हरियाली तीज: आस्था, पर्यावरण और नारी-सम्मान की त्रिवेणी

[श्रृंगार, समर्पण और सावन: तीज का जीवन-दर्शन]

हरियाली तीज: आस्था, पर्यावरण और नारी-सम्मान की त्रिवेणी

सावन की रिमझिम फुहारों में जब धरती हरियाली का चादर ओढ़ लेती हैतब हरियाली तीज का पर्व भारतीय संस्कृति के रंगों को और गहरा कर देता है। यह पर्व केवल एक त्योहार नहींबल्कि प्रेमभक्तिनारी-शक्ति और प्रकृति के साथ गहरे जुड़ाव का उत्सव है। 27 जुलाई कोजब सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरियाली तीज मनाई जाएगीयह दिन भारत के कोने-कोने में उमंगश्रृंगार और सामूहिक आनंद का प्रतीक बनेगा। यह वह अवसर है जब महिलाएँ हरे वस्त्रों में सजकरमेंहदी से रंगे हाथों और गीतों की मधुर तान के साथ जीवन की रस-रंगत को जीवंत करती हैं। हरियाली तीज  केवल परंपराओं का पुनरावलोकन हैबल्कि यह एक जीवन-दर्शन है जो हमें प्रेमसमर्पण और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता की सीख देता है।

पौराणिक कथाओं में हरियाली तीज का विशेष महत्व है। मान्यता है कि माता पार्वती ने कठिन तपस्या और अटूट भक्ति के बल पर सावन मास की तृतीया तिथि को भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया था। यह कथा नारी की शक्तिविश्वास और समर्पण को रेखांकित करती है। यही कारण है कि यह पर्व विवाहित महिलाओं के लिए अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना का प्रतीक हैजबकि अविवाहित युवतियाँ शिव-पार्वती की पूजा कर आदर्श वर की प्रार्थना करती हैं। स्कंद पुराण और शिव पुराण जैसे ग्रंथ इस तिथि को धार्मिक दृष्टिकोण से और भी पवित्रता प्रदान करते हैं। यह पर्व  केवल धार्मिक अनुष्ठानों का अवसर हैबल्कि यह समाज में नारी के सम्मान और उनकी भावनात्मक गहराई को भी उजागर करता है।

सावन का महीना जब धरती को हरियाली से सजाता हैतब हरियाली तीज प्रकृति के इस यौवन का उत्सव बनकर उभरती है। खेत-खलिहानों में लहलहाती फसलेंपेड़ों की हरी-भरी शाखाएँ और नदियों का कल-कल बहता जल इस पर्व की पृष्ठभूमि को और सुंदर बनाता है। यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और उसके संरक्षण का संदेश देता है। आधुनिक समय मेंजब पर्यावरणीय चुनौतियाँ जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग और वनों की कटाई गंभीर मुद्दे बने हुए हैंहरियाली तीज का महत्व और बढ़ जाता है। हरियाली तीज केवल उत्सव नहींबल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक भी है।

हरियाली तीज की सबसे मनमोहक परंपराओं में से एक है झूला झूलने की रस्म। गाँवों में पीपलनीम या आम के पेड़ों पर रंग-बिरंगे रस्सियों के झूले बाँधे जाते हैंजिन पर महिलाएँ और युवतियाँ समूह में झूलती हैं। “सावन में झूले पड़ेनीम की डाली पर... जैसे लोकगीत हवा में गूँजते हैंजो  केवल मनोरंजन का साधन हैंबल्कि सामाजिक एकता और भावनात्मक अभिव्यक्ति का भी माध्यम हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसारउत्तर भारत के 75% ग्रामीण क्षेत्रों में तीज के दौरान झूला झूलना और लोकगीत गाना प्रमुख परंपराएँ हैं। शहरी क्षेत्रों मेंजहाँ प्राकृतिक वृक्षों की कमी हैवहाँ सामुदायिक केंद्रोंपार्कों और मंदिरों में झूले सजाए जाते हैं। यह परंपरा सामूहिकता को बढ़ावा देती है और महिलाओं को अपनी खुशियों को साझा करने का मंच प्रदान करती है।

