कमल,पंजा साइकिल हाथी में हुई जंग जारी; कौन किसपे पड़ेगा भारी

कमल,पंजा साइकिल हाथी में हुई जंग जारी; कौन किसपे पड़ेगा भारी

कमल,पंजा साइकिल हाथी में हुई जंग जारी; कौन किसपे पड़ेगा भारी

रायबरेली-जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही वैसे ही लोगों में चुनावी मुद्दों को लेकर सुगबुगाहट तेज हो चली हर चौराहे ,हर गांव व मुहल्ले में चुनाव को लेकर जुबानी जंग जारी है कोई योगी जी के कामों को गिना रहा तो कोई उनकी सरकार में हुई परेशानियों को, पर सवाल ये है कि सरेनी विधानसभा क्षेत्र का जनमानस किसे अपने नेता के रूप में स्वीकार करेगा, 
 एक जमाने में जिस सरेनी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लहर रहती थी वह पिछले दस सालों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रही थी एसे में एक कद्दावर नेता के चुनाव ना लड़ने के एलान ने जहां एक ओर कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें बढा दी थी वहीं दूसरी ओर अन्य पार्टियों के लिए जीत की राह को थोड़ा आसान भी बना दिया था,
 तभी सरेनी विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी द्वारा उम्मीदवारों की सूची जारी करने के बाद एक ऐसा दिलचस्प मोड़ आया जिसने पूरे राजनीतिक समीकरण को ही बदल के रख दिया और यह मोड़ तब आया जब भारतीय जनता पार्टी ने आम जनमानस में टिकट की प्रबल दावेदार दिख रही सुधा व्दिवेदी पे भरोसा न जताते हुए अपने पूर्व विधायक धीरेन्द्र बहादुर सिंह पे ही दांव लगाना सही समझा।
 एसे में अपने समाजसेवा के कार्यो से अपार जनसमर्थन व लोगों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल कर चुकी सुधा व्दिवेदी को चुनाव लडने के लिए जहां एक पार्टी की आवश्यकता थी वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी को भी एक सुधा व्दिवेदी जैसी कद्दावर नेता की।
एसे में सुधा व्दिवेदी को अपनी पार्टी से टिकट दे जहां एक ओर प्रियंका गांधी ने "लड़की हूं लड सकती हूं " नारे को साकार किया वहीं दूसरी ओर सुधा व्दिवेदी को अपनी पार्टी से चुनावी अखाड़े में उतार कर विपक्षी पार्टी के नेताओं को भौंचक्का कर दिया। 
भाजपा और समाजवादी पार्टी ने क्षत्रिय नेताओं को मैदान में उतार कर चुनावी मैच को बराबर की टक्कर में लाकर खड़ा कर दिया था वैसे में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सुधा व्दिवेदी को मैदान में उतार कर दोनों पार्टियों की मुश्किलों को ऐसे बढ़ा दिया जैसे एक ओवर में बीस रन बनाने हो और भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अन्तिम ओवर भुवनेश्वर को थमा दिया हो ,वहीं 2007, 2012, 2017 के विधानसभा चुनावों में लगातार दूसरे स्थान पर काबिज रहने वाली बसपा पार्टी को कम आंकना भी ठीक नहीं है
एसे में यदि यह चुनाव जातीय समीकरणों में उलझता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को होगा तो वो भारतीय जनता पार्टी को होगा और पहले से भी आवारा घूमते मवेशियों बेरोजगारी महंगाई से सरेनी विधानसभा के किसानों में काफी नाराजगी है
एसे में मोदी लहर का भी कोई खास प्रभाव पड़ता नजर नहीं आ रहा। उसके बाद भाजपा समर्थकों का भाजपा उम्मीदवार धीरेन्द्र बहादुर सिंह के प्रति आक्रोशात्मक रवैया
*योगी तुझसे बैर नहीं, धीरेन्द्र तेरी खैर नहीं*
*धीरेन्द्र तो मजबूरी हैं यूपी में योगी बहुत जरूरी है* 
ये नारे भले ही पार्टी से प्रेम व्यक्त करते हैं लेकिन उसी भाजपा के चुनावी माहौल को खराब कर रहे हैं इसके बाद भाजपा का वोट बैंक रहे ब्राह्मण समाज में भी एक रोष व्याप्त है कि जिस ब्राह्मण समाज ने भारतीय जनता पार्टी को सरेनी क्षेत्र से पहली बार विजय दिलाई जिसके नेताओं ने कांग्रेस के गढ़ रहे सरेनी क्षेत्र में भाजपा की लहर बनाई इन सबके बाद भी उन्हें टिकट न दिया जाना कहीं न कहीं पार्टी से अपना मोह भंग करने के लिए मजबूर कर रहा, ऐसे में बेरोजगार युवाओं , किसानों व ब्राह्मण वर्ग के लोगों की नाराजगी भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है
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