सुल्तानपुर : दिशाहीन हो चुका मुस्लिम समाज -डॉ अनूप कुमार

सुल्तानपुर : दिशाहीन हो चुका मुस्लिम समाज -डॉ अनूप कुमार

कादीपुर/सुलतानपुर प्रदेश के कई सेमिनारों में प्रतिभाग कर चुके संत तुलसीदासस्नातकोत्तर महाविद्यालय कादीपुर के राजनीति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अनूप कुमार ने कहा है किकिसी भी राष्ट्र के वर्तमान या किसी निश्चित समय जानने के लिए उसके इतिहास की समझ आवश्यक है वस्तुतः इतिहास की किसी राष्ट्र के सामाजिक धार्मिक राजनीतिक और आर्थिक जीवन को

कादीपुर/सुलतानपुर

प्रदेश के कई सेमिनारों में प्रतिभाग कर चुके संत तुलसीदासस्नातकोत्तर महाविद्यालय कादीपुर के राजनीति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अनूप कुमार ने कहा है कि
किसी भी राष्ट्र के वर्तमान या किसी निश्चित समय जानने के लिए उसके इतिहास की समझ आवश्यक है वस्तुतः इतिहास की किसी राष्ट्र के सामाजिक धार्मिक राजनीतिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित करता है इतिहासाची होता है उन कारणों का जो प्रभावी परिस्थितियों उत्पन्न करती हैं और उन कारणों का जिम्मेदार भी भारत भी इससे अछूता नहीं रहा अतः स्वतंत्रता प्राप्त के पूर्व और पश्चात भारत के सामने जो भी समस्या है उसमें मुस्लिम समाज की दिशा हीनता एक है।
प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में भारत के हिंदू और मुस्लिम समाज बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहे आंदोलनकारियों में जोश भरने के लिए बहादुर शाह जफर ने कहा था भारत के हिंदू और मुसलमानों उठो भाइयों उठो परमात्मा के सभी प्रधानों में स्वराज जी ही उसका दिया हुआ सर उत्तम वरदान है जिस शैतान ने उसे हम से चलती छीन लिया है देखें वह कब तक उसे संभाल सकता है।
भारत की स्वाधीनता आंदोलन में अली बंधुओं मौलाना मोहम्मद अली और शौकत अली की गणना राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं में की जाती थी मोहम्मद अली ने कहा था कि एक बात निश्चित है और वह यह है कि ना हिंदू मुसलमानों का मूलन कर सकते हैं और ना मुसलमान हिंदुओं से अपना पिंड छुड़ा सकते हैं यदि वे एक दूसरे के साथ सहयोग करना आरंभ कर दें मुसलमानों को चाहिए कि हुए हिंदुओं को किस बात का पूरा विश्वास दिलाया कि वह भी स्वराज्य के लिए स्वराज्य चाहते हैं और हर विदेशी आक्रमण का प्रतिरोध करने को तैयार हैं इसी प्रकार हिंदुओं और मुसलमानों के मन में यह आशंका दूर कर देनी चाहिए कि हिंदू बहुमत मुसलमानों की दास्तां का पर्यायवाची है।
स्वतंत्रता संग्राम की एक जनसभा में राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कहा था कि आजादी इंसान की पैदाइशी हक है कोई शक खुदा के बंदे को गुलाम नहीं बना सकता गुलामी को चाहे जितनी सियासी जुल्मों के जरिए आजादी साबित की जाए लेकिन गुलामी तो आखिर गुलामी है और गुलामी खुदा की मंशा के खिलाफ हैं भारत आजाद होगा और इससे उसे दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती।
इसका समर्थन करते हुए सर सैयद ने मुस्लिम हिंदू एकता के बारे में कहा था कि यह दोनों को में भारत माता रूपी नवबोध युग की दो आंखें हैं इसलिए हमें एक मन एक प्राण हो जाना चाहिए और मिलजुल कर कार्य करना चाहिए यदि यह संयुक्त है तो एक दूसरे के लिए बहुत सहायक हो सकते हैं यदि नहीं तो एक दूसरे के विरुद्ध दोनों का ही पूर्णता पतन और विनाश कर देगा।
सांप्रदायिक की लहर ने भारतीय समाज को विषैली कर दिया इसलिए सुभाष कश्यप ने लिखा है कि राष्ट्रीयता की शक्तियों को क्षीण करने के लिए उन्होंने सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का निश्चय किया यद्यपि यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत में सांप्रदायिकता के उद्भव एवं विकास का सारा दोष अंग्रेजों के सिर पर ही हैं फिर भी यह सत्य है कि देश की राजनीतिक क्षेत्र में सांप्रदायिकता के प्रभावी करण का प्रमुख उत्तरदायित्व अंग्रेजी शासन की नीति ही है।
तबलीगी जमात लगभग 100 वर्ष भारत में कार्य कर रही है जिसकी स्थापना मौलाना इलियास ने किया था हुए मुसलमानों में हिंदुओं के प्रभाव को कम करने के लिए इस्लामी व्यवहार का प्रशिक्षण देकर उन्हें नया मनुष्य बनाने के साथ-साथ उन्हें पक्का मुसलमान बनाना उनके खान-पान रहन-सहन पोशाक रीत रिवाज परंपराओं को अपना-अपना ना इस के प्रतीक थे।
वास्तव में जमात का यही मिशन है कि हिंदुओं के साथ मिलजुल कर रहने वाले मुसलमानों को पूरी तरह अलग करना उन्हें पूर्णता शरीयत पाबंद बनाना अपने पूर्वजों की रीति-रिवाजों से घृणा करना दूसरे मुसलमानों को प्रेरणा देना जिसके कारण हिंदू और मुसलमानों में सामाजिक खाई और चौड़ी होती गई जहां पहले संयुक्त परिवार में हिंदू और मुसलमानों ने घर आना जाना लगा रहा लेकिन एकाकी परिवार की बहुत आके कारण धीरे-धीरे मुस्लिम समाज सीमित आ गया और भी राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग होते गए।
