विश्व तंबाकू निषेध दिवस:
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बाराबंकी।
तंबाकू सेवन में भारत दुनिया की राजधानी कहा जाने लगा है। देश में सालाना 13.50 लाख लोगों की मौत तंबाकू उत्पादों की वजह से हो रही है। यह आंकड़ा कोरोना महामारी सेे बीते तीन साल में हुई मौतों के लगभग तीन गुना है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को बढ़ावा देने में तंबाकू सबसे आगे है। इन भयावह आंकड़ों के बावजूद लोगों का शौक खत्म होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। अशीष कुमार की रिपोर्ट...
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पल्मोनरी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जीसी खिल्लानी कहते हैं, यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम दुनिया में तंबाकू कैपिटल की पहचान बनते जा रहे हैं। देश की 28.6 फीसदी आबादी धूम्रपान के अलावा गुटखा, खैनी, पान मसाला का शौक रखती है। तंबाकू का उपयोग आमतौर पर किशोरावस्था में शुरू होता है, लेकिन कुछ वर्ष बाद इसके दुष्प्रभाव सेवन करने वाले का जीवन पूरी तरह से बर्बाद करने लगते हैं। तंबाकू छोड़ना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह नामुमकिन कतई नहीं है। इसके लिए जरूरी है बस आत्मविश्वास और कुछ दवाओं का सहारा।
देर से आती है समझ फिर भी सबक नहीं
अक्सर तंबाकू का सेवन करने वाले इसके दुष्प्रभावों के बारे में देर से समझ पाते हैं। इन्हें तब अहसास होता है, जब इसका बुरा असर उनकी जिंदगी या फिर शरीर पर पड़ता है। धूम्रपान छोड़ने से मृत्यु दर के जोखिम में कमी आती है। जिन लोगों ने समय रहते सबक लिया है, उनमें जान का जोखिम 2.8 फीसदी से कम होकर 1.15 फीसदी रह गया। -
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