रक्षा बन्धन का पर्व केवल दो धागों का नही

रक्षा बन्धन का पर्व केवल दो धागों का नही

पर्व भारतीय संस्कृति के प्राण है।जोकि अतीत के उज्ज्वल गरिमामय को तरोताजा कर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते है।पर्व के माध्यम से संस्कृति की पहचान होती है।तथा निर्मल भावो का संचार भी जन जन में बिना किसी प्रयास के सहजता से होता है।पर्व और त्योहार की जड़े इतनी गहरी है कि हमलावर लोग धन लूट कर ले गये।लेकिन बाहरी रूप से हमे गुलामी की जंजीरों से बांधा।
 
भाई और बहन के प्यार में जो सात्विकता वह अन्य सम्बन्धो में कहा परिलक्षित हो पाती है?समाज का हर एक वर्ग एक दूसरे के स्नेह के बंधन में बांध लें तो जीवन ही निखर जाएगा।राखी का पर्व सात्विक स्नेह और प्रेम का पर्व है।गुलामी की जंजीरों में हमे बंधा,लेकिन पर्व की संस्कृति को ज़रा भी ठेस नही पहुंचा सके।यही कारण है कि आज हमारी संस्कृति सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी न केवल सुरक्षित है बल्कि चली आ रही है।
 
विभिन्न भाषा ओर प्रान्त होने के बावजूद मानवीय रिश्तों को मजबूती अगर  किसी ने प्रदान की है तो वह है पर्व।जो अमीर गरीब तक सभी लोग हर्षोल्लास और उल्लासित होकर मनाते है।यही कारण है कि हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।रक्षा बंधंन का पर्व दो दागों का नही।इसके पीछे अनन्त  प्यार और शक्ति समाहित है।रक्षा बंधन केवल भाई बहन का रिश्ता ही नही दर्शाता।बल्कि हमे कर्तव्य का भी बोध कराता है।
 
रक्षा का अर्थ है प्रेम,दया,सहयोग और सहानुभूति।रक्षा जीवन मे मधुरता का संचार करती है। भाईचारे की भव्य भावना को उजागर करती है। रक्षा की भव्य भावना से उठोरित होकर ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने धनुष उठाया था ओर कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र धारा था।बड़े बड़े योद्धाओं ने रक्षा की भावना से ही तलवारे ग्रहण की थी।रक्षा के लिए ही यह सभी साधन निर्मित हुए है।
 
रक्षा शब्द में जीवन की शक्ति है। प्राण है, आत्मा का निज गुण है।मानव ह्दय की अदभुत कोमलता है,मानव के अंतर मानस से प्रवाहित होने वाला एक ऐसा निर्मल निर्झर है जो पाप,ताप और संताप से मुक्त कराता है।रक्षा के भीतर मानवीय सुख दुःख की सहनुभूति, संवेदना और उत्सर्ग की भावना छिपी है।रक्षा बंधन को वैदिक महर्षियों ने चार वर्णों की स्थापना की है।
आज राष्ट्र में हजारों बहने है जिसका जीवन असुरक्षित है,उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।रक्षा बंधन का पर्व यह पावन प्रेरणा दे रहा है कि हम उनकी रक्षा करे।आज संसार मे नारी असुरक्षित है।पुरुष की दुर्बलता समझिए या उसकी संस्कारो की हीनता समझिए कि वह नारी को सौंदर्य का प्रतीक मान बैठा है।,जबकि वास्तविकता इससे विपरीत है।
 
रक्षाबंधन का दिन बहनों के सन्मान की रक्षा का दिन है ।नारी की शारीरिक सुंदरता का अवांछनीय उपयोग विज्ञापनों में नही करे।वे अपने विष बुझे हुए तरकश में बंद रखे।इन उतेजनात्मक तीरों से राष्ट्र की धर्म प्रधान संस्कृति को,नीति सदाचार की इस जीर्ण शीर्ण काया को जो अधिक घायल न करे।यह पर्व सारे समाज का पर्व है।समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करे और समाज की व्यवस्था को बनाए रखने हेतु सम्पन्न वर्ग अपने से विपन्न व्यक्ति का सहयोग करे।यही संदेश है रक्षाबंधन का।गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था।राणा सांगा हार चुके थे।
 
उनकी विधवा रानी कर्मावती ने हुमायु को राखी भेजकर बहादुरशाह से रक्षा मांगने का मन बनाया तो राजपूत संस्कारो ने रानी से कहा-महारानी!हुमायु जानता है कि आप उसके पिता बाबर के शत्रु की रानी है।क्या वह आपकी रक्षा करने आयेगा? रानी कर्मावती ने बड़े आत्म विश्वास के साथ कहा-हुमायु कर्मावती की रक्षा करने कभी नही आएगा,लेकिन मुसलमान भाई अपनी हिन्दू बहिन की रक्षा करने अवश्य आएगा।राखी व्रज से भी कठोर बन्धन है।समाज का हर वर्ग एक दूसरे के स्नेह के बंधन में बांध लें तो जीवन ही निखर जाएगा।
 
कांतिलाल मांडोत

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