भारत में विभिन्न प्रकार के धर्मावलंबियों का निवास है हिंदू धर्म अपने आप में कोई मजहब नहीं है वह अपने में विभिन्न प्रकार की मतों को समाहित किए हुए हैं किसी का अपने मजहब के प्रति पूर्ण अच्छा रखना सांप्रदायिकता नहीं है मजाक किया जादी प्रत्येक मनुष्य का मौलिक अधिकार है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि मौलिक अधिकारों की आड़ में राष्ट्रीय एकता को खंडित करना कहां का न्याय है।
क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह मतलब है कि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाए जाएं की भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह कुछ राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन भी किया जो सरासर गलत है साइन बाग में संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए यह नारा लगाया गया कि तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह लड़के लिए है पाकिस्तान बट के रहेगा हिंदुस्तान और सबसे दुखद बात यह है कि सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं है लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान ही क्यों यह एक यक्ष प्रश्न है किसी भी मुस्लिम धर्म प्रदेश को द्वारा इसकी निंदा नहीं करते बल्कि उसके जनाजे में शामिल होकर राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग हो जाते हैं और समाज को यह उपदेश देते हैं कि इस्लाम अमन का मजहब है।
मुस्लिम धर्म उपदेश गुरुद्वारा यह भ्रम फैलाया गया कि करोना कुरान से निकला हुआ है और जमात में नमाज पढ़ने से खुदा प्रसन्न होता है जबकि लाख डाउन होने के बावजूद जबरदस्ती नमाज पढ़ने का प्रयास कर रहे थे और रही सही कसर तबलीगी जमात ने पूरा कर दिया जिसका परिणाम आज पूरा भारत भुगत रहा है।
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाए जाने के कारण लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण कितनी अपनाए जाने के कारण वे आर एस एस तथा हिंदूवादी दलों का डर दिखाकर उनका वोट लेते रहे लेकन उनकी दिशा और दशा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया आजादी के बाद जो भी मुस्लिम नेता राष्ट्रीय राज्य स्तरीय नेता बनकर उभरे वह भी अपने काम को केवल वोट बैंक की तरह प्रयोग किया।
जहां देश की आजादी में बहादुर शाह जफर मौलाना अबुल कलाम आजाद रफी अहमद किदवई मौलाना अली मौलाना शौकत अली राष्ट्रीय नेतृत्व की किन रवींद्र रहे जिस के अथक प्रयास से देश स्वतंत्र हुआ लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज कोई ऐसा नेता नहीं है जो अपने काम की सामाजिक राजनीतिक आर्थिक जीवन को ऊंचा उठा सके और तो और उनके धर्म और देश को द्वारा प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री पर अर्थ संसदीय भाषा का प्रयोग करने पर भी विमान समर्थन करते हैं जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरा बना हुआ है।
मुसलमान की नई पीढ़ी अपने को भारतीय मानती थी बरेलवी देवबंदी वे भारत की प्राचीन इतिहास में अपने पूर्वजों को तलाशने लगे लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला मुस्लिम अस्मिता के नए प्रतीक बन गए इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू होने के बाद अरशद और जमात-ए-इस्लामी नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया दोनों संप्रदाय के पास आने से लोगों में उम्मीदें जगी की सभी लोग राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ेंगे लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात साबित हुए।
भारत में हमेशा से ही विवादास्पद मुद्दे विद्यमान में हैं जैसे शाहबानो राम मंदिर गोधरा कांड बाबरी ढांचा विध्वंस ट्रिपल तलाक को कानूनी जामा पहना ना सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम मंदिर के पक्ष में फैसला राष्ट्रीय नागरिकता कानून राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जो कि समय की मांग है सांप्रदायिक सौहार्द को चोट पहुंचाई है इसके पीछे मुस्लिम समाज की अशिक्षा प्रमुख है क्योंकि वह दीन की शिक्षा को ज्यादा महत्व देते हैं जिसके कारण उनमें धार्मिक कट्टरता आ गई हुए अपने को कुरान जमा मस्जिद तक ही सीमित रखा।
यदि भारत को विकसित राज्य की श्रेणी में ले जाना है तो अंग्रेजों द्वारा जो इसका बीजारोपण किया गया उसे समाप्त करके जो भी कट्टरवादी संगठन है उन पर अंकुश लगाकर के मुस्लिम समाज के नौजवानों को एक हाथ में कंप्यूटर तथा दूसरे हाथ में कुरान को देकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया जा सकता है क्योंकि हिंदू और मुस्लिम समाज विकास के दो पहिए हैं यदि 1 पहिया कमजोर होगा तो भारतीय तो भारत विकसित राष्ट्र की श्रेणी में नहीं पहुंच पाएगा।

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