समाजिक परिवर्तन की रूपरेखा – कुमार नमामि दीक्षित

उन्नाव।स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो :-समाज एक परिवर्तनशील व्यवस्था है। प्रत्येक समाज में चाहे-अनचाहे रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। विश्व में एेसा कोई समाज नहीं है जो परिवर्तन से अछूता रहा हो। परिवर्तन समाज का एक शाश्वत नियम है। यह समाज के आंतरिक तथा बाहरी या संरचनात्मक दोनों पक्षों में हो सकता है।किसी युग


उन्नाव।स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो :-समाज एक परिवर्तनशील व्यवस्था है। प्रत्येक समाज में चाहे-अनचाहे रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। विश्व में एेसा कोई समाज नहीं है जो परिवर्तन से अछूता रहा हो। परिवर्तन समाज का एक शाश्वत नियम है। यह समाज के आंतरिक तथा बाहरी या संरचनात्मक दोनों पक्षों में हो सकता है।किसी युग के आदर्शों एवं मूल्यों में यदि पिछले युग के मुकाबले कुछ नयापन या परिवर्तन दिखाई पड़े तो उसे आंतरिक परिवर्तन कहेंगे और अगर किसी सामाजिक अंग जैसे परिवार,

वर्ग, जातीय हैसियत, समूहों के स्वरूपों एवं आधारों में परिवर्तन परिलक्षित हो तो उसे संरचनात्मक परिवर्तन कहेंगे। जो परिर्वन होता है वह इसके बाह्य स्वरूप तथा आंतरिक अंतर्वस्तु में होता है। व्यापक दृष्टि से देखें तो पता चलेगा कि समाज की प्रत्येक संरचना, संगठन एवं सामाजिक संबंध में निरंतर परिवर्तन होता है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।


आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा विभिन्न समाजों ने अपने तरीके से इन विकासों को समाहित किया है, उनका उत्तर दिया है, जो कि सामाजिक परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द। कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। कुछ सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट है एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं।

परिवर्तन या तो समाज के समस्त ढांचे में आ सकता है अथवा समाज के किसी विशेष पक्ष तक ही सीमित हो सकता है। परिवर्तन एक सार्वकालिक घटना है। यह किसी न किसी रूप में हमेशा चलने वाली प्रक्रिया है।

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