शिन्देशाही से महाराष्ट्र में नयी रार

शिन्देशाही से महाराष्ट्र में नयी रार

शिन्देशाही का मामला हालाँकि महाराष्ट्र  का है लेकिन ये हमारे शहर ग्वालियर से भी जुड़ा है इसलिए मै इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। ग्वालियर में शिंदे यानि सिंधिया शासन की नीव रखने वाले महान योद्धा महादजी सिंधिया के नाम पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ  शिंदे को ' महादजी शिंदे राष्ट्र गौरव पुरस्कार' देने और एनसीपी के सुप्रीमो शरद पंवार द्वारा एकनाथ की तारीफ़ करने से महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है।

एकनाथ शिंदे महारष्ट्र के बिभीषण  हैं। उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता हासिल करने के लिए शिवसेना से बगावत कर एक  नई शिव सेना बना ली थी ।  उन्होंने महाराष्ट्र   विकास अगाडी की सरकार का तख्ता पलटने में मुख्य भूमिका निभाई थी, उन्हीं एकनाथ को सम्मानित करने के लिए आयोजित समारोह में शरद पंवार की मौजूदगी ही नहीं बल्कि उनके द्वारा शिंदे के कसीदे काढ़ना महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के सहयोगियों को रास नहीं आया और शिवसेना [ उद्धव ठाकरे गुट ] ने पंवार को आड़े हाथ ले लिया।आपको बता दूँ कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मंगलवार को न्यू महाराष्ट्र सदन में महादजी शिंदे राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार प्रदान क‍िया गया। पुणे स्थित सरहद संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में एनसीपी (एसपी) नेता शरद पवार ने श‍िंदे को पुरस्‍कार प्रदान क‍िया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजूद रहे ,क्योंकि महादजी शिंदे उनके पूर्वज थे। ।

शिवसेना-यूबीटी सांसद संजय राउत ने कहा कि शरद पवार को ऐसे कार्य़क्रम में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए की सरकार गिरा दी थी। राजनीति में कुछ चीजों से बचना होता है।  जिसे हम महाराष्ट्र का दुश्मन समझते हैं उसे ऐसा सम्मान देना, महाराष्ट्र के गौरव पर आघात है। राउत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीपी-एसपी के सांसद अमोल कोल्हे ने कहा कि -राउत अपनी निजी राय जाहिर कर सकते हैं।   यह अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का हिस्सा था।  उन्होंने  कहा, ''पंवार साहब ने स्टेट्समैनशिप को दिखाया है जहां हर चीज में कोई राजनीति को नहीं लाता।  मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत है।  वह कार्य़क्रम में अध्यक्ष थे।

इस विवाद   के पीछे राजनितिक   षड्यंत्र देखा जा रहा है।  समझा जा रहा है कि इस कार्यक्रम के बहाने भाजपा हाईकमान ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंदिया के जरिये शरद पंवार को भाजपा में लाने की कोशिश की जा रही है। सिंधिया  भाजपा के पुराने बिभीषण है।  सिंधिया 2020  में  मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरा चुके हैं। उनके इसी कौशल के चलते उन्हें महाराष्ट्र में मराठी कार्ड खेलकर शरद पंवार को भाजपा में लाने की जिम्मेदार दी गयी है ।

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 आपको याद होगा कि शरद पंवार की आधी  पार्टी को उनके भतीजे अजित पंवार पहले ही भाजपा के साथ जोड़ चुके हैं।  शरद पंवार अब अकेले पड़ गए हैं और उन्हें अपनी बेटी सुप्रिया के राजनीतिक भविष्य की चिंता सता रही है। माना जाता है की वे अपने जीते जी सुप्रिया का राजनितिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए भाजपा से गठजोड़ कर सकते हैं ,अर्थात जिस महाराष्ट्र विकास अघाड़ी को उन्होंने ही बनाया था उसे वे तोड़ सकते हैं। अभी लोकसभा में शरद पंवार गुट के दोनों सदनों में कुल 5  सांसद हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में भी अब पंवार गुट के कुल 10  विधायक बचे हैं।

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मजे की बात ये है कि भाजपा को महाराष्ट्र की सत्ता में बने रहने के लिए शरद पंवार की जरूरत नहीं है,भाजपा तो महाराष्ट्र में विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के लिए पंवार को अपने साथ रखना चाहती है ताकि विपक्षी गठबंधन महाराष्ट्र विकास अघाड़ी पूरी तरह बिखर जाये।हालाँकि लोकसभा और राजयसभा में पंवार के 5  सांसद भाजपा के काम के हैं।  आपको याद होगा कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में भाजपा मविअ की कमर पहले ही तोड़ चुकी है।

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शरद पंवार ने इस दिशा में पहला कदम तो आगे बढ़ा ही दिया है। उन्होंने उन एकनाथ शिंदे की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए जो महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के दुश्मन नंबर एक हैं। उद्धव ठाकरे गुट ने तो पंवार की इस हरकत पर फौरन प्रतिक्रिया दे ही दी ,लेकिन कांग्रेस मौन है। कांग्रेस का मौन भी संकेत देता है की पंवार साहब की हरकत कांग्रेस को भी रास नहीं आयी।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार पहली बार महाराष्ट्र के लम्बे दौरे पर भी गए थे ।  वे जबसे भाजपा में आये हैं मराठी गौरव के रूप में महादजी सिंधिया के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं।  अपने गृहनगर में भी उन्होंने महादजी सिंधिया स्मारक को नयी सजधज देने के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना का पैसा खर्च कराया है।  आजाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी राजवंश के प्रतीक चिन्हो   को दोबारा से सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिष्ठित करने की कोशिश की गयी। अब महादजी का नाम महारष्ट्र की राजनीती में खटास पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

जानकारों का मानना   है कि यदि महादजी शिंदे के नाम का पुरस्कार देने के लिए एकनाथ को न चुना जाता तो शायद ये विवाद भी न होता ,लेकिन जानबूझकर एकनाथ को ये सम्मान दिया गया। एकनाथ शिंदे महादजी शिंदे के गौत्र से हैं या नहीं ये भगवान जाने ? लेकिन उनके नाम के आगे शिंदे लगा है।दूसरी बात ये है कि ये सम्मान महाराष्ट्र साहित्य सम्मेलन का था। यहां सम्मान  लिए राजनीतिक  व्यक्ति को क्यों चुना गया ?क्या ये पुरस्कार केवल शिंदे लोगों के लिए ही सृजित किया गया था ?

पांच लाख का ये पुरस्कार आजतक ग्वालियर में किसी को नहीं दिया गया। बहरहाल अब देखना है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वज महाराष्ट्र   की सियासत में भाजपा के किसी काम आ सकते हैं  या उनके नाम के इस्तेमाल से मराठा समाज में इसकी गलत प्रतिक्रिया होती है। आने वाले दिनों में पता चल जाएगा कि शरद पंवार भी आखरी वक्त में मुसलमान होने जा रहे हैं या नहीं ?

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