यह भारतीय हिंदी प्राध्यापक परिषद क्या बला है?

यह भारतीय हिंदी प्राध्यापक परिषद क्या बला है?

बहरहाल, मुद्दा यह है इस कथित “भारतीय हिंदी प्राध्यापक परिषद” के कार्यकलापों को सभी हिंदी प्राध्यापकों का नजरिया न माना जाए। 

 


प्रमोद रंजन

अभी हाल ही में एक व्हाट्स एप ग्रुप  “भारतीय हिंदी प्राध्यापक परिषद” नाम से बना है, जो हिंदी पढ़ाने वाले के बीच चर्चा में है। चर्चा का कारण यह नहीं है कि यह समूह देश में अकादमिक स्वतंत्रता का जिस प्रकार दमन हो रहा है, जिस प्रकार पाठ्यक्रमों को अवैज्ञानिक बनाया जा रहा है, या जिस प्रकार से सभी जगह भय का वातवरण है, उसके विरोध के लिए बना है, जैसा कि इस दौर में होना चाहिए था। 

इसकी चर्चा का एकमात्र कारण यह है कि इस व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्यों की संख्या 1000 से ज्यादा है। हिंदी के़ 1000 से अधिक प्राध्यापकों के एक प्लेटफार्म पर होने के अपने मायने हैं। यह जुगाड़तंत्र के लिए खासा उपयोगी डेटाबेस है।

मोदी मॉडल का नया अध्याय: संकट में अवसर, पान मसाले से सुरक्षा Read More मोदी मॉडल का नया अध्याय: संकट में अवसर, पान मसाले से सुरक्षा

ग्रुप के बनते ही एक  सदस्य ने पाठ्यक्रमों में बदलाव के संबंध में एक पोस्ट डाली तो ग्रुप के कर्ताधर्ताओं ने उसे राजनीति से प्रेरित बता कर मिटा दिया। इसी तरह जनवादी लेखक संघ के एक बयान को, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विरोध में था, जब एक सदस्य ने ग्रुप में पोस्ट किया तो उसे ग्रुप के मालिकों ने “एजेंडा” बताया और न सिर्फ उस पोस्ट को डिलीट किया बल्कि इस तरह की पोस्ट करने वालों की कई दिन तक वे लानत-मानत करते रहे।

सरकारी खजाने पर बोझ सांसद विधायकों के वेतन में भारी वृद्धि Read More सरकारी खजाने पर बोझ सांसद विधायकों के वेतन में भारी वृद्धि

ग्रुप में राम और कृष्ण को पाठ्यक्रमों में बड़े पैमाने पर शामिल करने से लेकर जितने भी अवैज्ञानिक सुझाव हो सकते हैं, उन्हें पोस्ट किया जाता है, और उन्हें इस ग्रुप में ‘एजेंडारहित’ माना जाता है!

भारत रूस 75 वर्ष की कूटनीतिक यात्रा और अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति Read More भारत रूस 75 वर्ष की कूटनीतिक यात्रा और अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति

ग्रुप के कर्ताधर्ताओं ने इस बीच एक वेबिनार भी आयोजित किया, जिसमें उन्होंने कहा कि वे किसी “राजनीतिक” एजेंडा को बर्दाश्त नहीं कर सकते क्योंकि वे “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” को आगे बढ़ाने वाले लोग हैं। यहां ‘कर्ताधर्ता’ से आशय ग्रुप एडमिन से नहीं है, बल्कि उनसे है जो वास्तव में इस ग्रुप को चला रहे हैं।

स्पष्ट है कि ये कर्ताधर्ता हमारे देश के उस फासिस्ट संगठन से जुड़े हैं, जो स्वयं को एक सांस्कृतिक संगठन कहता है।  वस्तुत: यह ग्रुप “विद्यार्थी परिषद्” का प्राध्यापक संस्करण लगता है।

लेकिन आश्चर्य यह है कि अंतत: ये “हिंदी साहित्य” के प्राध्यापक हैं, लेकिन इतना सोचने की भी जहमत नहीं उठाते कि जनवादी लेखन संघ, प्रगतिशील लेखक संघ के बिना हिंदी साहित्य का इतिहास क्या और कैसा होगा? क्या इन संगठनों के बिना हम हिंदी साहित्य पर बात कर सकते हैं?  आधुनिक काल के हिंदी के अधिकांश महत्वपूर्ण लेखक किसी न किसी रूप में इन संगठनों से जुड़े रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि ग्रुप में शामिल सभी लोग इन कर्ताधर्ताओं के विचारों से सहमत हैं, लेकिन वे प्राय: चुप रहने में भलाई समझते हैं। कोढ़ में खाज यह कि  कुछ कथित प्रगतिशील लोग इस ग्रुप के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं, जिससे और भ्रम की स्थिति बनती है।

