वाराणसी कबड्डी स्कूल नेशनल खिलाड़ी लोगो के कपड़े प्रेस करने को मजबूर

वाराणसी कबड्डी स्कूल नेशनल खिलाड़ी लोगो के कपड़े प्रेस करने को मजबूर

ऐसी ही एक खिलाड़ी हैं वाराणसी की सोनाली कन्नौजिया। नेशनल स्कूल कबड्डी प्लेयर सोनाली लॉकडाउन में वर्क आउट तो कर रही हैं पर पेट की आग बुझाने के लिए उन्हें पिता के साथ लॉन्ड्री का काम भी करना पड़ रहा है। काशी की इस प्रतिभावान खिलाड़ी के घर जब पत्रकार पहुंचे तो वो कपड़े प्रेस करती मिली।

स्वतंत्र प्रभात वाराणसी

मनीष पांडेय

कहते हैं कि प्रतिभा अमीरी की मोहताज नहीं होती उसे बस राह चाहिए। ऎसी ही कई खिलाड़ी वाराणसी जनपद में भी हैं जो गरीब तो हैं पर उनकी प्रतिभा का लोहा हर एक मानता है, पर इस लॉकडाउन में कई प्रतिभावान खिलाड़ियों को काफी मुश्‍कि‍लों का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसी ही एक खिलाड़ी हैं वाराणसी की सोनाली कन्नौजिया। नेशनल स्कूल कबड्डी प्लेयर सोनाली लॉकडाउन में वर्क आउट तो कर रही हैं पर पेट की आग बुझाने के लिए उन्हें पिता के साथ लॉन्‍ड्री का काम भी करना पड़ रहा है। काशी की इस प्रतिभावान खिलाड़ी के घर जब पत्रकार पहुंचे तो वो कपड़े प्रेस करती मिली।

सोनाली ने बताया कि वो महामना मालवीय इंटर कालेज बच्छांव की छात्रा है। कबड्डी में शुरू से लगाव था तो स्कूल टीचर ने इस खेल को खेलने के लिए कहा।इस खेल को खेलना शुरू किया तो फिर पीछे मुड़ के नहीं देखा। अब तक अपने स्कूल की तरफ से कई स्टेट और नेशनल स्कूल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी हूँ। इच्छा है कि इंटरनेशनल कबड्डी प्लेयर बनूं पर लॉकडाउन में सारे सपने टूटते दिख रहे हैं। घर चलाने के लिए पापा के साथ काम करती हूँ। प्रेस कर देती हूँ कपड़ों को। बावजूद इसके सोनाली रोज़ उठकर अपना वर्क आउट ज़रूर करती हैं।

सोनाली के पिता श्यामू प्रसाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हॉस्टल्स में रहने वाले छात्रों का कपड़ा धोने और प्रेस करने का काम करते हैं पर लॉकडाउन में उनका काम बंद है। श्यामू ने हमें बताया कि क्या बताएं साहब लॉकडाउन ने हमारे परिवार की परवरिश रोक दी। बस किसी तरह से गुज़ारा हो रहा है।

सोनाली कबड्डी की अच्छी प्लेयर है पर जब सब बंद है तो वह भी मेरे साथ हांथ बटा रही है। आस-पड़ोस के रोज़ दस से बारह कपडे मिल जाते हैं उसी से खर्चा जैसे तैसे चल रहा है।

कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से कई ज़िंदगियाँ बची तो कई ज़िंदगियां ऐसी भी हैं जिनका सपना चूर होता दिख रहा है, सरकार को इनपर ध्यान देने की ज़रुरत हैं

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