वोटर अधिकार यात्रा में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल चिंतनीय
बिहार में विधानसभा चुनावों की घोषणा जल्द होने की उम्मीद है। सभी पार्टियां चुनाव की तैयारी में जुटी हुई हैं। लेकिन लोकतंत्र में चुनाव केवल जीत-हार का खेल नहीं होते, बल्कि यह पूरे समाज की राजनीतिक संस्कृति का आईना होते हैं। मतदाता किसी भी दल को वोट देते समय केवल उसके वादों या घोषणाओं पर ही भरोसा नहीं करते, बल्कि यह भी देखते हैं कि उसके नेता किस तरह बोलते हैं, किस प्रकार अपनी बात रखते हैं और उनकी राजनीतिक शैली में कितना संयम और शालीनता है। भारतीय राजनीति में अब तक यह परंपरा रही है कि विपक्ष सत्ताधारी नेताओं की आलोचना करता है, उनकी नीतियों और फैसलों पर सवाल उठाता है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर भाषा की मर्यादा बनाए रखता है। इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश आज कांग्रेस करती दिखाई दे रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लगातार तीखे और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। कभी उनकी पृष्ठभूमि पर तंज कसे जाते हैं, कभी उनकी मां को लेकर अपमानजनक बयान सामने आते हैं और अब सीधे-सीधे उन्हें ‘तू’ कहकर संबोधित करने की परंपरा भी शुरू हो चुकी है। सवाल यह है कि क्या ऐसी ‘फूहड़पन’ से कांग्रेस सत्ता में लौट पाएगी या फिर यह रणनीति उसे और नुकसान पहुंचाएगी।
2023 और 2024 में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान जब “मुहब्बत की दुकान” का नारा दिया, तो कांग्रेस समर्थकों को लगा कि यह पार्टी की छवि सुधारने का प्रयास है। राहुल गांधी का फूलों के साथ लोगों से संवाद करना, फ्लाइंग किस देना और संसद में अपेक्षाकृत सौम्य भूमिका निभाना, सबने मिलकर यह संदेश देने की कोशिश की कि कांग्रेस नफरत नहीं, बल्कि मोहब्बत और एकता की राजनीति करना चाहती है। यह एक सकारात्मक और आकर्षक प्रयोग था, जिसने राहुल की छवि को एक हद तक मानवीय और उदारवादी बनाया। लेकिन इसी दौरान सोशल मीडिया पर कांग्रेस की आईटी और मीडिया सेल लगातार प्रधानमंत्री के खिलाफ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करती रही। यही नहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने सौ से अधिक सीटें पायीं तो पार्टी के नेताओं में जोश और बढ़ गया और उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर मोदी के खिलाफ अपशब्द बोलना तेज कर दिया।
राहुल गांधी खुद अब ‘फूहड़पन’ पर उतर आए हैं। बिहार में उनकी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री को लेकर जिस तरह की भाषा इस्तेमाल हुई, उसने राजनीतिक माहौल को और विषाक्त बना दिया। कांग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल से जारी पोस्टर में मोदी को वोट चोर तक कहा गया। इससे यह सवाल और गहरा हुआ कि आखिर कांग्रेस अपनी राजनीतिक असफलताओं का समाधान इस तरह की भाषा में क्यों ढूंढ रही है। गुरुवार को जब राहुल गांधी की सभा में मंच से मोदी की मां को लेकर भी अपमानजनक टिप्पणी की गई, तो पटना में हालात बिगड़ गए और अगले ही दिन बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस दफ्तर पर हमला बोल दिया। यह टकराव लोकतांत्रिक राजनीति को हिंसा और अव्यवस्था की तरफ धकेलने वाला था। गृहमंत्री अमित शाह ने प्रतिक्रिया दी कि “जितनी गालियां मिलेंगी, उतना ही कमल खिलेगा।” इस कथन से साफ है कि बीजेपी इसे सीधे राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करेगी।
