अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: भाषाई विविधता का गौरवशाली उत्सव
भाषा महज़ संवाद का साधन नहीं, बल्कि यह हमारी आत्मा का स्वर, हमारी संस्कृति का प्रचंड उद्घोष और हमारी पहचान का अटूट प्रतीक है। जब कोई नन्हा शिशु अपनी मातृभाषा में पहला शब्द बोलता है, तो वह केवल एक ध्वनि नहीं गूँजता, अपितु अपनी संस्कृति की प्रथम कड़ी को मज़बूत करता है। यह शब्द कोई साधारण उच्चारण नहीं, बल्कि उस समाज और परंपरा की अनमोल निधि है, जिसके आलिंगन में वह जन्म लेता है। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, जो हर साल 21 फरवरी को धूमधाम से मनाया जाता है, हमें इस अनमोल विरासत की महिमा का स्मरण कराता है। यह दिवस केवल भाषाई वैविध्य का उत्सव नहीं, बल्कि हमें अपनी भाषाई जड़ों को संजोने और उनकी रक्षा करने का जोशीला संदेश देता है। यह दिन हमें गर्व से यह बोध कराता है कि भाषा सिर्फ़ विचारों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता, हमारे गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक वैभव की अडिग नींव है।
विविध भाषाएँ किसी भी समाज की सांस्कृतिक निधि का गौरवशाली आधार होती हैं। वे केवल संवाद का साधन नहीं, अपितु विविधता और वैभव के प्रचंड प्रतीक हैं। एक बहुभाषी समाज न सिर्फ़ समावेशी होता है, बल्कि असीम शक्ति से परिपूर्ण भी होता है, क्योंकि यह विभिन्न संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण सहजीवन को प्रेरित करता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में मातृभाषा की भूमिका और भी गहन व प्रभावशाली हो उठती है। यहाँ की भाषाई बहुरंगी छटा राष्ट्रीय एकता को अटूट बल प्रदान करती है और समाज को सांस्कृतिक रूप से अपार समृद्धि से भर देती है। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हमें इस अनुपम विविधता को संजोने का संदेश देता है। यह हमें यह दृढ़ संकल्प सिखाता है कि कोई भी भाषा नन्ही या विशाल नहीं होती, बल्कि प्रत्येक भाषा अपने आप में एक अनमोल रत्न है। जब हम किसी भाषा का संरक्षण करते हैं, तो हम उसके साथ जुड़े इतिहास, साहित्य और संस्कृति के अमिट धरोहर को भी सुरक्षित रखते हैं।
आज के वैश्विकरण के युग में अनेक भाषाएँ विलुप्ति के कगार पर डगमगा रही हैं। आधुनिक जीवनशैली और औद्योगिक उन्नति के प्रचंड प्रभाव से कई भाषाएँ अपनी प्राचीन पहचान को खो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर पखवाड़े एक भाषा सदा के लिए मौन हो रही है। यदि यह भयावह सिलसिला अनवरत चलता रहा, तो सैकड़ों भाषाएँ चिरकाल के लिए लुप्त हो जाएँगी। यह मात्र भाषाई क्षति नहीं होगी, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का ऐसा अपूरणीय विनाश होगा, जिसकी भरपाई असंभव है। मातृभाषा दिवस हमें यह प्रखर स्मरण कराता है कि भाषा संरक्षण सिर्फ़ शब्दों को जीवित रखने का प्रयास नहीं, अपितु यह समस्त मानवता की बौद्धिक और सांस्कृतिक संपदा को अक्षुण्ण बनाए रखने का दृढ़ संकल्प है।
शिक्षा के क्षेत्र में मातृभाषा की भूमिका अपरिमेय और प्रभावशाली है। शोध इस सत्य को उजागर करते हैं कि जब बच्चे अपनी मातृभाषा में ज्ञानार्जन करते हैं, तो उनकी सीखने और बोध करने की शक्ति अभूतपूर्व रूप से प्रखर होती है। यह न केवल उनकी तर्कशक्ति को अडिग बल प्रदान करता है, बल्कि अन्य भाषाओं को आत्मसात करने की उनकी योग्यता को भी अपार विस्तार देता है। यूनिसेफ और यूनेस्को जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएँ इस बात पर दृढ़ता से ज़ोर देती हैं कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही दी जानी चाहिए। भारत में भी इस दिशा में ठोस कदम उठाए गए हैं, विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के माध्यम से, जिसने मातृभाषा को शिक्षा का आधार बनाकर इसे सशक्त रूप से लागू करने पर बल दिया है।
एनईपी के तहत यह प्रावधान किया गया है कि प्रारंभिक स्तर पर बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा दी जाए, जो न केवल शैक्षिक गुणवत्ता को बढ़ाता है, बल्कि भारत की भाषाई विविधता को संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। इससे बच्चों के भीतर आत्मविश्वास का संचार होता है और वे अपनी संस्कृति व परंपराओं के अटूट सूत्र से जुड़े रहते हैं। विश्व भर में, और अब भारत में भी, इस लक्ष्य की ओर सशक्त कदम उठाए जा रहे हैं कि शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
मातृभाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए हमें विभिन्न स्तरों पर प्रयास करने की आवश्यकता है। सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इसमें योगदान देना चाहिए। कुछ प्रमुख कदम जो उठाए जा सकते हैं: कुछ प्रमुख कदम जो उठाए जा सकते हैं: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया गया है, ताकि बच्चों को ज्ञान का प्रथम प्रकाश सहजता और गहराई के साथ प्राप्त हो।
लोककथाओं, साहित्य और ऐतिहासिक दस्तावेजों का संकलन कर उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जाए। डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से भाषाओं का प्रचार-प्रसार किया जाए। सरकारों को बहुभाषिक नीतियां अपनानी चाहिए, जिससे भाषाई विविधता को बढ़ावा मिले। भाषा मेलों, साहित्यिक उत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भाषाओं के प्रति जागरूकता फैलाई जाए।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मात्र एक तिथि नहीं, बल्कि हमारी भाषाई धरोहर को संरक्षित और समृद्ध करने की अटूट शपथ है। यह हमारी पहचान, संस्कृति और परंपराओं की सशक्त कड़ी है, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है। यदि हम अपनी मातृभाषा की रक्षा करने में असफल रहे, तो न केवल हमारी सांस्कृतिक नींव कमजोर होगी, बल्कि हमारी अस्मिता भी खतरे में पड़ जाएगी। अतः आवश्यक है कि हम अपनी भाषा को सम्मान और गौरव के साथ अपनाएँ, उसे संवारें और भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का अपना पवित्र दायित्व निभाएँ। हम सभी संगठित होकर अपनी मातृभाषा के संरक्षण और संवर्धन हेतु पूर्ण निष्ठा से समर्पित रहें, इसे न केवल आत्मसात करें, बल्कि दूसरों को भी सीखने हेतु प्रेरित करें, ताकि यह युगों-युगों तक अपनी दिव्य आभा बिखेरती रहे और हमारी सांस्कृतिक विरासत को अटूट शक्ति व गौरव प्रदान करती रहे।

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