बारात में ‘ढोल-तासा’ बजाता नाबालिग, जिम्मेदार बेखबर।
संतोष तिवारी (रिपोर्टर )
भदोही।
सरकार भले ही बालश्रम निषेध की बात करती है लेकिजन स्थानीय स्तर पर जिले के जिम्मेदारो के लापरवाही की वजह से खुलेआम नाबालिग बच्चे बालश्रम के आगोश में देखे जा सकते है लेकिन जिम्मेदार मौन साधे हुए है। मानो ऐसा लगता है कि जैसे उनको इस तरह के मामलों की जानकारी ही न हो।
बालश्रम का खुला खेल विभिन्न ईट के भट्ठो, ढाबों समेत कई जगह देखा जाता है। इसके अलावा कूड़ा बीनने में भी काफी बच्चे देखे जा सकते है। अब इस तरह के मामलों को मजबूरी कही जाये या मजदूरी? बालश्रम के खिलाफ सरकार कानून भी बनाई है लेकिन डालर नगरी भदोही में कानून केवल खेल हो गया है।
जिले में विभिन्न जगहों पर गरीब बच्चे अपनी गरीबी की वजह से बालश्रम करने पर विवश है। चाहे वह कूड़ा बीनना हो, ईट भट्ठे पर कार्य करना हो या और भी जगह है। जिले के जिम्मेदार आते जाते अक्सर इस तरह के मामले देखते भी है लेकिन नजरअंदाज करके निकल जाते है और किसी शिकायत का इंतजार करते है।
जब शिकायत भी होगी तो मामले को रफा-दफा करके अपनी रिपोर्ट भेज देते है। और सरकार की बालश्रम निषेध का कानून रखा ही रह जाता है।
बालश्रम का नजारा आजकल बारात में भी खूब देखा जाता है जहां ढोल-तासा वाले अपने समूह में नाबालिग से भी ढोल बजवाते है।
और उस शादी समारोह में कई जिम्मेदार शामिल भी होते है लेकिन किसी की भी नजर उस बालक पर नही पडती जो अपने पढने और खेलने के समय में ढोल-तासा बजाकर बारात की रौनक बढा रहा है। हालांकि इस तरह के मामले में प्रशासन को ऐसे लोगो पर कार्यवाही करनी चाहिए जो ढोल-तासा बजाने के लिए नाबालिग बच्चे को शामिल करता है।
शुक्रवार को कोईरौना के खेदौपुर गांव में एक शादी समारोह में दुर्गागंज के पास से आये एक ढोल-तासा पार्टी में एक अफजल नामक नाबालिक भी शामिल था। जो सातवीं कक्षा का छात्र है और पढने-खेलने के उम्र भी ढोल-तासा बजाकर बारात की रौनक बढा रहा है।
लेकिन ढोल-तासा पार्टी का मालिक उस नाबालिग पर तरस नही खाता और खुलेआम बारातों बालश्रम कराकर पैसा कमाता है। और जिले के जिम्मेदार भी है कि इस तरह के मामलों पर कार्यवाही भी नही करते है। यह मामला तो एक उदाहरण मात्र है जिले में न जाने ऐसे कितने मामले देखे जाते है जो बालश्रम निषेध की खुलेआम धज्जियां उडाते है।