2022 का विधानसभा चुनाव हमेशा याद किया जायेगा, महिलाओं के सहारे भाजपा की यूपी में हुई वापसी

2022 का विधानसभा चुनाव हमेशा याद किया जायेगा, महिलाओं के सहारे भाजपा की यूपी में हुई वापसी

2022 का विधानसभा चुनाव हमेशा याद किया जायेगा, महिलाओं के सहारे भाजपा की यूपी में हुई वापसी

बाराबंकी 10 मार्च  चुनाव खत्म होने के बाद 07 मार्च को टीवी चैनलो का आया एग्जिटपोल तथा 10 को आये परिणामों से प्रदेश में कौन राज्य करेगा फाइनल हो गया। मोदी के जादुई चेहरे पर योगी  प्रचंड बहुमत से पुनः सत्ता में आ गए।  अब सिर्फ अरोप-प्रत्यरोप ही शेष रह जायेंगे। 

ईवीएम मशीन चुनाव हराने वालो के लिए बेवफा हो गई। जो अभी महीनो चलता रहेगा? किन्तु 2022 का विधानसभा चुनाव कुछ मायनों में हमेशा चर्चा में रहेगा। बीते चुनाव में पूरे प्रदेश में सिर्फ भाजपा व सपा के गोले में चुनाव घुमता रहा। कोरोना संक्रमण के कारण कोविड़ गाइड लाइन के तहत चुनाव आयोग के निर्देश पर पार्टियों द्वारा आनलाइन प्रचार व रैलियां की गई, जो यूपी के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ।

बीते चुनाव में भाजपा के स्टाप प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिहं, अनुराग ठाकुर, स्मृति ईरानी प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ, केशव प्रसाद मौर्या कांग्रेस से प्रियंका गांधी, राहूल गांधी तथा सपा के स्टार प्रचारक अखिलेश यादव अकेले ही प्रदेश में रैलियां व जनसभाएं करके अपनी पार्टी के लिए वोट मांगे। इस चुनाव में वर्चुअल रैलियों व आनलाइन प्रचार की जबरदस्त घूम रही। वही इस चुनाव में आईटी सेल का भी महत्वपूर्ण रोल रहा। पूरे चुनाव में अरोप-प्रत्यरोप का बोलबाला रहा किन्तु चुनावी मुद्दे नदारद रहे।

यूपी के इतिहास में पहली बार दो मुख्यमंत्री के चेहरे चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहें थे वही तीसरा मुख्यमंत्री का चेहरा तो रहा परन्तु उन्होने चुनाव नहीं लड़ी वह थी बसपा प्रमुख मायावती जिन्होंने इस चुनाव में बहुत ही कम चुनाव प्रचार में निकली वही भाजपा के मुख्यमंत्री के चेहरा वर्तमान मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी तथा पूर्व मुख्यमंत्री सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनावी समर में कूद कर अपनी किस्मत अजामा रहें थें इससे पूर्व दोनों लोग जब मुख्यमंत्री बने थें तो वह विधानसभा सदस्य नहीं थे।

 मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान परिषद सदस्य बनाये गये थे पहली बार दोनो नेता मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर चुनाव लड़े। उत्तर प्रदेश में 2007 में बसपा, 2012 में सपा तथा 2017 में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार तो बनाई थी किन्तु तीनो बार ऐसा नही हुआ था कि चुनाव सिर्फ दो पार्टियों के बीच सिमट कर रह गया हो। इन तीनो चुनाव में कांग्रेस, सपा, बसपा, भाजपा तथा राष्ट्रीय लोकदल बराबर का चुनाव मेहनत से लड़ती रही। किन्तु इस बार यूपी के चुनावी समर में छोटी-बड़ी करीब एक दर्जन से अधिक राजनीतिक पार्टियां चुनावी मैदान में उतारी, परन्तु चुनाव घोषित होने से मतदान होने तक हर सीट पर सिर्फ सीधी लडाई भाजपा व सपा के बीच ही देखने को मिली। 

दो-चार सीटो पर अपवाद स्वरूप कही बसपा तो कहीं कांग्रेस तो कही रालोद सर्घष करती नजर आई। 2022 का विधानसभा चुनाव पोस्टल बैलट मतदान के लिए भी जाना जायेगा क्योकि चुनाव आयोग ने पहली बार दिव्यांगो व बुजुर्गों को पोस्टल बैलट की सुविधा घर बैठे प्रदान की। मतदान कर्मियों ने घर-घर पहुँच कर इन लोगो से मतदान कराया जिसका असर चुनाव पर भी पड़ा। प्रत्याशियों की जीत हार में इन पोस्टल बैलट पेपरो का बहुत योगदान रहा।

2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की पुनः वापसी में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा, क्योकि इस बार महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला जिसके चलते यूपी में पुनः भाजपा सरकार आ गई। सीएसडीएस - लोकनीति के प्रोफेसर संजय कुमार और श्रेयश सरदेसाई की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं ने दो प्रतिशत अधिक मतदान किया।

 ग्रामीण क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की चुनाव में बढ़ी भगीदारी से यह अन्तर पैदा हुआ है। लोकतंत्र के इस महापर्व उत्सव में यूपी में शहरो के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने 15 प्रतिशत अधिक मतदान करने का इतिहास रचा। सर्वे के अनुसार यूपी में 83 प्रतिशत महिलाओं ने परिवार व पति के बिना सलाह लिए अपने मत का प्रयोग किया। बीते 15 सालों में महिलाओं का वोट प्रतिशत 20 फीसदी से अधिक रहा। 

जिसका लाभ सीधे भाजपा को मिला जिसका प्रमुख कारण महिलाओं की सुरक्षा, अच्छी कानून-व्यवस्था, मुफ्त राशन, उज्जवला योजना के तहत फ्री गैस कनेक्शन तथा कोरोनाकाल मे जनधन खातों मे पाँच-पाँच सौ रूपये महिलाओं को लाभ मिला जिसे महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में वोटिंग करके योगी व मोदी के सपनो को पूरा कर दिया।

 इस चुनाव में साइकिल शुरू में तो खूब चली तो किन्तु रफ्तार पकड़ने से पहले पंचर हो गई, वही हाथी गन्ने के खेत में भूख मिटाने चला गया और पंजा तो कही सर्घष में रहा ही नहीं। अपनी हार से बौखालएं विपक्षी एक बार फिर ईवीएम पर उंगली उठाने लगे, और उनके लिए ईवीएम बेवफा हो गई, किन्तु यही दल जब चुनाव जीत जाते तो उन्हें ईवीएम में कोई खामी नजर नही आती।

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