सुरक्षित समाज की राह : गेमिंग बिल संग पोर्न पर सख्ती

[युवा शक्ति की रक्षा : हिंसक गेमिंग और पोर्न पर भी रोक जरूरी]

सुरक्षित समाज की राह : गेमिंग बिल संग पोर्न पर सख्ती

डिजिटल युग ने हर घर को नई संभावनाओं से जोड़ा हैमगर इस चमक के पीछे कुछ गहरे खतरे भी छिपे हैं। स्मार्टफोन और इंटरनेट ने शिक्षासंचार और मनोरंजन के रास्ते खोलेलेकिन ऑनलाइन गेमिंग की लत और अश्लील सामग्री का बढ़ता प्रसार युवा पीढ़ी को गंभीर खतरे में डाल रहा है। पबजीफ्री फायर जैसे हिंसक गेम्स और अनियंत्रित वेबसाइटें न केवल मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही हैंबल्कि सामाजिक मूल्यों को भी कमजोर कर रही हैं। यह महज मनोरंजन नहींबल्कि एक गंभीर सामाजिक संकट है। इसलिए ऑनलाइन गेमिंग बिल के साथ-साथ हिंसक और अश्लील सामग्री पर सख्त नियंत्रण लागू करना आज की सबसे बड़ी जरूरत हैताकि हमारी युवा शक्ति सुरक्षित रहे और डिजिटल भारत का भविष्य उज्ज्वल हो।

भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग 2025 तक 32,000 करोड़ रुपये का विशाल बाजार बन चुका हैजिसमें 45 करोड़ लोग शामिल हैं। लेकिन इस तेजी के साथ जोखिम भी बढ़े हैं। हिंसक गेम्स युद्ध और हिंसा को आकर्षक बनाकर बच्चों में आक्रामकता और असंवेदनशीलता को बढ़ावा देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गेमिंग की लत को मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित किया है। भारत में कई दिल दहलाने वाली घटनाएंजैसे 2021 में उत्तर प्रदेश में एक किशोर की गेमिंग असफलता के बाद आत्महत्याइस खतरे की गंभीरता को दर्शाती हैं। ये गेम्स मनोरंजन के बजाय मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहे हैं।

गेमिंग उद्योग का आर्थिक और सामाजिक नुकसान चिंताजनक है। नेक्स्ट लेवल और आभासी पुरस्कारों का लालच खिलाड़ियों को जाल में फंसाता हैजिससे हर साल 45 करोड़ लोग मनी गेम्स में 20,000 करोड़ रुपये गंवा रहे हैं। यह न केवल मध्यम वर्गीय परिवारों की बचत को नष्ट कर रहा हैबल्कि मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण जैसे अपराधों को भी बढ़ावा दे रहा है।  केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ऑनलाइन मनी गेम्स विशेषकर मध्यम वर्गीय परिवारों की बचत को नष्ट कर रहे हैं। प्रस्तावित ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 ई-स्पोर्ट्स को बढ़ावा देता हैलेकिन हिंसक गेम्स पर सख्त रोक भी जरूरी है।

इंटरनेट पर अश्लील सामग्री का बढ़ता प्रसार भी गंभीर संकट पैदा कर रहा है। भारत के 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में युवा और किशोर बड़ी संख्या में शामिल हैं। सस्ते स्मार्टफोन्स ने बच्चों के लिए ऐसी सामग्री तक पहुंच आसान कर दी है। एक अध्ययन के मुताबिक, 13-17 वर्ष की आयु के 30% बच्चे अश्लील सामग्री देखते हैंजो उनकी मानसिकता को दूषित करती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबीके 2023 के आंकड़े दर्शाते हैं कि साइबर अपराधों में 24% की वृद्धि हुईजिसमें अश्लील सामग्री से जुड़े अपराध प्रमुख हैं। यह सामग्री न केवल व्यक्तियों को भावनात्मक और सामाजिक रूप से अस्थिर करती हैबल्कि यौन अपराधों और पारिवारिक रिश्तों में तनाव को भी बढ़ाती है।

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ऑनलाइन गेमिंग बिल को व्यापक और प्रभावी बनाना समय की मांग है। इसमें हिंसक गेम्स और अश्लील सामग्री पर कठोर कार्रवाई के स्पष्ट प्रावधान होने चाहिए। एक राष्ट्रीय गेमिंग अथॉरिटी स्थापित कर गेम्स का वर्गीकरण और नियमन सुनिश्चित करना होगा। साइबर सेल को सशक्त कर अश्लील वेबसाइटों पर तत्काल रोक लगानी होगी। उल्लंघनकर्ताओं के लिए साल की जेल और करोड़ रुपये तक के जुर्माने जैसे कड़े दंड निर्धारित किए जाएं। गेमिंग कंपनियों को पैरेंटल कंट्रोल और उम्र-आधारित प्रतिबंध लागू करने के लिए अनिवार्य करना होगा।

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कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। माता-पिता को बच्चों के डिजिटल उपयोग पर सतर्कता बरतनी होगी। स्कूलों में डिजिटल साक्षरता और सुरक्षित इंटरनेट उपयोग के लिए व्यापक अभियान चलाए जाएं। राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन को और तेजी से लागू करना होगा। बच्चों को हिंसक गेम्स के बजाय कोडिंगई-लर्निंग जैसे रचनात्मक और सकारात्मक क्षेत्रों की ओर प्रेरित करना जरूरी है। 2023 में राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल पर 15 लाख शिकायतें दर्ज हुईंजो साइबर अपराधों की गंभीरता को दर्शाता है। साइबर सेल को अधिक संसाधन और अधिकार देकर इसे और प्रभावी बनाना होगा।

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भारत की 65% आबादीजो 35 वर्ष से कम उम्र की हैदेश का भविष्य है। लेकिन हिंसक गेम्स और अश्लील सामग्री इस युवा शक्ति को तबाह करने का खतरा पैदा कर रहे हैं। ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 को हिंसक और अश्लील सामग्री पर कठोर रोक के साथ तत्काल लागू करना होगा। तकनीक को रोकना संभव नहींलेकिन इसके हानिकारक प्रभावों पर अंकुश लगाना अनिवार्य है। सख्त कानूनसशक्त साइबर सेल और व्यापक जागरूकता के सहयोग से हम एक सुरक्षित डिजिटल समाज का निर्माण कर सकते हैं। यह केवल कानूनी कदम नहींबल्कि हमारे भविष्य को सुरक्षित करने का संकल्प है।

प्रो. आरके जैन अरिजीत, बड़वानी (मप्र)

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