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हरियाली तीज- आस्था पर्यावरण और नारी-सम्मान की त्रिवेणी

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इस पर्व का स्वाद भी उतना ही अनूठा है जितना इसका सांस्कृतिक महत्व। हरियाली तीज पर घरों में घेवरमालपुआपूड़ीखीर और हलवा जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। घेवरजो राजस्थान की शान हैइस पर्व का सबसे लोकप्रिय पकवान है। सावन के महीने में घेवर की माँग 40% तक बढ़ जाती हैजो स्थानीय मिठाई उद्योग को भी गति देता है। इसके अलावाससुराल से बहू को ‘सिंजारा’ भेजने की परंपरा रिश्तों में मधुरता लाती है। इसमें हरे वस्त्रगहनेमिठाई और श्रृंगार सामग्री शामिल होती है। यह परंपरा  केवल उपहारों का आदान-प्रदान हैबल्कि पारिवारिक स्नेह और सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का एक सुंदर तरीका है।

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हरियाली तीज का श्रृंगार अपने आप में एक कला है। हरे रंग की साड़ियाँलहंगेचूड़ियाँ और मेंहदी इस दिन की शोभा बढ़ाते हैं। हरा रंग समृद्धिउर्वरता और सौभाग्य का प्रतीक है। मेंहदीजो तीज की पहचान है केवल सौंदर्य को निखारती हैबल्कि प्रेम और वैवाहिक जीवन की गहराई को भी व्यक्त करती है। 2024 के आँकड़ों के अनुसारसावन मास में मेंहदी और श्रृंगार सामग्री की बिक्री में 30% की वृद्धि दर्ज की गईजो इस पर्व की लोकप्रियता और आर्थिक प्रभाव को दर्शाता है। महिलाओं का यह श्रृंगार केवल बाहरी सौंदर्य तक सीमित नहीं हैबल्कि यह उनकी आंतरिक शक्तिआत्मविश्वास और आस्था का प्रतीक है।

सामाजिक दृष्टिकोण सेहरियाली तीज महिलाओं के लिए एक मंच है जहाँ वे अपनी कलाभावनाएँ और एकता को व्यक्त करती हैं। जयपुरलखनऊ और दिल्ली जैसे शहरों में तीज के अवसर पर मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैंजिनमें भजन-कीर्तननृत्यमेंहदी प्रतियोगिताएँ और पारंपरिक वेशभूषा की प्रदर्शनियाँ शामिल होती हैं। ये मेले हर साल लाखों लोगों को आकर्षित करते हैं और स्थानीय हस्तशिल्पवस्त्र और गहनों की बिक्री को बढ़ावा देते हैं। ये आयोजन न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैंबल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करते हैं।

आज के युग मेंजब तकनीक और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ जीवन का केंद्र बन रही हैंहरियाली तीज जैसे पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा आनंद सामूहिकताप्रकृति के प्रति प्रेम और परंपराओं के संरक्षण में है। यह नारी-शक्ति का उत्सव हैजो हमें याद दिलाता है कि नारी केवल घर की नींव नहींबल्कि समाज की संस्कृति और मूल्यों की वाहक भी है। यह पर्व पर्यावरणीय चेतना को भी प्रोत्साहित करता हैजो आधुनिक समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

27 जुलाई को जब हरियाली तीज का उत्सव मनाया जाएगायह केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं रहेगा। यह प्रेमसमर्पणसामाजिक एकता और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बनेगा। जब महिलाएँ मेंहदी रचाएँगीहरे वस्त्रों में सजेंगी और झूलों पर गीत गाएँगीतब यह केवल परंपरा का निर्वाह नहीं होगाबल्कि जीवन की जीवंतता और आनंद का उत्सव होगा। हरियाली तीज हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी रिश्तों को सहेजनेप्रकृति को संजोने और अपनी संस्कृति को जीवित रखने में है। यह पर्व एक ऐसी कड़ी है जो हमें अतीत से जोड़ती हैवर्तमान को समृद्ध करती है और भविष्य को प्रेरणा देती है।

 प्रो. आरके जैन अरिजीत, बड़वानी (मप्र)

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