मतदाता मनोविज्ञान को समझना कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है। भारत का आम मतदाता भले ही भावुक हो, लेकिन वह यह अच्छी तरह जानता है कि व्यक्तिगत गाली-गलौज राजनीति का विकल्प नहीं हो सकती। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई जैसे मुद्दे उसकी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं। यदि कोई विपक्षी दल इन मुद्दों पर ठोस नीतियां और व्यवहारिक समाधान प्रस्तुत करे, तो जनता उसे गंभीर विकल्प मानेगी। लेकिन जब वही दल केवल अपशब्दों और नकारात्मक अभियानों में उलझा हो, तो मतदाता उसे अस्वीकार कर देता है। यही कारण है कि कांग्रेस के तमाम प्रयासों के बावजूद जनता का भरोसा बीजेपी से पूरी तरह नहीं टूटा।
आज कांग्रेस के पास केवल तीन राज्यों में सरकारें हैं। बाकी राज्यों में संगठन बेहद कमजोर है। पार्टी के भीतर गुटबाजी, रणनीति की अस्पष्टता और नेतृत्व पर सवाल भी मौजूद हैं। इन परिस्थितियों में यदि कांग्रेस सत्ता में वापसी चाहती है, तो उसे सबसे पहले अपने संगठन को मजबूत करना होगा, नीतिगत स्पष्टता लानी होगी और जनता से सीधे जुड़े मुद्दों पर विश्वसनीय कार्यक्रम देना होगा। केवल मोदी विरोध ही उसकी राजनीतिक पहचान का आधार नहीं हो सकता।
सच यह है कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, और 11 वर्षों से लगातार इस पद पर बने हुए हैं। चाहे किसी को पसंद हों या न हों, जनता का एक बड़ा वर्ग उन्हें स्वीकार करता है। ऐसे में यदि विपक्षी नेता उन्हें फूहड़पन या नीच-गंवार कहकर संबोधित करेंगे, तो यह न केवल प्रधानमंत्री का अपमान है बल्कि उस जनता का भी अपमान है जिसने उन्हें चुनकर वहां बैठाया है। लोकतंत्र में असहमति की गुंजाइश होनी चाहिए, लेकिन असहमति का मतलब अपमानजनक भाषा कभी नहीं हो सकता।
कांग्रेस को यह समझना होगा कि राजनीति में संयम ही सबसे बड़ा हथियार है। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि लोकतंत्र में विपक्ष सरकार की आलोचना करे, पर सरकार को दुश्मन न माने। यही संतुलन आज कांग्रेस को अपनाना चाहिए। यदि वह केवल नकारात्मकता और आक्रामक भाषा पर जोर देगी, तो उसका फायदा बीजेपी को ही मिलेगा। मतदाता को आकर्षित करने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस सकारात्मक एजेंडा प्रस्तुत करे, अपनी वैचारिक दिशा स्पष्ट करे और युवाओं, किसानों, महिलाओं और गरीबों की वास्तविक समस्याओं को संबोधित करे।
आखिर में यही कहा जा सकता है कि फूहड़पन की भाषा से कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती। इस रास्ते से उसे केवल क्षणिक ताली और सुर्खियां तो मिल सकती हैं, लेकिन स्थायी राजनीतिक लाभ कभी नहीं। भारतीय मतदाता परिपक्व हो चुका है और वह जानता है कि सत्ता में आने वाली पार्टी से उसे ठोस शासन, विकास और स्थिरता चाहिए, न कि गाली-गलौज और उत्तेजना। यदि कांग्रेस ने इस वास्तविकता को नहीं समझा और अपने व्यवहार में संयम नहीं लाया, तो उसका सत्ता से दूर होना तय है। सत्ता में लौटने का मार्ग केवल शालीनता, संगठन और सकारात्मक राजनीति से ही प्रशस्त होगा।
- महेन्द्र तिवारी

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