अपना शहर ये कैसा फ्री व्हीकल पीरियड है ?

अपना शहर ये कैसा फ्री व्हीकल पीरियड है ?

अपना शहर ये कैसा फ्री व्हीकल पीरियड है ?


रियासतकालीन शहरों में पश्चिम के शहरों की तरह हृदयस्थल को ' डाउन टाउन ' नहीं बल्कि बाड़ा कहा जाता है .जैसे ग्वालियर में महाराज बाड़ा ,इंदौर में राजबाड़ा .इन बाड़ों के चारों और अपने जमाने के प्रमुख बाजार और जन रंजन के साधन  हुआ करते थे ,लेकिन समय के साथ इन बाड़ों की दशा ,दुर्दशा में बदल गयी और अब इन्हें दुर्दशा से उबारने के लिए रोज नए प्रयोग किये जा रहे हैं .

ग्वालियर का राजबाड़ा इंदौर के राजबाड़ा के मुकाबले ज्यादा खुला और अधिक आकर्षक है. यहां रियासत कालीन अलग-अलग शैली की आधा दर्जन महत्वपूर्ण इमारतें हैं ,पुराना महल और सिंधिया शासकों का पुश्तैनी पूजाघर है .महाराज बाड़ा पर प्रधान डाकघर ,भारतीय स्टेट बैंक की दो बड़ी शाखाएं ,टाउन हाल ,विक्टोरिया मार्किट  और शासकीय मुद्रणालय और एक सुंदर सा बागीचा भी  है .इसमें से विक्टोरिया मार्किट 12  साल पहले एक भीषण अग्निकांड में जलकर राख हो गया था,लेकिन शासन ने इसका पुनर्निर्माण कर दिया ,किन्तु आजतक न यहां पुराने दुकानदार वापस बैठ सके और न ही कोई संग्रहालय खोला जा सका .

महाराज बाड़ा पर स्थित एक दूसरी महत्वपूर्ण इमारत प्रधान डाकघर की है. इसके एक हिस्से में नगर निगम का मुख्यालय था जो हटाया जा चुका है किन्तु इसका भी कोई इस्तेमाल एक दशक बाद भी स्थानीय प्रशासन नहीं कर पाया .तीसरी मह्त्वपूर्ण इमारत पुरानी रीगल टाकीज है ,इसे स्थानीय प्रशासन ने टाउन हाल में तब्दील करने में कई करोड़ रूपपये खर्च कर दिए लेकिन इसका भी कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा ,क्योंकि एक तो इस पर स्मार्ट सिटी परियोजना ने अवैध कब्जा कर लिया है दुसरे यहां पार्किंग न होने से शहर इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है .

महाराज बाड़ा की चौथी  महत्वपूर्ण इमारत शासकीय मुद्रणालय की है .रियासतकाल में यहां आलीजा दरबार नाम की प्रेस थी ,जो बाद में मप्र बनने पर केंद्रीय मुद्रणालय में बदल गयी,इसे भी बंद कर दिया गया  है लेकिन इमारत का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है .महाराजबाड़े  पर भारतीय स्टेट बैंक की दो बड़ी शाखाएं जरूर अपने अपने पुराने भवनों में कार्यरत हैं .महाराज बड़ा से पुराने गोरखी महल से कलेक्टर कार्यालय को पहले ही खाली कराया जा चुका है लेकिन लोनिवि इसका न तो पुनर्निर्माण करा सका और न कोई दूसरा इस्तेमाल कर सका क्योंकि इस महल पर पुरानी रियासत वालों की गिद्धदृष्टि है .यहीं रियासत कालीन देवघर भी है .इस परिसर में नगर निगम पार्किंग का इस्तेमाल जरूर करती है .

