जड़ शरीर छुपे अपने चेतन आत्मा को पहिचानौ

जड़ शरीर छुपे अपने चेतन आत्मा को पहिचानौ

भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज !


 स्वतंत्र प्रभात 
 

महमूदाबाद-सीतापुर यह जीव अपनी ही भूल के कारण अनादि काल से संसार में ही परिभ्रमण कर रहा है। भूल यह है कि यह जीव इस जीवन में शरीर और आत्मा को एक मानता रहता है, यह मान्यता ही इस जीव की सबसे बड़ी भूल है। 


जबकि यह शरीर कुछ भी जानता नहीं है, कुछ अनुभव भी नहीं करता क्योंकि जब तक इस शरीर में आत्मा है तभी तक यह शरीर क्रियाशील दिखाई देता है जैसे ही इस देह से आत्मा निकलता है उसी क्षण से यह शरीर क्रियारहित हो जाता है फिर यह कुछ भी जानता देखता नहीं है क्योंकि जो जानने और देखने वाला था ऐसा चेतन आत्मा उसमें से निकल चुका है फिर तो उसे देखकर यही कहा जाता है कि अब तो मात्र माटी शेष बची है और उस माटी के प्रबंध में लग जाते हो । 

जैसे-हरी भरी फसल खेत में खड़ी है, पक्षियों से फसल की रक्षा के लिए खेत में एक बिजूका खड़ा कर दिया जाता है, पक्षी ही उस बिजूके को मनुष्य समझते हैं किन्तु कोई भी बुद्धिमान पुरुष उसे वास्तविक मनुष्य नहीं मानते, उसी बिजूके की भाँति यह मनुष्य का शरीर है जो कुछ भी जानता- देखता नहीं है 


वास्तव में जानने-देखने वाला आत्मा इस शरीर से भिन्न है | शरीर का स्वभाव जड़ है और यह आत्मा चेतन स्वभावी है। जानना देखना, अनुभव करना, ये सब चेतन आत्मा के गुण हैं, न कि इस जड़शरीर के वास्तव में, मैं आत्मा चेतन स्वभावी हूँ और यह शरीर जड़ स्वभावी।

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