 30 वर्ष से होने की चर्चा आम है। जिसका किराया भी वादिनी द्वारा लिए जाने की बात न्यायालय में कही गई है।
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इतना ही नहीं बैनामे में विवादित भूमि की सीमाएं गलत लिखी होने की बात प्रकाश में आई है। जिस जमीन की बिक्री महेश माथुर ने की है वह भूमि उनकी नहीं किसी और की होने की भी आरोप लगाए गए हैं। इस फर्जी वाडा और धोखाधड़ी की जानकारी उस समय हुई बताई जाती है जब हैकड दबंग और सर्कस आदमी आफताब खान द्वारा दुकानों पर कब्जा करने का असफल प्रयास किया और नया निर्माण शुरू करने का प्रयास किया गया था। आफताब खान को हेकड सरकस एवं दबंग किस्म का व्यक्ति बताते हुए विवादित परिसंपत्तियों को खरीदने के बाद दबंगई के दम पर कब्जा करके विक्रय करने के गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं।
 
जब विक्रेता को जमीन की बिक्री करने का कोई विधिक अधिकार नहीं है है और ना ही उक्त आबादी की भूमि उनके नाम ही दर्ज कागजात थी। इतना ही नहीं सम्मिलित खाते के अंदर जमीन का जब तक कोई न्यायालय द्वारा विभाजन या बटवारा ना हो जाए तो बैनामा कैसे कर दिया गया? और उनके द्वारा किया गया बैनामा फर्जी जाली मालूम पड़ता है ।उक्त जमीन पर रात के अंधेरे में पुलिस टीम के साथ जाकर कब्जा दिलाया जाना कहां तक न्याय संगत है? ऐसी लेखपाल रमाकांत की क्या मजबूरी रही होगी जो रात को कब्जा दिलवाने का प्रयास किया गया।
 
यह तो ईश्वर की कृपा रही और एक पक्ष की सूझबूझ रही कहीं दुर्भाग्य बस मामला इसके उलट हो जाता और एक पक्ष भड़क जाता और शुरू हो जाता विवाद तो  उस विवाद का कौन जिम्मेदार होता। और सरकार की साख को भी बटटा लगना तय होता। किसकी होती जवाब देही ।कथित फर्जी जाली बैनामा वाली जमीन पर कब्जा दिलवाए जाने से आहत शिकायत करता ने मामले की शिकायत उच्च अधिकारियों से कर दोषी लेखपाल रमाकांत मिश्रा के विरुद्ध कार्यवाही किए जाने की मांग करने की बात कही है।
 

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