अक्षय लोकतंत्र का उत्सव है चुनाव

अक्षय लोकतंत्र का उत्सव है चुनाव

चुनाव लत्ता-लपेड़ी करने का नहीं बल्कि लोकतंत्र को अक्षय बनाने का उत्सव है, लेकिन दुर्भाग्य कि  हमारे नेता इस उत्सव को उत्सव की तरह न मनाकर एक-दूसरे का चीर-हरण करने में लगे हैं। राजनीतिक संवाद इतने निचले स्तर पर आ चुका है कि अब लज्जा आने लगी है। लज्जा आये भी  क्यों न ? आखिर हम विश्व गुरु हैं। बात चुनाव से पहले लोकतंत्र की करें।  हमारा लोकतंत्र अक्षय है ,ये मानने में पता नहीं क्यों लोगों को शर्म आती है।  पता नहीं क्यों लोग लोकतंत्र को लेकर आशंकित है।  एक-दूसरे कि सामने नए-नए हौआ खड़े कर रहे हैं।  कभी मुसलमानों का हौआ ,कभी मंगलसूत्र छीने जाने का हौआ, और तो और अब सैम अंकल कि भाषण का हौआ।  सवाल ये है कि  क्या सचमुच इन हौओं  से हमारा लोक और हमारा लोकतंत्र भयभीत होकर फैसला करने लगेगा।

सत्ता हासिल करने कि लिए सत्तारूढ़ दल लगातार हौओं कि सहारे चुनाव लड़ रही है ,जबकि उसे एक दशक तक सत्ता में रहने कि बाद अपनी उपलब्धियों कि आधार पर चुनाव लड़ना चाहिए था। प्रतिपक्ष ये हौवे खड़े करे तो समझ में आता है ,लेकिन यहां तो उलटी गंगा बह रही है। सत्तारूढ़ दल प्रतिदिन एक नया हौआ खोजकर लाता है। मजे की बात ये है कि  ये तमाम हौवे ऐसे हैं जो मतदान को प्रभावित करने कि बजाय उलटे पड़ रहे हैं। हंसी तो तब आयी जब माननीय प्रधानमंत्री जी ने राहुल गांधी से सवाल किया कि  वे आजकल अडानी-अम्बानी   के खिलाफ क्यों नहीं बोल रहे ? क्या उन्हें टेम्पो में भरकर पैसे दे दिए हैं इन लोगों ने ? माननीय भूल गए की जब राहुल गांधी संसद से लेकर सड़क तक अडानी से मिले 20  लाख करोड़ के बारे में सवाल करते थे तब उनकी तारीफ तो किसी ने नहीं की ,बल्कि सत्तारूढ़ दल ,दल के नेता गुड़ खाकर बैठे रहे थे।

मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि  अब शायद अडानी-अम्बानी ने भी सत्तारूढ़ दल से अपना हाथ खींच लिया है।  इन दोनों उद्योग घरानों को भी देश में संभावित परिवर्तन की आहट सुनाई देने लगी है। अन्यथा इन दोनों ने तो दस साल में खुद के साथ-साथ सत्तारूढ़ दल को भी मालामाल ही किया था। अडानी-अम्बानी केवल उद्योगपति ही नहीं बल्कि   मौसम वैज्ञानिक भी हैं।  उन्हें आभास हो  जाता है आने वाले दिनों का ।  वे जानते हैं कि  कब अच्छे दिन आएंगे और कब   बुरे दिन  आएंगे। तदनुसार ही वे अपने रुख तय करते हैं। लोकतंत्र के उत्सव के तीन चरण पूरे हो चुके हैं यानि आधी से ज्यादा लोकसभा सीटों के लिए जनता मतदान कर चुकी है। अब चौथा चरण 13  मई को है। ये ही सबसे कठिन चरण है। इसमें 96  सीटों के लिए चुनाव होना होना है।  इन 96  सीटों में से आधी तो उस तमिलनाडु और तेलंगाना में हैं जहां पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को तिल रखने के लिए भी जगह नहीं मिली थी।

