
राजनीतिक दलों का मुस्लिम प्रेम दर्शाना क्या 2024 की तैयारी का अंग हैं ?
भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस व सभी छत्रप दल ने 2024 के चुनाव की तैयारी जोर शोर से शुरू करदी है । एक तरफ जहाँ भाजपा के कार्यकर्ता अपनी सरकार में हुए विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं। बीजेपी कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से जनता के लिए उठाए गए महत्वपूर्ण कदम और योजना की जानकारी घर घर पहुंचाने का काम कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस समेत बीजेपी विरोधी क्षेत्रीय पार्टियां अलग मिशन पर हैं। अभी विपक्ष मोदी सरकार के 10 साल पूरे होने के बाद उन्हें केंद्र की सत्ता से बेदखल करने की योजना पर काम कर रहे है। कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस वैसे ही उत्साहित है। लेकिन इस पूरे सियासी पैंतरे को मुस्लिम वोटरों से जोड़ कर देखा जा रहा है।
हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी। दक्षिण भारत से शुरू हुई इस यात्रा ने जम्मू कश्मीर तक काफी सुर्खियां बटोरी। पूरी यात्रा के दौरान राहुल का बयान 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने आया हूं' चर्चा में रहा। इस नारे से माना गया कि पार्टी इसी के जरिए पुराने अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की रणनीति बना रही है। जो राज्यों में क्षेत्रीय दलों के दबदबे के कारण बंटा हुआ है। कर्नाटक में क्षेत्रीय दल जेडीएस की तुलना में कांग्रेस को मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में अच्छा समर्थन मिला। अब कांग्रेस राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ती हुई नजर आएगी।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की यह यात्रा भारत जोड़ो नहीं, बल्कि अपने पुराने वोट बैंक जोड़ने की यात्रा थी। इसमें दलित, आदिवासी और मुस्लिम सभी शामिल हैं। राहुल की यह यात्रा उन्हीं जगह से गुजरी यहां ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के अलावा दलित और आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। इसलिए निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि राहुल की यह यात्रा अल्पसंख्यकों को जोड़ने की यात्रा थी। क्योंकि कांग्रेस को पता है कि 1990 के पहले जो मुस्लिम समुदाय एकमुश्त कांग्रेस को वोट देता था। वह धीरे-धीरे क्षेत्रीय पार्टियों में शिफ्ट हो चुका है। कांग्रेस की यह यात्रा उन्हीं मुसलमानों को फिर से साथ जोड़ने के लिए थी। जिसमें कांग्रेस काफी हद तक सफल भी रही है।
इस समय कांग्रेसी नेता राहुल गांधी अमेरिका की यात्रा पर हैं।अमेरिका में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने यह कहा कि ‘मुस्लिम लीग’ एक सेक्युलर पार्टी है। लेकिन भारत में मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है। उनके ऊपर हमले किए जा रहे हैं। उनके अधिकारों को छीना जा रहा है और उन्हें बोलने तक नहीं दिया जा रहा। राहुल गांधी यहां तक बोल गए कि 1980 में दलितों का जो हाल था वर्तमान समय में वही स्थिति देश के मुसलमानों की है। इसके अलावा राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उपहास उड़ाते हुए कहा कि एक व्यक्ति को यह लगता है कि वह सब कुछ जानता है। राहुल गांधी ने अमेरिका में फिर कहा कि भारत का लोकतंत्र खत्म हो चुका है क्योंकि देश की संवैधानिक संस्थाओं पर सरकार का कब्जा हो चुका है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। विश्लेषकों का कहना है कि 2014 से लेकर अब तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चलने वाली सरकार की वजह से देश के हिंदुओं में धार्मिक भावनाओं का पुनः जागरण हुआ है। इसके साथ ही अपने 9 साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व में भारत की नई पहचान बनाई है। राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट रूप से कहना है कि आज पूरा विश्व भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को देख रहा है। वैश्विक स्तर पर ताकतवर देश के ताकतवर नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता और ताकतवर लीडर के रूप में जानने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि देश के भीतर नरेंद्र मोदी की सरकार बिना किसी भेदभाव के योजनाओं का लाभ देश की जनता तक पहुंचा रही है। लेकिन कुछ पार्टियां मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की होड़ में तुष्टिकरण की राजनीति पर उतर चुकी है।
देश विरोधी ताकतें भी मुसलमान और जाति में बंटे हुए हिंदुओं के दम पर लगातार देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। देश विरोधी ताकतें भारत की बढ़ती ताकत और अर्थव्यवस्था को हर हाल में रोकना चाहती है। राजनीतिक और चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार भले ही बिना किसी भेदभाव के देश की जनता के साथ मुसलमानों को भी योजना का लाभ पहुंचा रही है। लेकिन देश के 98 प्रतिशत मुसलमान आज भी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में मतदान करते हैं। इसी मुसलमान वोट बैंक को हासिल करने के लिए बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों के बीच होड़ मची है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमान पूरी तरह से कांग्रेस के साथ जुड़ चुके हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस पूरे देश में अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ती है तो निश्चित तौर पर उन्हें फायदा होने वाला है। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव के मैदान में उतरती है तो उसे नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इधर मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की तरफ देखते हुए क्षेत्रीय पार्टियों की चिंता बढ़ गई है। यही वजह है कि नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव समेत तमाम क्षेत्रीय दलों के नेता खुलकर तुष्टिकरण की राजनीति करने लगे हैं।
