वादो से नही चलेगा काम,ब्राह्मणों को दें सम्मान-मुक्तेशवर दूबे
On
वादो से नही चलेगा काम,ब्राह्मणों को दें सम्मान-मुक्तेशवर दूबे
उत्तर प्रदेश की सियासी बाजी जीतने और सत्ता पर काबिज होने के लिए सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण समुदाय को रिझाने पर लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ब्राह्मण वोटों की सियासी ताकत कितनी है, जिसके लिए बीजेपी से लेकर सपा और बसपा सभी दल अपने-अपने पाले में लाने के लिए परेशान हैं
विधानसभा चुनाव का एजेंडा जाति के इर्द-गिर्द बुना जा रहा है. जातीय समीकरण साधे बिना सत्ता की वैतरणी पार लगाना सियासी दलों को मुश्किल नजर आ रहा है. सूबे की सियासी बाजी जीतने और सत्ता पर काबिज होने के लिए सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण समुदाय को रिझाने पर लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ब्राह्मण वोटों की राजनीतिक ताकत कितनी है, जिसके लिए बीजेपी से लेकर सपा और बसपा सभी दल व्याकुल नजर आ रहे हैं?
यूपी को कांग्रेस राज में मिले ब्राह्मण सीएम
आजादी के बाद से 1989 तक यूपी की सियासत में ब्राह्मण समाज का वर्चस्व कायम रहा. गोविंद बल्लभ पंत से नारायण दत्त तिवारी तक कुल आठ बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने. लेकिन, मंडल के बाद सूबे बदले सियासी समीकरण में ब्राह्मणों के हाथ से सत्ता खिसकी तो फिर आजतक नहीं मिली. ऐसे में यूपी का ब्राह्मण समाज पिछले तीन दशक से महज एक वोटबैंक की तरह बनकर रह गया है, जिन्हें अपने पाले में लाने के लिए सभी दल मशक्कत कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटर कितने अहम?
उत्तर प्रदेश की सियासत में भले ही ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 8 से 10 फीसदी वोट तक सिमटी हुई है, लेकिन ब्राह्मण समाज का प्रभाव इससे कहीं अधिक है. ब्राह्मण समाज सूबे में प्रभुत्वशाली होने के साथ-साथ राजनीतिक हवा बनाने में भी काफी सक्षम माना जाता है. सूबे की करीब पांच दर्जन से ज्यादा सीटों पर ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. एक दर्जन जिलों में इनकी आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है. वाराणसी, चंदौली, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, भदोही, जौनपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, अमेठी, बलरामपुर, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी से ज्यादा है. यहां पर ब्राह्मण वोटर्स किसी भी उम्मीदवार की हार या जीत में अहम रोल अदा करते हैं.
'ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जाएगा,बसपा का था नारा
2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों को लाने के लिए मायावती ने उस वक्त 'हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश है' और 'ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जाएगा'. जैसे नारे गढ़े थे. बसपा का नारा और फॉर्मूला कामयाब भी रहा. ब्राह्मण, मुस्लिम, ओबीसी और दलित का गठजोड़ बनाकर मायावती ने 206 सीटों के साथ 2007 में सरकार बनाई थी.लेकिन ब्राहम्ण का भला आज तक नही हो सका कोई सरकार ब्राह्मणों के लिए कुछ नही किया केवल वोट बटोरने का काम किया है
Tags:
About The Author
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
Related Posts
राष्ट्रीय हिंदी दैनिक स्वतंत्र प्रभात ऑनलाइन अख़बार
13 Dec 2025
12 Dec 2025
12 Dec 2025
Post Comment
आपका शहर
14 Dec 2025 13:20:17
8th Pay Commission: भारतीय रेलवे आने वाले समय में आठवें वेतन आयोग से बढ़ने वाले वेतन बोझ को संभालने की...
अंतर्राष्ट्रीय
28 Nov 2025 18:35:50
International Desk तिब्बती बौद्ध समुदाय की स्वतंत्रता और दलाई लामा के उत्तराधिकार पर चीन के कथित हस्तक्षेप के बढ़ते विवाद...

Comment List