कांग्रेस विचार है या बेचारी ?

कांग्रेस विचार है या बेचारी ?

कांग्रेस विचार है या बेचारी ?

कहते हैं कि कांग्रेस देश में लगातार कमजोर हो रही है और अब कांग्रेस एक विचार नहीं बल्कि एक बेचारी कांग्रेस हो गयी है .इस अनुमान में वास्तविकता कितनी है ये जानने कि लिए आपको अभी एक महीने तक प्रतीक्षा करना पड़ेगी. पांच राज्यों कि विधानसभा चुनाव इस बात को प्रमाणित करेंगे कि कांग्रेस आज कि दौर में विचार है या बेचारगी .

कांग्रेस में इन दिनों मची भगदड़ को देखकर लगने लगा है जैसे कांग्रेस का कोई घनीधोरी नहीं है .यदि होता तो कांग्रेस एक के बाद एक प्रदेश में बगावत की समस्या से न जूझ रही होती .कांग्रेस अकेले राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बगावत पर फतह हासिल कर पायी है अन्यथा मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने बगावत की वजह से अपनी सरकार गंवा दी और पंजाब में बगावत की वजह से ही उसे विधानसभा चुनावों में परेशानी का समाना करना पड़ रहा है .दिनों -दिन दुबली हो रही कांग्रेस को अब कोई भी राजनीतिक दल अपने लिए चुनौती नहीं मान रहा ,बावजूद इसके कांग्रेस अभी है .
देश की राजनीति को कांग्रेस विहीन करने का सपना भाजपा का है और इस दिशा में भाजपा ने गंभीर प्रयास किये भी हैं ,लेकिन बीते सात साल में उसका संकल्प कहिये या सपना पूरा नहीं हो पाया है .कांग्रेस खत्म होते-होते पुन : जीवित हो जाती है .सर्वशक्तिमान होकर भी भाजपा को कांग्रेस का भूत सताता रहता है. भाजपा नेताओं कि सपने में राहुल गांधी आते ही रहते हैं ,हालांकि भाजपा राहुल गांधी को पप्पू कहकर उनका मजाक बनाने से कभी नहीं चूकती .
इस समय कांग्रेस से पूर्व राजा-महाराजाओं की भगदड़ जारी है. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया कि बाद पंजाब में दरभंगा नरेश और अमरेंद्र सिंह और अब उत्तर प्रदेश में राजा आरएनसिंह समेत तमाम छोटे-बड़े सामंत रवानगी डाल चुके हैं.सबने या अधिकाँश ने भाजपा में शरण ली है .भाजपा अब इन शरणार्थियों का कहीं राजतिलक कर रही है और कही प्रतीक्षा सूची में रखे हुए है .जनता के लिए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये पूर्व सामंत वरेण्य हैं या नहीं इसकी परख अभी होना बाक़ी है ,क्योंकि किसी भी शरणार्थी पूर्व सामंत ने अभी जनता का सामना किया ही नहीं है .
आपको याद होगा कि कांग्रेस कि सामने इस तरह की चुनौतियाँ पिछले पचास साल से लगातार आती रहीं हैं. हर बार लगता है कि कांग्रेस अब दोबारा अपने पांवों पर खड़ी नहीं होगी,लेकिन सारे अनुमान गलत साबित हो जाते हैं. कांग्रेस देश में लोकतंत्र का गला घोंटने कि जघन्य अपराध कि बावजूद मात्र ढाई साल कि अंतराल कि बाद वापस सत्ता में लौट आयी थी ,ये बात और है कि इस बार कांग्रेस को सत्ता में लौटने के लिए लंबा इन्तजार करना पड़ रहा है. कांग्रेस सत्ता में लौटे या न लौटे इससे एक लेखक के तौर पर हमारा कोई वास्ता नहीं है ,हमारी चिंता में तो देश का भविष्य है .आपकी चिंता में भी शायद होगा .
कांग्रेस की दुर्दशा की वजह उसके पास सबल नेतृत्व का अभाव माना जा रहा है .कहा जा रहा है कि राहुल गांधी कांग्रेस को सम्हालने में खुद नाकाम रहे हैं और किसी दूसरे को वे कमान सम्हालने नहीं दे रहे .अब सवाल ये है कि कांग्रेस का नेतृत्व सम्हालने के लिए कोई भाजपा या अन्य किसी दल से तो जाएगा नहीं ? जो भी आएगा कांग्रेस कि भीतर से आएगा . कांग्रेस में भी आज वो ही स्थिति है जो सात साल पहले भाजपा में थी ,यानि पीढ़ियों का टकराव ,यहां भी है और भाजपा में भी था .भाजपा में नयी पीढ़ी की किस्मत अच्छी थी कि उसे पुराने नेतृत्व को ठिकाने लगाने में ज्यादा वक्त नहीं लगा जबकि कांग्रेस में अभी भी पुरानी पीढ़ी कि लिए किसी मार्गदर्शक मंडल का गठन नहीं किया गया है .