भाजपा के लोगों का कहना है कि मुस्लिम वोट के चक्कर में नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता कुछ भी कर सकते हैं। भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार घुसपैठिए रोहिंग्या बांग्लादेशियों को बसाकर उन्हें मुफ्त में राशन बिजली पानी मुहैया करा रही है। ये भी तुष्टीकरण की ही एक बानगी है। वहीं बिहार के सीमांचल का इलाका समेत कई जिलों में तेजी से बदलती डेमोग्राफी यह बताने के लिए काफी है कि राज्य में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ कितनी तेजी से हो रही है। लेकिन नीतीश सरकार ऐसे घुसपैठियों पर रोक लगाने के बजाए पी ऍफ़ आई जैसी देश विरोधी संस्थाओं पर केंद्र सरकार के बैन का विरोध करती है। प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि नीतीश कुमार के मुंह से कभी भी लव जिहाद के खिलाफ एक शब्द नहीं निकला। हाल ही में जिस प्रकार से दिल्ली में अभी साक्षी की हत्या की गई है उसे लेकर उनके मुंह से शब्द नहीं निकलते। नीतीश कुमार के मंत्री हिंदुओं के सबसे पवित्र धर्म ग्रंथ रामचरितमानस का अपमान करते हैं। उनकी पार्टी के नेता बिहार के शहर को कर्बला बनाने की बात करते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेते। प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि देश और बिहार की जनता कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों को अच्छी तरह से पहचान चुकी है। 2024 के लोकसभा चुनाव के चुनाव में जनता तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों को करारा जवाब देकर उनका राजनीति का अंत करने वाली है।
अब तो भाजपा का भी मुस्लिम वोटों की तरफ आकर्षण बढ़ रहा है । दरअसल, मुसलमानों को टिकट देने के मामले में भाजपा का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। पहले कुछ उग्र भाजपा नेता यह कहते हुए भी सुने गए हैं कि हमें मुसलमानों के वोट ही नहीं चाहिए। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में भी भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार गायब दिखते हैं। अगर उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा और लोक सभा चुनावों के भाजपा उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो वहां भी मुस्लिम उम्मीदवार नदारद थे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है, तो दूसरी तरफ बसपा की लोकप्रियता भी घटी है। ऐसे में भाजपा के सामने समाजवादी पार्टी ही बड़ी चुनौती है। भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर सपा को बड़ी चुनौती देना चाहती है। हालांकि यह अभी भविष्य के गर्भ में है कि भाजपा सपा को चुनौती देकर मुसलमानों को भाजपा की तरफ खींचती है या नहीं। अभी तक भाजपा सरकार से विभिन्न सुविधाएं मिलने के बावजूद ज्यादातर मुसलमान भाजपा के लिए अच्छी राय नहीं रखते। वे यही सोचते हैं कि भाजपा जानबूझकर समाज में मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा करने की कोशिश करती है।
हालांकि भाजपा विश्वास दिलाने की कोशिश करती रही है कि मुसलमानों को सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन मुसलमान भाजपा पर विास नहीं कर पा रहे। वास्तविकता यह है कि मुस्लिम समुदाय भाजपा से अपना जुड़ाव महसूस नहीं करता। हालांकि ऐसा नहीं है कि मुसलमान भाजपा से बिल्कुल नहीं जुड़े हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ या फिर किसी अन्य कारणों से बहुत कम मुसलमान भाजपा से जुड़े हैं। भाजपा की रणनीति है कि एक बार मुसलमानों का भाजपा से जुड़ने का प्रतिशत बढ़ जाएगा तो मुस्लिम समुदाय के बड़े तबके को आसानी से भाजपा के साथ जोड़ा जा सकेगा। पार्टी अच्छी तरह जानती है कि भले ही वह मुसलमानों को अपना वोटर न माने लेकिन भविष्य में बदली हुई परिस्थितियों में विभिन्न तरह की चुनौतियां बढ़ेंगी। ऐसे में अगर मुस्लिम वोटर भाजपा के साथ होगा तो इन चुनौतियों से आसानी से निपटा जा सकेगा। वैसे भी अब भाजपा हर वर्ग और समुदाय में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है कि भाजपा को दलित समुदाय के वोट भी अच्छी खासी मात्रा में मिले। इसलिए अगर वह मुस्लिम वोटरों को साध लेगी तो एक तीर से दो निशाने लग जाएंगे। एक तो मुसलमानों से नफरत करने के आरोप का दाग धुल जाएगा; दूसरा, इस प्रक्रिया से भाजपा की ताकत भी बढ़ेगी। हालांकि मुस्लिम वोटरों को साधना व्यावहारिक रूप से इतना आसान नहीं है। देखना है कि अगले चुनाव में भाजपा की बदली हुई रणनीति सफल हो पाती है, या नहीं।
अशोक भाटिया,
वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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