धन्य हुआ कुशीनगर की धरती : आज कुशीनगर से प्रभु श्री राम शिला लेकर गोरखपुर पहुंच रही वाहन 

रामलला की मूर्ति के लिए नेपाल से आ रहीं शिलाएं, बिहार से अयोध्या तक हो रही स्वागतम।

धन्य हुआ कुशीनगर की धरती : आज कुशीनगर से प्रभु श्री राम शिला लेकर गोरखपुर पहुंच रही वाहन 

कुशीनगर बार्डर सलेमगढ़ में श्रीराम भक्त साधुसंत पुष्पवर्षा कर कर रहे शिला का पूजा अर्चना

ऑनलाइन न्यूज चैनल स्वतंत्र प्रभात 

ब्यूरो प्रमुख,प्रमोद रौनियार 

कुशीनगर।आज बड़ी सौभाग्य की बात रामभक्तो को बताने में मन हर्षित हो रहा हैं कि आज 31 जनवरी दिन मंगलवार अपरान्ह 1:00 बजे टोल प्लाजा सलेमगढ़ से विशाल रामलला शीला लेकर वाहन अयोध्या गुजरेगी जहा पूजन कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया है। भगवान रामलला के शालिग्राम शिला जो नेपाल से लाकर अयोध्या जा रही है। कुशीनगर की धरा भी राम शिला मार्ग से धन्य होगी। उत्तर प्रदेश सीमा सलेमगढ़ में रामभक्तो द्वारा स्वागत की तैयारी हो चुकी हैं। जिसमें क्षेत्र के जिला पंचायत अध्यक्ष, प्रमुख, पूर्व विधायक तथा सभी पदाधिकारी सहित कुशीनगर के रामभक्तो द्वारा जोरदार पूजापाठ स्वागत समारोह किया जायेगा।

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बताते चले कि नेपाल की काली गंडक नदी से दो विशालकाय शालिग्राम शिलाएं अयोध्या लाई जा रही हैं, ये दोनों शिलाएं 2 फरवरी को अयोध्या पहुंचेंगी, इन शिलाओं से ही भगवान श्री राम की मूर्ति को तैयार किया जाएगा। शुक्रवार को ये शिलाएं जनकपुर पहुंचीं, वहां विधिवत पूजन और अनुष्ठान किया गया है,ये शिलाएं बिहार के मधुबनी बॉर्डर से भारत में प्रवेश कर चुकी है और आज 31 जनवरी की दोपहर बाद गोरखपुर के गोरक्षपीठ पहुंचेंगी।

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अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है, यहां रामलला की जो मूर्ति स्थापित की जाएगी, उसके लिए नेपाल की गंडकी नदी के शालिग्राम पत्थर लाए जा रहे हैं, इन पत्थरों से ही मूर्ति तैयार की जाएगी,ये पत्थर दो टुकड़ों में है और इन दोनों शिलाखंडों का कुल वजन 127 क्विंटल है,जानकारों का कहना है कि महीनों की खोज के बाद शालिग्राम पत्थर के इतने बड़े टुकड़े मिल पाए हैं, ये शिलाखंड दो फरवरी को अयोध्या पहुंचेगी, नेपाल से अयोध्या आने में 4 दिन का समय लगेगा और ये काफिला रोजाना करीब 125 किलोमीटर का सफर तय करेगा। जानकारी के मुताबिक, दो दिन पहले नेपाल में पोखरा के पास गंडकी नदी से शालिग्राम पत्थर की दोनों शिलाओं को क्रेन की मदद से बड़े ट्रक में लोड किया गया हैं, इन पत्थरों को सबसे पहले पोखरा से नेपाल के जनकपुर लाया गया है,जनकपुर के मुख्य मंदिर में पूजा-अर्चना की गई,शुक्रवार को इन शिलाखंडों का दो दिवसीय अनुष्ठान प्रारंभ हुआ, विशेष अनुष्ठान के बाद ये शिलाएं बिहार के मधुबनी बॉर्डर से भारत में प्रवेश करेंगी और अलग-अलग जगहों पर रुकते हुए 31 जनवरी की दोपहर बाद उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के गोरक्षपीठ पहुंचेंगी।

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इन मार्गों से आ रही शालिग्राम शिलाएं, पहुंचेंगी अयोध्या

जनकपुर में विशेष अनुष्ठान और पूजन के बाद आज 30 जनवरी की सुबह लगभग 8.30 बजे शालिग्राम शिलाएं बिहार के मधुबनी जिले के बॉर्डर से भारत में प्रवेश कर गई। मधुबनी से साहरघाट प्रखंड पहुंची वहां से कंपोल स्टेशन होते हुए दरभंगा के माधवी से फोरलेन पकड़कर मुजफ्फरपुर आ गई, मुजफ्फरपुर से त्रिपुरा कोठी गोपालगंज होते हुए सासामुसा बॉर्डर से यूपी के कुशीनगर जनपद सलेमगढ में प्रवेश करेंगी।