मजेदार बात यह भी है इस ग्रुप में सिर्फ वे ही जुड़ सकते हैं, जो भारत के किसी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में हिंदी-प्राध्यापक के रूप में सेवारत हैं। अगर कोई सेवानिवृत्त हिंदी प्राध्यापक इस ग्रुप से जुड़ जाता है तो उसे हटा दिया जाता है। जबकि स्वभाविक तौर पर अगर यह ग्रुप अगर हिंदी प्राध्यापकों के आपसी संवाद और कथित तौर पर अच्छे शोध को बढ़ावा देने के लिए बना है तो पुराने शिक्षक अधिक उपयोगी हो सकते थे। लेकिन सेवानिवृत्त प्राध्यापक खतरनाक हो सकते हैं। वे कभी भी विरोध कर सकते हैं। जो अभी नौकरी में हैं, वे वे भय अथवा संभावित लाभ के कारण चुप ही रहेंगे।

दरअसल, समस्या यह नहीं है कि यह ग्रुप क्यों एक राजनीतिक विचारधारा को समर्थन कर रहा है। अगर वे ऐसा करना चाहते हैं तो खुल कर करें। लेकिन इसके लिए न उनके पास वैचारिक कुव्वत है, न ही हिंदी के प्रमुख बुद्धिजीवी अभी इतना रीढ़विहीन हुए हैं कि वे इन विचारहीन, अवसरवादी सांप्रदायिक लोगों के साथ खड़े हों जाएं। हिंदी की परंपरा प्रतिरोध की परंपरा रही है। इसलिए भारतीय हिंदी प्राध्यापक परिषद के कर्ताधर्ता ‘सबका साथ’ वाले नारे को अपना रहे हैं। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि, जैसा कि महाभारत में एक जगह उल्लेख आता है, जो सबका होता है, वह किसी का नहीं होता।  उनका भी नहीं, जिनकी वे बात करते हैं।

गत 3 जून, 2023 को इस ग्रुप ने मूर्धन्य कवि अशोक वाजपेयी को बेबिनार में कविता पढ़ने के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन बाद में बताया गया कि वाजपेयी किसी कारणवश आयोजन में शामिल नहींं हुए और वे किसी अन्य तारीख को अपनी कविताएं उन्हें सुनाएंगे। श्री वाजपेयी इस समय हिंदी लेखकों में से  मौजूदा सत्ता के तानाशाही रवैये और सांप्रदायिक आरचण के विरुद्ध सबसे मुखर आवाज हैं।

 क्या श्री वाजपेयी को बताया गया है कि इस ग्रुप को उसी सांप्रदायिक राजनीतिक संगठन के समर्थन के लिए बनाया गया है?  इसी तरह वे अन्य अनेक लोगों को भ्रम में डाल रहे हैं।

बहरहाल, मुद्दा यह है इस कथित “भारतीय हिंदी प्राध्यापक परिषद” के कार्यकलापों को सभी हिंदी प्राध्यापकों का नजरिया न माना जाए। 

यह सही है कि लोग डरे हुए हैं। खासकर नौकरीपेशा मध्यम वर्ग प्रतिरोध  नहीं कर रहा। लेकिन, प्रतिरोध की अधिक जिम्मेवारी उन प्राध्यापकों पर है, जो स्वयं को बुद्धिजीवी कहते हैं और जिन्हें लिखने और बोलने के लिए किंचित अधिक नैतिक और कानूनी सुविधा प्राप्त है।

सच यह है कि इनमें से अधिकांश भय से अधिक लोभ के कारण चुप हैं और चुपचाप निजाम बदलने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन उनकी यह चुप्पी उस भय से कई गुणा अधिक खौफनाक साबित हो सकती है, जिसे वे अभी झेल रहे हैं। एक दिन ऐसा आएगा, जब प्रलोभन की सारी कवायदें बंद कर दी जाएंगी और सभी ओर भय ही भय का साया होगा। इस ग्रुप के कर्ताधर्ताओं की तरह हर क्षेत्र में कुछ लोग मौजूदा निजाम द्वारा फैलाए गए भय का लाभ उठाना चाहते हैं, लेकिन उनके पास वास्तव में कुछ भयावह मुखौटों के अलावा कोई हथियार नहीं है। उनके मुखौटों को उतार कर देखिए, वे स्वयं बहुत दहशतजदा हैं। निजाम बदलते ही वे नए मुखौटों के साथ उतरेंगे। उन्हें पहचानें, उनके चेहरे की असली रंग देखें और अपने तात्कालिक लोभों को स्थगित कर उन्हें सरेआम बेपर्दा करने से बाज न आएं। 

(प्रमेाद रंजन पत्रकार और शिक्षाविद् हैं)

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

नेतन्याहू से मुलाकात के बाद जयशंकर का कड़ा संदेश, आतंकवाद पर भारत–इज़राइल एकजुट नेतन्याहू से मुलाकात के बाद जयशंकर का कड़ा संदेश, आतंकवाद पर भारत–इज़राइल एकजुट
International Desk  यरूशलम। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इज़राइल की आधिकारिक यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू...

Online Channel