हरियाणा चुनाव : सत्ता का चक्रव्यूह
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गत 16 सितंबर को हरियाणा में नामांकन पत्र वापस लेने की अंतिम तिथि समाप्त हो गयी। प्राप्त समाचारों के अनुसार राज्य में 190 उम्मीदवारों ने नामांकन वापस ले लिया है। नाम वापस लेने वालों में भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के कई बाग़ी उम्मीदवार भी शामिल हैं। इनमें सिरसा विधानसभा की सीट ऐसी भी है जहां बीजेपी प्रत्याशी रोहतास जांगड़ा ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया है। रोहतास जांगड़ा ने मीडिया को बताया कि पार्टी के कहने पर ही उन्होंने पर्चा दाख़िल किया था और पार्टी के कहने पर ही उन्होंने अपना नाम वापस भी ले लिया है। क़यास लगाये जा रहे हैं कि सिरसा विधानसभा सीट पर अब भाजपा हरियाणा लोकहित पार्टी के प्रमुख पूर्व मंत्री गोपाल कांडा को अपना समर्थन दे सकती है। ख़बर यह भी है कि इस 'सौदेबाज़ी' के तहत गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी रानियां सीट पर अपने उम्मीदवार के बजाये भाजपा उम्मीदवार को समर्थन दे सकती है। अंबाला की दो विधानसभा सीटों को लेकर भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है।
अम्बाला शहर की सीट पर भाजपा ने यहां से दो बार विधायक रहे असीम गोयल को तीसरी बार भी मैदान में उतरा है। गोयल, नायब सिंह सैनी के मंत्रिमंडल में पहली बार राज्य मंत्री भी बनाये गए हैं। कांग्रेस के दो मज़बूत बाग़ी उम्मीदवारों पूर्व विधायक जसबीर मलोर तथा युवा नेता हिम्मत सिंह के नामांकन पत्र भरने की वजह से असीम गोयल के लिये तीसरी बार भी यह सीट जीतना आसान लग रहा था। परन्तु नामांकन पत्र वापस लेने के अंतिम दिन सांसद दीपेंद्र हुडा ने स्वयं अंबाला पहुंचकर कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी व पूर्व मंत्री चौधरी निर्मल सिंह के पक्ष में इन दोनों कांग्रेस नेताओं के नामांकन वापस करा दिये। इसके बाद अब यह माना जा रहा है कि निर्मल सिंह की जीत का रास्ता प्रशस्त हो गया है।
उधर अम्बाला छावनी की सीट पर गत छः बार के विधायक रहे पूर्व गृह व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। उनका मुक़ाबला वैसे तो कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी परिमल परी से है जो पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। परन्तु इसी सीट पर चित्रा सरवारा भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। चित्रा सरवारा कांग्रेस के अंबाला शहर के प्रत्याशी व पूर्व मंत्री चौधरी निर्मल सिंह की बेटी हैं। 2019 तक चौधरी निर्मल सिंह कांग्रेस में थे। बाद में कांग्रेस छोड़कर कुछ समय के लिये आम आदमी पार्टी में भी शामिल हुये। कुछ समय पूर्व ही पिता-पुत्री की पुनः ' घर वापसी ' हुई है। चित्रा 2019 में भी विज के विरुद्ध निर्दलीय चुनाव लड़कर 44 हज़ार वोट ले चुकी थीं इसलिये इस बार वह कांग्रेस से टिकट मांग रही थीं।
परन्तु पार्टी ने एक ही ज़िले से पिता पुत्री को एक साथ टिकट न देने का निर्णय तो लिया। परन्तु जिस सक्रियता से निर्मल सिंह के विरुद्ध लड़ने जा रहे दो बाग़ियों के नाम वापस कराये गये उसी तरह स्वयं निर्मल सिंह की बेटी ने अपना नामांकन कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी परिमल परी के पक्ष में वापस क्यों नहीं लिया इस बात को लेकर रहस्य बना हुआ है। बहरहाल नामांकन वापस लेने के बाद अब 90 विधानसभा के लिये 5 अक्टूबर को होने वाले इस चुनाव में विभिन्न दलों के कुल 1031 प्रत्याशी अपना भाग्य आज़मा रहे हैं। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना हरियाणा चुनावी दौरा भी शुरू कर दिया है। गत दिनों मोदी जम्मू कश्मीर से एक चुनावी सभा सम्बोधित करने के बाद कुरुक्षेत्र की जन आशीर्वाद रैली में पहुंचे। यहाँ उनके भाषण में मुख्यतः कांग्रेस ही निशाने पर रही।