गोरक्षपीठ में होगी शिलाखंडों की पूजा

31 जनवरी को करीब 2 बजे ये शिलाएं गोरखपुर के गोरक्षपीठ पहुंच जाएगी,जहां इन शालिग्राम शिलाओं की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की तैयारी जोरों पर है। सूत्रों की मानें तो इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वहां मौजूद रह सकते हैं। 31 जनवरी को शिला लेकर आ रहा पूरा काफिला गोरक्षपीठ मंदिर में ही विश्राम करेगा, गोरखपुर से चलकर 2 जनवरी को यह शिलाएं अयोध्या पहुंचेंगी, अयोध्या में भी संतों-महंतों द्वारा इसका विधिवत पूजन अर्चन किया जाएगा।

यह है शालिग्राम पत्थरों की मान्यता, कहा जाता है देव शिला

शालिग्राम पत्थरों को शास्त्रों में विष्णु स्वरूप माना जाता है, वैष्णव शालिग्राम भगवान की पूजा करते हैं, इसलिए यह पूरा पत्थर शालिग्राम है। इसे अधिकतर नेपाल की गंडकी नदी में पाया जाता है, हिमालय के रास्ते में पानी चट्टान से टकराकर इस पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है और नेपाल के लोग इन पत्थरों को खोज कर निकालते हैं और उसकी पूजा करते हैं।

दो शिलाओं से ऐसे बनेगी रामलला की मूर्ति 

अयोध्या पहुंचने के बाद शालिग्राम की इन शिलाओं से रामलला की मूर्ति तैयार करने की अलग ही प्रक्रिया है। रामलला की मूर्ति तैयार करने के लिए जिन मूर्तिकारों और कलाकारों का चयन किया गया है, वह पहले अपनी ड्रॉइंग और सैंपल श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को देंगे। जिसका भी ड्रॉइंग और सैंपल पसंद आएगा, उसी मूर्तिकार को शालिग्राम का यह पत्थर रामलला की मूर्ति बनाने के लिए दिया जाएगा,रामलला की मूर्ति 5 से साढ़े 5 फीट की बाल स्वरूप की होगी। मूर्ति की ऊंचाई इस तरह तय की जा रही है कि रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें सीधे रामलला के माथे पर पड़ें।

नेपाल में किया गया जबरदस्त स्वागत

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य और अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर में सबसे पहले शिलान्यास करने वाले कामेश्वर चौपाल कहते हैं कि जब शालिग्राम की शिलाएं लेकर निकले तो रास्ते में सड़कों के दोनों तरफ नेपाल के लोग खड़े दिखे, जो इस तरह शिलाओं का पूजन अर्चन कर रहे थे कि मानो त्रेता युग आ गया हो, मिथिला में तो रामलला के प्रति इतना श्रद्धा और स्नेह दिखाई दिया जिसको देखने के बाद मैं बस अभिभूत हो गया, मेरे पास बोलने के लिए शब्द नहीं हैं।

बिहार से अयोध्या तक स्वागत में पुष्पवर्षा अभिनंदन कर रहे हैं साधु-संत

शिलाखंडों को लेकर आ रहे लोगों में जनकपुर मंदिर के मुख्य महंत और वहां के साधु संत हैं, इसके अलावा, रास्ते में बिहार के प्रमुख मठ-मंदिरों के साधु संत भी शामिल हो रहे हैं, यूपी में प्रवेश के पहले नेपाल के स्थानीय लोग बॉर्डर तक छोड़ने जाएंगे, यूपी में प्रवेश के साथ ही बिहार के अलग-अलग मंदिरों के साधु संत और स्थानीय लोग पुष्पवर्षा और पूजन-अर्चन करते रहेंगे, यह सिलसिला अयोध्या तक जारी रहेगा। यहां पहुंचने पर स्थानीय साधु-संत एकत्रित होकर इन शालिग्राम शिलाओं की विधिवत पूजन अर्चन करेंगे।

नेपाल और भारत के रिश्तों में भी होगा अद्भुत संगम

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अयोध्या में जन्मे, लेकिन उनकी ससुराल जनकपुर नेपाल में थी,ये रिश्ता अपने आप में प्रगाढ़ है, लेकिन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के गर्भ गृह में जो रामलला की मूर्ति होगी, उसके लिए शिलाएं अगर नेपाल के गंडकी नदी से आ रही हैं तो फिर क्या कहना, इसीलिए नेपाल के गृह मंत्री और प्रधानमंत्री खुद 25 गणमान्य लोगों के साथ इस काफिले के साथ नेपाल बॉर्डर तक आएंगे। उसके बाद भारत भी आएंगे,साफ जाहिर है रामलला एक बार फिर अपने ससुराल को अपने देश से जोड़ देंगे और उस पुराने रिश्ते को कायम कर देंगे जो वर और वधू पक्ष के बीच होता है।

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