चुनाव के चौथे चरण से पहले देश अक्षय तृतीया का पर्व मना चुकेगा। संयोग से इस वर्ष अक्षय तृतीया पर बहुत ही शुभ और दुर्लभ संयोग बना हुआ है। 100 वर्षो बाद अक्षय तृतीया पर गजकेसरी योग का संयोग है। इसके अलावा अक्षय तृतीया पर धन, शुक्रादित्य, रवि, शश और सुकर्मा योग का निर्माण हुआ है। अक्षय जिसका मतलब होता है कि जिसका कभी क्षय न हो। दुर्भाग्य से हम लोकतंत्र को अक्षय मानने के बजाय सोने-चांदी के आभूषण को अक्षय मानते हैं  और इस  तरह की चीजों की खरीदारी करते  हैं लेकिन लोकतंत्र पर ध्यान नहीं देते । अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।शायद ऐसा होता भी हो लेकिन ये तभी मुमकिन है जब कि  देश में लोकतांत्र अक्षय हो।   अक्षय तृतीया से ही त्रेता और सतयुग का आरंभ हुआ था।मुझे लगता है कि  इस साल भी देश में अक्षय लोकतंत्र की बहाली  हो सकती है।

भारत रूस 75 वर्ष की कूटनीतिक यात्रा और अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति Read More भारत रूस 75 वर्ष की कूटनीतिक यात्रा और अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति


लोकतंत्र को बचाने के अभी अवसर हाथ से गए नहीं है ।  अभी देश की जनता ने कुल 282 लोकसभा सीटों के लिए मतदान किया है।  अभी 13  मई से 1  जून तक उसे 260  और सीटों के लिए मतदान करना है। जनता के पास अवसर है कि वो अपनी भूल-चूक को सुधार सकती है। देश की जनता को तय करना है कि  वो परिवर्तन चाहती है या भाजपा को 400  पार कराना चाहती है। लोकतंत्र में सही नतीजे हासिल करने कि लिए आवश्यक है कि  मतदाता को न तो भ्रमित किया जाये और न उसे कोई हौआ दिखाकर डराया जाये।
 हंसी आती है जब चुनाव कि वक्त सरकार हिन्दू-मुसलमान की आबादी कि आंकड़े जनता कि समक्ष परोसती है। ये एक तरह का अपराध है। इससे लोकतंत्र मजबूत नहीं होता। पता नहीं भाजपा क्या चाहती है ? उसका इरादा हिन्दुओं और मुसलमानों कि बीच प्रजनन दर बढ़ाने की प्रतिस्पर्द्धा करने का तो नहीं है ! मुश्किल ये है कि  इस तरह की मूर्खताओं को लेकर न हमारी अदालतें बोलतीं हैं और न सामाजिक संगठन। आरएसएस  तो इस मुद्दे पर सरकार कि सुर में सुर मिलता दिखाई देता है। जनता ही इन मूर्खताओं कि लिए राजनीतिक दलों को सजा दे सकती है मतदान कि जरिये। हालाँकि मशीनें अभी भी सरकार कि अधीन और स्वामिभक्त बनीं हुईं हैं।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पर सबसे बड़ा संकट Read More स्वतंत्र भारत के इतिहास में चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पर सबसे बड़ा संकट

राकेश अचल

देश के कर्मचारियों को मानसिक तनाव से मुक्त करेगा ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल’ Read More देश के कर्मचारियों को मानसिक तनाव से मुक्त करेगा ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल’

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

नेतन्याहू से मुलाकात के बाद जयशंकर का कड़ा संदेश, आतंकवाद पर भारत–इज़राइल एकजुट नेतन्याहू से मुलाकात के बाद जयशंकर का कड़ा संदेश, आतंकवाद पर भारत–इज़राइल एकजुट
International Desk  यरूशलम। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इज़राइल की आधिकारिक यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू...

Online Channel