
“नैतिक मूल्यों पर हावी संकीर्णता”
लेखक – इंद्र दमन तिवारी हम सभी हाल में ही दिल्ली की सड़कों पर नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध हाथों में तिरंगा लिए औऱ संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर रहे उग्र जन सैलाब के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं किंतु अब सब की संविधान एवं पंथनिरपेक्षता के प्रति निष्ठा का दिखावटी नकाब उतर सा गया है..
लेखक – इंद्र दमन तिवारी
हम सभी हाल में ही दिल्ली की सड़कों पर नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध हाथों में तिरंगा लिए औऱ संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर रहे उग्र जन सैलाब के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं किंतु अब सब की संविधान एवं पंथनिरपेक्षता के प्रति निष्ठा का दिखावटी नकाब उतर सा गया है..
देश में कतिपय अवसरों पर राजनीतिक संकीर्ण मानसिकता के उदाहरण देखने को मिल जाते थे परंतु अब इस आपदा एवं गहन संकट के दौर में दकियानूसी धार्मिक एवं क्षेत्रीय संकीर्णताओं ने राष्ट्र की आत्मा पर प्रहार किया है।
एक तब्लीग़ी ज़मात है जिसके जिम्मेवार लोग अपने अनुनायियों से कहते हैं कि मरने के लिए मस्ज़िद से बेहतर जगह क्या हो सकती है ? औऱ उनके इस भ्रामक ज्ञान का नतीज़ा ये होता है कि उस ज़मात में आये लोगों ने अब तक देश के 19 राज्यों को कोरोनाग्रस्त हॉटस्पॉट में तब्दील कर दिया है,
अब कोई उन मौलाना को बताए कि इस कारण जिन संक्रमित तब्लीगियों की मौत हो रही है उन में से कोई भी मस्ज़िद में नहीं मर रहा है..एक ओर जहाँ देश के कई हिस्सों में कोरोना सैम्पलिंग को गए चिकित्सकों के दल पर ज़ाहिलों की भीड़ द्वारा हमले, लोगों के ऊपर थूक कर संक्रमण को औऱ भी ज़्यादा फैलाने जैसे घटिया किस्म के हथकंडे मन में रोष उतपन्न करते हैं वहीं दूसरी ओर जावेद अख्तर किस्म के लोग जो अभी तक अकारण ही तुच्छ मुद्दों पर आक्रोशित हो जाया करते थे औऱ स्वयं को पंथनिरपेक्षता का झंडाबरदार बताते नहीं थकते थे वो अब ट्वीट कर देवबंद से कह रहे हैं कि मस्ज़िद बंद करने के लिए फ़तवे जारी किए जाने चाहिए,
जाहिलियत एवं सांप्रदायिकता की पराकाष्ठा ही तो है ये कि ऐसे दौर में भी इन्हें ये नहीं समझ आया है कि देश चुनी हुई सरकार से एवं संविधान से ही चलता है किसी मौलाना के फ़तवों से नहीं, क्या इनके अनुसार सरकारी आदेश या जनमानस के जीवन को जोख़िम से बचाने के लिए की गई देश के प्रधानमंत्री की विनम्र अपील कोई मायने नहीं रखती है ?
क्या उनके सारे फ़ैसले देवबन्द, तब्लीग़ी ज़मात या किसी मौलाना शाद जैसे लोगों के कहे अनुसार होंगे ? सबसे अधिक चिंता की बात तो ये है कि छोटे से छोटे मसलों पर कूद के ट्वीट औऱ मीडियाबाज़ी करने वाले स्वयंभू संविधान रक्षकगण की अभी तक कोई टिप्पणी नहीं आयी। उन सबको जैसे साँप सूंघ गया हो जो दूरदर्शन पर रामायण एवं महाभारत जैसे धारावाहिकों के प्रसारण पर विधवा विलाप कर रहे थे,
क्या फ़तवे से देश -समाज चलाने की बात करना पंथनिरपेक्ष होने के लक्षण हैं औऱ रामायण-महाभारत का प्रसारण सांप्रदायिकता ? ये समस्त घटनाक्रम एक ही बात को ओर इशारा करते हैं कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के व्यकितगत स्वार्थ राष्ट्र हितों पर भारी पड़ रहे हैं..क्या ये ही है हमारे संविधान निर्माताओं के सपने का पंथनिरपेक्ष देश !
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel
खबरें
शिक्षा

Comment List