क्या आरोप लगाने से बाज़ आएगा विपक्ष ?
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दिल्ली विधानसभा के चुनाव संपन्न हो गये, भारतीय जनता पार्टी ने वहां 27 साल के बाद सत्ता में वापसी की है। वहीं दस वर्षों तक सत्ता में काबिज रहने वाली आम आदमी पार्टी अब दिल्ली की सत्ता से दूर हो चुकी है। इस बार दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी 48 जबकि आप को 22 सीटें मिलीं। पिछली विधानसभा की बात करें तो आप के पास 62 सीट थीं जबकि भारतीय जनता पार्टी के पास 8 सीट थीं। यह निश्चित है कि इस चुनाव में आप सत्ता से बाहर हुई है लेकिन भाजपा को सफलता का वो प्रतिशत नहीं मिला जो पिछली दो विधानसभा में आप के पास था। दिल्ली की हार के बाद विपक्ष में आपस में आरोप प्रत्यारोप शुरू हो चुके हैं।
लेकिन क्या सिर्फ आरोप प्रत्यारोप के द्वारा हम अपनी गलतियों को छिपा सकते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को कटघरे में लिया है। और यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कारण आप की हार हुई है। यहां पर सोचने वाली बात यह है कि कांग्रेस को हटाकर ही आप दिल्ली की सत्ता में आई थी तो क्या आप को जिताने के लिए कांग्रेस को हट जाना चाहिए ? क्यों नहीं दिल्ली में गठबंधन करके चुनाव लड़ा गया।
इस चुनाव में यह स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि आम आदमी पार्टी को इस बार सत्ता में वापसी करने में दिक्कत हो सकती है। लेकिन फिर भी आप ने गठबंधन के लिए कांग्रेस से दो टूक मना कर दी थी। जब विपक्षी दल एक होकर चुनाव नहीं लड़ सकते तो उनको कोई अधिकार नहीं है कि वो किसी दूसरी पार्टी पर उंगली उठा सकें। और फिर कांग्रेस क्यों हटे क्या सारे विपक्ष को जिताने का ठेका कांग्रेस ने ही ले रखा है। अन्य विपक्षी दलों का कोई कर्तव्य नहीं है।
सच तो यह है चाहे वह उत्तर प्रदेश का मिल्कीपुर हो या दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम। विपक्ष इसमें हारा है। विपक्ष हारा ही नहीं उसकी रणनीति भी फेल हो रही है। आपसी खींचतान में न उलझकर एक रणनीति की आवश्यकता है जो कि कभी दिखाई नहीं दी। नितीश कुमार ने इंडिया गठबंधन को ऐसे ही नहीं छोड़ा है, यही सब कारण बनते हैं जब केवल निजी स्वार्थ की बात होती है।
दिल्ली की सत्ता जाने के बाद अब आगे भी आम आदमी पार्टी को सत्ता में वापसी करना मुश्किल होगा। दिल्ली एक ऐसा राज्य है जहां की जनता ने आप को उस समय बंपर जीत दी जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी। लेकिन आपसी खींचतान की वजह से आप इसको बरकरार रखने में सफल नहीं हो सकी। ऐसा दिल्ली में ही नहीं है बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी ऐसा ही हुआ है। और यही कारण है कि मजबूत होते हुए भी विपक्ष कमजोर प्रदर्शन कर पा रहा है।
जब भी विपक्षी एकता की बात होती है तो पहले विपक्षी दलों को आपना स्वार्थ साधते देखा जाता रहा है। सही मायने में तो देखा जाए तो विपक्षी दल स्वयं ही भारतीय जनता पार्टी को हटाना नहीं चाहते और आरोप एक दूसरे पर मढ़ रहे हैं। सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने दिल्ली चुनाव के बाद तुरंत यह कहते देर नहीं लगाई कि दिल्ली में आप की हार की जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी है। जब कांग्रेस को सत्ता में रहते आप ने जीरो पर समेट दिया था तब जिम्मेदार कौन था। क्या दूसरे दलों के लिए कांग्रेस अपनी राजनीति खत्म करदे, क्या यही विपक्ष चाहता है।
विपक्षी दलों का गठबंधन भी अजीब दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर सभी गठबंधन करना चाहते हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर सभी के विचार, सिद्धांत बदल जाते हैं। लोकसभा का चुनाव साथ लड़ना चाहते हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में जहां स्वयं मजबूत हैं वहां किसी अन्य को अधिक महत्व नहीं देना चाहते। भारतीय जनता पार्टी जानती है कि विपक्ष केवल अपनी ग़लत रणनीति के कारण हार रहा है और इसीलिए वह दम भर कर कहती है कि आने वाले 15-20 सालों तक देश की राजनीति से भाजपा को कोई हिला नहीं सकता।
एक राज्य में आप एक होकर चुनाव लड़ते हैं वहीं दूसरे राज्य में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकते नजर आते हैं। देश की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है और न ही जनता को आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है। केजरीवाल दिल्ली और पंजाब में मजबूत थे तब वहां किसी से गठबंधन नहीं करना चाहते थे जब कि अन्य राज्यों में उनके गठबंधन के विकल्प खुले रहते हैं। आखिर यह दोहरा मापदंड क्यों ? देश की जनता यह जानना चाहती है।
आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले दिल्ली में लगातार तीन बार शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। लगातार तीन बार सरकार बनना इतना आसान नहीं है। जबकि दिल्ली के पड़ोसी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में राजनैतिक उथल-पुथल जारी रही। दिल्ली में केजरीवाल ने जब एक नई राजनीति की शुरुआत की तो लोगों को लगा कि शायद ये कुछ अलग करेंगे लेकिन राजनीति के नियम और सिद्धांत एक ही हैं।
यदि राजनीति करनी है तो उन्हें अपनाना होगा और यही आम आदमी पार्टी के साथ हुआ। सभी को पता है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन था लेकिन वहीं विधानसभा चुनाव में पंजाब और दिल्ली में आप ने स्पष्ट मना कर दिया कि वह इन विधानसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी। आम आदमी पार्टी समेत समूचे विपक्ष को एक बार बैठकर चिंतन करने की आवश्यकता है।
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