बाराबंकी में सप्तऋषियों का आश्रम, जहां श्रीराम ने भाइयों संग ली थी शिक्षा

बाराबंकी में सप्तऋषियों का आश्रम, जहां श्रीराम ने भाइयों संग ली थी शिक्षा

स्वतंत्र प्रभात 
 
बाराबंकी- सप्त ऋषि आश्रम में भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ रहकर सप्तर्षियों से शिक्षा ग्रहण की थी. कहा जाता है कि आश्रम के पास स्थित नदी में भगवान राम अपने भाइयों के साथ स्नान करते थे.
 
बाराबंकी की नगर पंचायत सतरिख में सप्तऋषियों का आश्रम स्थित है.सप्तऋषियों के आश्रम में प्राचीन राम, लक्ष्मण और माता सीता की मूर्तियों स्थापित हैं. मान्यता है कि यहां पर भगवान श्रीराम ने भाइयों के साथ सप्तऋषि से शिक्षा ग्रहण की थी. बाराबंकी में सतरिख-चिनहट मार्ग स्थित सप्तऋषि आश्रम पर मौजूद राम, लक्ष्मण और सीता की प्राचीन मूर्तियों का रोजाना तिलकोत्सव और पूजा अर्चना की जाती है. यह वही आश्रम है, जहां पर रह कर भगवान श्रीराम ने बचपन में अपने भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ सप्तऋषि से शिक्षा ग्रहण की थी. सतरिख प्राचीन धरोहर है. यहां से भगवान श्रीराम का पुराना नाता है.
 
कहा जाता है भगवान राम के जन्म से पहले यह सप्त ऋषि आश्रम गुरुकुल था. ऋषि मुनि यहां निवास करते थे. बताया जाता है कि भगवान राम यहां पर शिक्षा प्राप्त की थी. जो राक्षस थे, वो ऋषि मुनि को यज्ञ अनुष्ठान नहीं करने देते थे जिससे ऋषि मुनि बहुत परेशान रहते थे. राक्षसों से छुटकारा पाने के लिए विश्वामित्र ऋषि अयोध्या गए, वहां देखा राम 13 वर्ष की आयु के थे. राजा दशरथ से चारों भाइयों को मांग कर सप्त ऋषि आश्रम लेकर आए और यही पर धनुष विद्या सिखाई.
 
धनुष विद्या सीखने के बाद प्रभु राम ने राक्षसों को यहां से मार भगाया. आज भी इस आश्रम में ऐसी कई चीजें हैं जो प्रमाण देती हैं कि भगवान राम ने धनुष विद्या सीख रहे थे तो एक तीर जाकर करीब डेढ़ किलोमीटर दूरी पर गढ़ गया था. जो आज भी मौजूद है. वह तीर अब तो पत्थर का है. जिसकी लोग आज भी पूजा अर्चना करते हैं और पास में नदी बहती है जिसमे भगवान राम स्नान करते थे.
 
पुजारी ने बताया सप्तऋषि मुनि खत्म हो गए तब यहां मुगलों का शासन हो गया. लखनऊ के एक नवाब थे. उनके हाथी यहां से गुजर रहे थे. इस आश्रम में बहुत से पेड़ पौधे लगे हुए थे. उनको और तोड़ते जा रहे थे. तब यहां बाबा लाल दास जी महाराज जी रहते थे. उन्होंने नवाब के नौकरों से कहा कि अपने हाथियों को पीछे जंगल में ले जाओ. वहां बहुत से पेड़ पौधे हैं उनको खाएं या तोड़े और आराम से उसमें रहे पर नौकरों ने उनकी बात नहीं मानी.
 
उनके नौकरों ने अपने हाथों से इशारा किया कि बाबा जी को उठा कर फेंक दो जैसे हाथी उनकी और बढ़ा तभी बाबा लाल दास जी महाराज को गुस्सा आ गया. उन्होंने एक ही हाथ में हाथी के मुंह पर मारा उसके सारे दांत टूट के गिर गए और हाथी भी मर गया. वह दांत आज भी सप्त ऋषि आश्रम मैं मौजूद है.
 
वैसे तो सप्त ऋषि आश्रम पूरी तरह से जर्जर की हालत में हो गया है आज जो सतरिख कस्बा है वह सप्त ऋषि के नाम से जाना जाता था. मुगलों के शासन में सप्तऋषि नाम हटा के सतरिख कर दिया गया.
 
 
 
 
 
 
 

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel