दिवालिया, कंगाल  पाकिस्तान में इमरान खान की हत्या की साजिश

हकीकत या अफसाना।

 दिवालिया, कंगाल  पाकिस्तान में इमरान खान की हत्या की साजिश

 दिवालिया और कंगाल होते जा रहे पाकिस्तान में इन दिनों एक भयावह अफवाह तेज़ी से फैल रही है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की जेल में हत्या कर दी गई है और इस अफवाह ने पूरे देश में भूचाल ला दिया है। इमरान खान की बहनों ने आरोप लगाया है कि उन्हें मुलाक़ात का अधिकार नहीं दिया जा रहा है और पुलिस ने जेल के बाहर उनके साथ बदसलूकी की, जिसके बाद यह अफवाह और तेज़ी से फैल गई। सोशल-मीडिया पर कई पोस्टों में दावा किया गया कि इमरान खान को मार दिया गया है, जबकि स्वतंत्र रिपोर्टें अब तक इन अफवाहों की पुष्टि नहीं कर पाई हैं, परंतु उनकी स्थिति को लेकर गंभीर चिंता और संदेह पूरे पाकिस्तान में फैल चुका है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अफवाहों और आरोपों की लहर पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष की गहराई को और उजागर करती है, क्योंकि सेना और फील्ड मार्शल असीम मुनीर के साथ इमरान खान का टकराव अब खुला और तीखा रूप ले चुका है। इस समय पाकिस्तान खुद आर्थिक बर्बादी के ऐसे गर्त में खड़ा है जहाँ से उबरने की कोई सुस्पष्ट आशा दिखाई नहीं देती। पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज का पहाड़ टूट चुका है और उसकी आर्थिक धमनियाँ लगभग सूख चुकी हैं।

इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड  द्वारा कई बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार नीचे की ओर जा रही है, क्योंकि इंटरनेशनल मोनेटरी फंड ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान की आर्थिक तबाही का मूल कारण भ्रष्टाचार और व्यवस्था की विफलता है, और यदि पाकिस्तान प्रशासनिक सुधार नहीं करता तो उनके सकल घरेलू उत्पाद में 6.5% तक की भारी गिरावट का खतरा है । महंगाई ने जनता का जीवन नर्क बना दिया है, आटा 300 रुपये किलो से ऊपर, चीनी 400 रुपये किलो से ऊपर और सब्जियों-फल-दवा-बीज-बिजली सभी में आग लगी है, जबकि पाकिस्तान के ख़ज़ाने में सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह देने तक के पैसे नहीं हैं।

पाकिस्तान की जनता रोज़मर्रा की वस्तुओं के लिए घंटों लाइन में खड़ी होकर भी जीवन-यापन के लिए संघर्ष कर रही है और देश की मुद्रा रुपये की कीमत गिरते-गिरते ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर पहुँच चुकी है, वहीं इंटरनेशनल मोनेटरी फंड की मदद भी महज़ अस्थायी ऑक्सीजन मात्र साबित हुई है। सेना पर अत्यधिक निर्भरता और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण शासन व्यवस्था पूरी तरह लकवाग्रस्त हो चुकी है, लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो चुका है और इमरान खान से टकराव के बाद विपक्ष और आवाम दोनों ही सड़कों पर उतर आए हैं। यह स्थिति पाकिस्तान की राजनीतिक नेतृत्वहीनता को उजागर करती है, क्योंकि न वहाँ कोई ऐसा मंत्री है जो दूरदर्शिता रखता हो और न कोई ऐसी योजना है जो जनता को राहत दे सके।

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कर्ज का कर्ज चुकाने के लिए पाकिस्तान फिर नए कर्ज लेने को मजबूर है, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड यूएई और अमेरिका और विश्व बैंक से मिलने वाला सहायता-पैकेज भी देश की अर्थव्यवस्था में स्थायी सुधार का उपाय नहीं बन पा रहा है। चीन पाकिस्तान को महज़ अपना कर्ज-ग़ुलाम समझता है और उसका चीन पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट भी अब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर बोझ के रूप में साबित हो रहा है।

ऐसे में पाकिस्तान के सत्ताधारियों द्वारा भारत की ओर नफरत और युद्ध-बयानों को हवा देना केवल जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाने की हताशा-पूर्ण राजनीतिक चाल भर है, क्योंकि जिस देश की हालत यह है कि बिजली उत्पादन ठप, उद्योग बंद, उत्पादन GDP जमीन पर, गरीबी चरम पर, और आतंकवाद के एफएटीएफ की ग्रे-लिस्ट में नाम शामिल है, वह भारत जैसी स्थिर, शक्तिशाली और प्रगतिशील अर्थव्यवस्था को चुनौती दे, यह वास्तविकता नहीं बल्कि मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह है।

इसी बौखलाहट का परिणाम था कि पाकिस्तान ने अपनी खुफिया एजेंसी और आतंकी तत्वों के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में ड्रोन हमला जैसे कायरतापूर्ण प्रयास किए, जबकि दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की कथनी और करनी में इतना अंतर है कि आतंकवाद उसके अस्तित्व का स्थायी सहारा बन चुका है। इमरान खान जिन्होंने क्रिकेट विश्व कप जीतकर कभी पाकिस्तान को एक पहचान दिलाई थी, वही आज अपने राजनीतिक करियर की सबसे काली सुरंग में फँस चुके हैं और सत्ता की लालच और अपरिपक्व नेतृत्व के कारण उन्होंने पाकिस्तान को दो वर्षों में ही ऐसे गर्त में धकेला जहाँ से वापसी लगभग असंभव दिखती है अब इमरान खान का कैरियर और जिंदगी अंतिम सांस ले रही है।

दूसरी तरफ विपक्ष लगातार शाहबाज शरीफ के इस्तीफे की मांग कर रहा है, जनता गुस्से में है, महिलाएँ उनके विवादित बयानों से आहत हैं, और पाकिस्तान की जनता अब भूख और भय के दो पाटों के बीच पिस रही है। यदि हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले समय में IMF-विश्व बैंक-और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में डाल सकती हैं और वह नाममात्र राष्ट्र के अस्तित्व से भी बाहर हो सकता है। यह भयावह स्थिति दर्शाती है कि पाकिस्तान न केवल आर्थिक रूप से दिवालिया है, बल्कि राजनीतिक-सामाजिक-नैतिक रूप से भी ढह चुका है और इमरान खान को लेकर फैली हत्या-अफवाह इस ढहते राष्ट्र की बेचैनी, अविश्वास और अंधकारमय भविष्य का प्रतीक है।

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