उन्होंने कांग्रेस पर परिवारवाद व भ्रष्टाचार का आरोप तो लगाया ही साथ ही यह भी बताया कि किस तरह कांग्रेस शासित राज्य वित्तीय संकट से बुरी तरह जूझ रहे हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में कथित आर्थिक संकट का ज़िक्र किया तथा उनकी जनता को मुफ़्त दी जाने वाली योजनाओं पर निशाना साधा तथा वित्तीय संकट के लिये इसी ''रेवड़ी कल्चर' को ज़िम्मेदार ठहराया। हिमाचल प्रदेश का नाम लेकर उन्होंने कई उदाहरण भी दिये। हालांकि प्रधानमंत्री के इस आरोप का जवाब देने के लिये कांग्रेस की ओर से अगले ही दिन पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने चंडीगढ़ में एक प्रेस वार्ता की। चिदंबरम ने कांग्रेस शासित राज्यों में आर्थिक संकट के आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया और कहा कि प्रधान मंत्री मोदी हमेशा सही नहीं बोलते। हर राज्य की स्थितियां अलग होती हैं। उल्टे चिदंबरम ने हरियाणा की भाजपा सरकार से ही बेरोज़गारी, क़र्ज़ और किसानों के मुद्दों पर आंकड़ों के साथ सवाल किये।
उधर तीसरी बार सत्ता में वापसी को आतुर दिखाई दे रही भाजपा के प्रत्याशियों को अनेक विधानसभा क्षेत्रों में जनता ख़ासकर किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के पूर्व हल्क़े नारायणगढ़ के भाजपा प्रत्याशी को भी किसानों ने कुछ गावों में घुसने नहीं दिया और नारेबाज़ी कर उन्हें वापस जाने के लिये मजबूर किया। इसी तरह अनिल विज को भी अपने क्षेत्र में ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा। उधर कांग्रेस पार्टी जो कुछ समय पहले तक राज्य में 'क्लीन स्वीप' करती दिखाई दे रही थी उसमें अब 'डैमेज कंट्रोल ' की ज़रुरत आ पड़ी है। इसका मुख्य कारण है पार्टी की भीतरी गुटबाज़ी व इसके कारण पैदा होने वाले विवाद। दरअसल पिछले दिनों हरियाणा में तेज़ी से एक वीडिओ वायरल हुआ जिसमें कथित रूप से कोई भूपेंद्र हुड्डा समर्थक बुज़ुर्ग, कुमारी शैलजा के बारे में जातिसूचक अपमानजनक टिप्पणी करता सुनाई दिया।
यह वीडिओ कांग्रेस विरोधियों द्वारा यही कहकर प्रसारित की गयी कि 'यह कांग्रेस का दलित विरोधी चेहरा है'। हालांकि इस आपत्तिजनक वीडिओ के वायरल होने के बाद स्वयं हुडा ने रोहतक में पत्रकारों से बात की और कहा कि -'शैलजा उनकी बहन हैं और पार्टी की एक सम्मानित नेता हैं। कोई भी कांग्रेस कार्यकर्ता ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकता है, और ऐसे लोगों के लिए पार्टी के अंदर कोई जगह नहीं है। जाति, धर्म के आधार पर लोगों को आपस में लड़वाना बीजेपी का काम है। हुडा ने ये भी कहा कि कांग्रेस पार्टी का कोई भी शख़्स ऐसी बात नहीं कह सकता है।' दरअसल कुमारी शैलजा राज्य की सबसे वरिष्ठ दलित महिला नेता तथा इस वर्ग की मुख्यमंत्री पद की इकलौती दावेदार हैं।
परन्तु कांग्रेस ने जिन 89 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं उनमें 72 प्रत्याशी अकेले भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थक बताये जा रहे हैं जबकि सिरसा से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रही पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के केवल 9 समर्थक प्रत्याशी ही टिकट हासिल करने में कामयाब हुये हैं। गोया टिकट वितरण से ही हुड्डा ख़ेमे का पल्ला भारी है। अब देखना यह होगा कि कई क्षेत्रों में बाग़ियों के चुनाव लड़ते तथा शैलजा ख़ेमे के साथ साथ उन पर की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर दलित समाज में उपजे रोष के बीच हुड्डा ख़ेमे पर लगभग आश्रित नज़र आती कांग्रेस अपने बल पर भाजपा से सत्ता छीन सकेगी या फिर हरियाणा को 2019 की ही तरह राज्य में चुनाव लड़ रहे इनेलो,जजप,बसपा आज़ाद समाज पार्टी या विजयी होकर आने वाले अन्य स्वतंत्र निर्वाचित सदस्यों की 'बैसाखी' की सरकार मिलेगी ?
निर्मल रानी
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