ज़िला प्रशासन की अनदेखी से आर आई सहायक अभियंता प्रदूषण विभाग का खेला
उन्नाव । चमड़ा उद्योग को गंगा में प्रदूषित करने वाले सबसे बड़े कारणों में एक माना जाता है. इसी वजह से कानपुर के चमड़ा उद्योग को प्रदूषणनियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और गंगा की सफाई से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं के तरह-तरह के प्रतिबंधों तथा नियम-कानूनोंको झेलना पड़ता रहा है.
उन्नाव । चमड़ा उद्योग को गंगा में प्रदूषित करने वाले सबसे बड़े कारणों में एक माना जाता है. इसी वजह से कानपुर के चमड़ा उद्योग को प्रदूषणनियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और गंगा की सफाई से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं के तरह-तरह के प्रतिबंधों तथा नियम-कानूनोंको झेलना पड़ता रहा है. इस कारण कानपुर की चमड़ा इकाइयों यानी टेनरियों के कारोबार में बार-बार बाधाएं भी आती रही हैं. इसी वजह सेकई वर्षों के दबाव के कारण कानपुर के जाजमऊ की सभी छोटी-बड़ी चमड़ा इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण प्लांट लगाने पड़े. इसके अलावा भीउन्हें कई अन्य उपाय करके सरकारी महकमों को संतुष्ट करना पड़ा। गंगा में गिर रहे नालों पर आज तक रोक नहीं लग सकी है।
मिश्रा कॉलोनी से लेकर जाजमऊ स्थित चंदन घाट तक दो दर्जन से अधिक छोटे बड़े नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं। जिससे घाट किनारे का पानीन ही डुबकी लगाने लायक बचा है और न ही आचमन के। गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए हर साल लाखों की संख्या में लोग घाट परपहुंचते हैं। सभी को गंगा में सीधे गिर रहे नालों पर रोक लगने का इंतजार है। गंगा को स्वच्छ रखने के लिए केन्द्र सरकार ने नमामि गंगेपरियोजना शुरू कर रखी है। इसके तहत करोड़ों रुपया पानी में बहा दिया गया, लेकिन गंगा साफ नहीं हो सकी। जबकि कई बार एनजीटी नेपालिका को गंगा में गिर रहे नाले बंद किये जाने को लेकर नोटिस भी दे चुकी है। इसके बावजूद पालिका क्षेत्र के सारे नाले धड़ल्ले से गंगा मेंगिर रहे हैं। घाट किनारे बस्ती का पानी भी गंगा तक पहुंचता है। इसमें सीवरेज का पानी भी शामिल होता है। ऐसे में पतित पावनी के जल कोश्रद्धालु कैसे आंचमन करेंगे। यह श्रद्धालुओं के भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है।
गंगा में गिर रहे गंदे नाले वर्तमान समय में गंगा का जलस्तर भी कम है। जिससे पानी में गंदगी साफ दिखाई देती है। जब भी कोई बड़ा गंगा स्नानपर्व होता तो पालिका गंगा में गिर रहे नालों की टेपिंग कराकर प्रदूषित पानी को जाने से रोकने की कवायद करती है। एनजीटी भी कोई ठोसकदम नहीं उठाती। जिससे धरातल पर गंगा साफ कैसे हों। नेहरू नगर के रहने वाले राजेश वाजपायी बताते हैं कि सरकार सिर्फ कागजों पर हीगंगा सफाई अभियान चला रही है हकीकत में गंगा घाट में नाले गिर रहे हैं, इशांत तिवारी कहते हैं कि गंगा घाट में एसटीपी प्लांट बनाने का कामपिछले कई सालों से चल रहा है बनकर तैयार हो जाता तो शायद यह नाले गंगा में न गिरते।उन्नाव: एक ओर सरकार जहां 'नमामि गंगे' परियोजना के नाम पर हर साल करोड़ों रूपये खर्च करती है, वहीं दूसरी ओर जिले की औद्योगिक चमडा फैक्ट्री के गंदे पानी के कारण गंगा नदीप्रदूषित हो रही है. आलम यह है कि इस गंदे पानी की एक अलग धारा गंगा नदी में बहती दिखती है. जानवर इस गंदे पानी को पीकर असमयमृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि इस गंदे पानी के कारण नदी में नहाने से कई तरह की त्वचा की बीमारियां भी हो जाती हैं. वहीं अधिकारियों का कहना हैकि सबकुछ ठीक है. बस इस समय पानी मटमैला है.उन्नाव की गंगा की जांच करवाई गई है, और सैम्पल लिया गया है. गंगा नदी में ऑक्सीजनकी मात्रा ठीक पाई गई है. बड़ा सवाल है कि इस तरह कागजों पर कब तक मां गंगा को स्वच्छ और निर्मल बताया जाएगा,बावजूद इसके जिलेके जिम्मेदार अधिकारियों को गंगा में गिरता प्रदूषित पानी नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि मौके पर हकीकत कुछ और है. गंगा में गिरते जहरीलेऔर गंदे पानी के नाले गंगा में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह हैं. जनपद की सभी औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला जहरीला पानी इसी गंगा मेंखुलेआम बहाया जाता है.यह पर्यावरण में प्रदूषण फैला रहे हैं। कई बार शिकायत के बाद भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी कार्रवाई नहींकर रहे हैं। अगर, कार्रवाई होती भी है तो वह नोटिस तक सीमित रह जाती है।
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