नारी जगत के सच्चे मसीहा : बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर
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लखनऊ। राजधानी लखनऊ में (अमिता अम्बेडकर) ने भारत की आधी आबादी यानी नारी शक्ति को सदियों से जाति और पितृसत्ता की दोहरी गुलामी में रखा गया था। इस गुलामी की जंजीरें तोड़ने वाले महामानव कोई और नहीं, परम पूज्य बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। वे नारी मुक्ति के सबसे बड़े योद्धा और सच्चे मसीहा हैं। जातिवादी और मनुवादी इतिहासकारों ने पहले बाबासाहेब को इतिहास से ही गायब करने की कोशिश की। जब मान्यवर कांशीराम साहेब और बहन मायावती जी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी ने बाबासाहेब को जन-जन तक पहुँचाया, तब इन लोगों ने नया षड्यंत्र रचा। अब वे बाबासाहेब को सिर्फ “दलितों के मसीहा” बताकर उनका कद छोटा करने पर तुले हैं। लेकिन सच यह है कि बाबासाहेब सिर्फ दलितों के नहीं, समूची भारतीय नारी जाति के मुक्तिदाता हैं। आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता हैं।
बाबासाहेब ने नारी को कभी संकुचित दायरे में नहीं देखा। उन्होंने साफ कहा था, “मैं समाज की उन्नति महिलाओं की उन्नति से मापता हूँ।” इसलिए उन्होंने हर क्षेत्र में नारी को बराबरी का हक दिलाने का काम किया। सबसे बड़ा काम किया हिंदू कोड बिल के जरिए। इसमें बेटियों को बेटों के बराबर पैतृक संपत्ति का अधिकार, तलाक का अधिकार, अंतरजातीय विवाह को मान्यता और बहुपत्नी प्रथा पर रोक जैसी क्रांतिकारी बातें थीं। उस समय के रूढ़िवादी लोग इतना डर गए कि नेहरू सरकार को भी पीछे हटना पड़ा और बाबासाहेब को मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
लेकिन बाबासाहेब नहीं रुके। बाद में यही हिंदू कोड बिल टुकड़ों में पास हुआ और आज हर बेटी को जो संपत्ति में हिस्सा मिलता है, उसकी नींव बाबासाहेब ने रखी। भारतीय संविधान में भी बाबासाहेब ने नारी को मजबूत अधिकार दिए। अनुच्छेद 14, 15, 16 के जरिए लैंगिक समानता की गारंटी दी। महिलाओं-बच्चों के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार दिया। सबसे बड़ी बात–भारत में महिलाओं को इंग्लैंड और अमेरिका से पहले ही वोट का अधिकार मिला, यह बाबासाहेब की दूरदर्शिता थी।
श्रमिक महिलाओं की रक्षा के लिए बाबासाहेब ने मातृत्व लाभ कानून, खदानों में महिलाओं की सुरक्षा और प्रसूति अवकाश की व्यवस्था करवाई। बाल विवाह, देवदासी प्रथा और विधवा उत्पीड़न जैसी कुरीतियों पर भी उन्होंने करारा प्रहार किया। बाबासाहेब ने बच्चियों की शिक्षा पर सबसे ज्यादा जोर दिया। उन्होंने कहा था–“नारी को शिक्षित करो, ताकि वह गुलामी की मानसिकता से बाहर निकल सके।” सैकड़ों बहुजन-दलित बेटियों को उन्होंने छात्रवृत्ति और हॉस्टल दिलवाए।
आज जब नारी सशक्तीकरण की बात होती है, तो कुछ लोग अपने नाम का डंका पीटते हैं, लेकिन असली हकदार बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर का नाम जान-बूझकर दबाया जाता है। याद रखिए–जिस दिन आपने वोट डाला, संपत्ति में हिस्सा लिया, नौकरी की, अपना जीवनसाथी चुना–उस हर खुशी के पीछे बाबासाहेब का हाथ है। बाबासाहेब न दलितों के अकेले मसीहा हैं, न सिर्फ बहुजनों के। वे भारत की हर बेटी, हर माँ, हर बहन के सच्चे मुक्तिदाता और नारी जगत के सबसे बड़े मसीहा हैं। भारत के राष्ट्र निर्माता हैं।
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