माना जाता है और है भी कि कांग्रेस एक परिवार कि शिकंजे में है इसलिए पनप नहीं पा रही.बगावत की रफ़्तार भी शायद इसी लिए बढ़ गयी है .पुराने कांग्रेसी या तो पार्टी कि मौजूदा नेतृत्व से नाराज हैं या फिर कांग्रेस में रहकर भाजपा के एजेंट बन गए हैं किन्तु कांग्रेस नेतृत्व उनकी शिनाख्त करने में नाकाम रहा है ,इन तमाम विसंगतियों कि बाद भी कांग्रेस एक लम्बे समय से दो फाड़ नहीं हुई है. कांग्रेस का अतीत देखिये तो आपको पता चल जाएगा कि कांग्रेस जब -जब दोफाड़ होती है उसकी ताकत बढ़ती है ,क्योंकि विभाजन से नकली कांग्रेसी आपने आप छंट जाते हैं .
कांग्रेस से अलग हुए तमाम धड़े आज भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं बन पाए भले ही उन्होंने आपने नाम कि आगे राष्ट्रीय शब्द लगा लिया हो .शरद पंवार हों या ममता बनर्जी सबको क्षेत्रीय दल कि नेता कि रूप में ही सब्र करना पड़ा है ,पंजाब कि पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह का भी यही हश्र होने वाला है .देश के जनमानस में आज भी राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस ही बसती है और इसीलिए कांग्रेस का सर्वनाश नहीं हो पारहा है .मुझे लगता है कि कांग्रेस में घट-बढ़ की ये प्रक्रिया अभी और चलेगी .तमाम गुमाल नबी अभी और पहचाने जायेंगे ,तमाम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की मुसीबतें अभी और बढ़ाएंगे और अंतत:कांग्रेस का शुद्धिकरण होगा .
कांग्रेस कि भविष्य को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.जिस तरह से भाजपा चालीस साल से संघ परिवार से मुक्ति नहीं पा सकी है उसी तरह कांग्रेस भी अभी नेहरू-गांधी वंशावली से मुक्त नहीं हुआ है.आगे भी हो पायेगा या नहीं कहना कठिन है कांग्रेस को कांग्रेसी ही बचा सकते हैं हम या आप नहीं,क्योंकि कांग्रेस आज भी एक विचार है और विचार आसानी से नहीं मरते .जैसे 1948 कि बाद से देश में जो गोडसेवादी विचार था आजतक नहीं मरा,बल्कि अब तो उसे पूजा जा रहा है .
बीते सात साल इस बात कि गवाह हैं की देश में आज भी भाजपा कि मुकाबिल कांग्रेस ही है ,भले ही आप मौजूदा कांग्रेस को उसका कंकाल कहें .कोई समाजवादी,कोई वामपंथी, कांग्रेस का विकल्प बनकर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती नहीं दे पाया है .अगले महीने होने वाले पांच राज्यों कि चुनावों में भले ही कांग्रेस भाजपा कि लिए चुनौती की तरह नजर न आती हो लेकिन उसकी मौजूदगी भर से भाजपा आतंकित है. भाजपा को हर समय लगता है कि कांग्रस ही है जो सत्ता में आने कि उसके खेल को खराब कर सकती है ..मिसाल कि तौर पर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सत्ता से तीन दशक से दूर है फिर भी उसका खौफ है .पंजाब में कांग्रेस की चिन्दियाँ उड़ रहीं हैं लेकिन मुकाबले में कांग्रेस अभी भी है .उसे बाहर करके नहीं देखा जा सकता .देश के लिए कांग्रेस उतनी ही जरूरी है जितनी की भाजपा या और दूसरे दल .इस हकीकत को जो स्वीकार नहीं करते वे परमहंस हो सकते हैं राजनीति कि खिलाड़ी नहीं .
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