महाराज बाड़ा पर नजरबाग मार्किट,गांधी मार्किट  ,दही   मंडी, दौलतगंज,माधवगंज ,चावड़ी बाजार मोर बाजार ,और सर्राफा बाजार स्थित हैं .इन बाजारों में लश्कर,ग्वालियर और मुरार उपनगरों की भीड़ जब उमड़ती है तब महाराजबाड़ा पर तिल रखने की जगह नहीं रहती .महाराज बाड़ा की सभी सड़कें फुटपाथी कारोबारियों के कब्जे में हैं. विक्टोरिया मार्किट के बाहर नगर निगम और पुलिस ने अविवेकपूर्ण तरिके से पार्किंग बनाकर यहां और मुसीबत खड़ी कर दी है .इस सबसे निजात पाने के लिए स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने महाराजबाड़ा को नो व्हीकल जोन बनाने की कवायद शुरू कर दी लेकिन बिना किसी इंतजाम के .इस वजह से महारजबाड़ा तो कुछ घंटों के लिए सांस लेता दिखाई दिया किन्तु यहां आने वालों की दम फूल गयी .

नो व्हीकल जोन में निजी वाहनों को छोड़ ऑटो,और टेम्पो प्रतिबंधित कर दिए गए फल स्वरूप यहां प्रतिबंधित समय से पहले इन सार्वजनिक वाहनों से आये लोग फंस गए .उन्हें घर वापसी के लिए कोई साधन नहीं मिला और छोटे बच्चों से लेकर महिलाओं और बुजुर्गों को मीलों पैदल चलकर सार्वजनिक वाहन तलाश करने पड़े .महारजबाड़ा को नो व्हीकल जोन बनाने से पहले यहां आवागमन की वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में सोचा ही नहीं गया .बेहतर होता की प्रशासन यहां नो व्हीकल समय में 'पिक एंड ड्राप' की सुविधा मुहैया करता .लेकिन इस बारे में सोचा ही नहीं गया .

दरअसल महाराज बाड़ा स्थानीय पुलिस और नगर निगम के लिए कामधेनु की तरह है ,यहां फुटपाथी कारोबारियों को बैठकर रोजाना लाखों रूपये की अवैध वसूली होती है .इसी वजह से महाराज बाड़ा की और किसी का ध्यान नहीं है .ग्वालियर उन अभागे शहरों में से है जो स्मार्ट सिटी परियोजना का अंग तो हैं किन्तु यहां आजतक सार्वजनिक परिवहन के लिए सिटी बस सेवा शुरू नहीं हुई है .इस दिशा में इक्का-दुक्का कोशिशें की भी गयीं किन्तु उन्हें कामयाबी नहीं मिली .

अब स्थितियां   अराजक हो चली हैं. महाराज बाड़ा कुछ घंटे के लिए भले ही भीड़ मुक्त बनाया जा रहा है लेकिन इससे जन सुविधा बिलकुल  नहीं हुई. ऑटो और टेम्पो प्रतिबंधित होने से ग्राहकों की आवक अचानक कम होने से दुकानदार परेशान है .फुटपाथ कारोबारियों की रोजी-रोटी गयी सो अलग .

महाराज बाड़ा के इर्दगिर्द स्थित पुरानी इमारतों का सही इस्तेमाल न होने और पार्किंग के साथ ही एकल यातायात व्यवस्था लागू न होने से अब तक के तमाम प्रयोग असफल साबित हुए हैं .देश के दुसरे रियासतकालीन बाड़े भी इसी तरह की समस्या से ग्रस्त हैं लेकिन मैसूर जैसी व्यवस्था मध्यप्रदेश के किसी भी पुराने शहर में नहीं की जा सकी.नगर नियोजन के मामले में व्यावहारिक और वैज्ञानिक सोच के अभाव और तालमेल ने सब कुछ गुड़-गोबर कर दिया है. 

दिल्ली के कनाट प्लेस जैसे इन बाड़ों को दुर्दशा से उबरने की जरूरत है अन्यथा इन पुराने शहरों की आन-वान-शान  मिटटी में मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा .स्मार्ट सिटी ने इस इलाके की इमारतों पर फसाद लाइटों से सतरंगा प्रकाश तो करा दिया ,लेकिन धरातल पर जो कुछ पहले था उसमें कोई तबदीली नहीं हुई .

राकेश अचल

Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel