तेलगुडवा-कोन रोड का 7 साल का अधूरा सफर और 6 महीने का जन-संघर्ष – आखिर क्यों

अपना दल (एस) के कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल सहित अन्य जन प्रतिनिधियों ने निर्णायक भूमिका निभाई , जिसका उन्होंने आभार ब्यक्त किया है।

तेलगुडवा-कोन रोड का 7 साल का अधूरा सफर और 6 महीने का जन-संघर्ष – आखिर क्यों

तेलगुडवा-कोन रोड का श्रेय लेने में लगी नेताओं की होड़

अजित सिंह/राजेश तिवारी ( ब्यूरो  रिपोर्ट) 

सोनभद्र(ओबरा)उत्तर प्रदेश-

सोनभद्र के तेलगुडवा-कोन मार्ग के निर्माण को लेकर एक बड़ा सवाल जनता के सामने खड़ा है। 2017 से 2023 तक जब जनप्रतिनिधियों के पास सत्ता, ताकत और अधिकार तीनों थे, तब यह महत्वपूर्ण सड़क आखिर क्यों अधूरी रह गई। 7 साल तक इस रोड पर चुप्पी क्यों साधी गई। जब खनिज निधि में अरबों रुपये पड़े थे, तो क्या वजह थी कि तेलगुडवा-कोन रोड का टेंडर नहीं हुआ।

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अब जब जनता ने स्वयं आवाज उठाई, संघर्ष किया और हस्ताक्षर अभियान चलाया, तो कुछ राजनीतिक दलों के लोग एक दिन के लिए सड़क पर उतर गए हैं और अब श्रेय लेने की होड़ में लग गए हैं। जिसके क्रम में आनंद पटेल दयालु, प्रदेश उपाध्यक्ष-अपना दल (एस) युवा मंच और राष्ट्रीय अध्यक्ष-राष्ट्रीय नवनिर्माण सेना, ने ऐसे लोगों से सवाल किया है।क्यों नहीं वे ऐसी सड़कों पर प्रदर्शन करते जहां आज भी टेंडर नहीं निकला है।

जहां आज भी जनता धूल, गड्ढे और हादसों में जी रही है और उन्होंने स्पष्ट किया है कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि सड़क PWD बनाए। उनकी केवल यह मांग थी कि जिला खनिज निधि से यह रोड बने। इसी मांग को लेकर आनंद पटेल दयालु के नेतृत्व में एक व्यापक अभियान चलाया गया, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख कदम शामिल थे। बड़े पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। विभिन्न अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे गए। सैकड़ों लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक किया गया।

कोन से लेकर मिर्जापुर तक के एक-एक अधिकारी से व्यक्तिगत रूप से वार्ता की गई।लगातार 6 महीने तक जन-आंदोलन चलाया गया। अधिकारियों से 200 से अधिक बार फोन पर बात की गई और 50 से अधिक बार व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की गई। सोनभद्र के डीएम, मंडलायुक्त, जिला खनिज अधिकारी से लेकर मंत्री तक को पत्राचार किया गया। आनंद पटेल दयालु ने सबसे प्रमुख जिम्मेदारी के साथ यह कहना गलत नहीं होगा कि कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल ने इस पूरे अभियान में निर्णायक भूमिका निभाई।

उनका जितना भी आभार प्रकट किया जाए, वह कम है साथ ही टेंडर पास होने से पहले, जिन लोगों ने आवाज़ उठाई, चाहे वह विधायक रॉबर्ट्सगंज भूपेश चौबे हों, या वे आंदोलनकारी साथी जो लगातार प्रयास करते रहे, उन सभी का उन्होंने हृदय से धन्यवाद किया। उन्होंने उन लोगों को भी धन्यवाद दिया जिन्होंने उनका विरोध किया, क्योंकि उनके अनुसार विरोध से उनका संकल्प और मजबूत हुआ।

आनंद पटेल दयालु ने कहा, मैं कहता था 6 महीने में काम करवा दूंगा और करवा दिया। उन्होंने जोर देकर कहा न मैं विधायक हूं, न सांसद हूं, न प्रधान हूं, मैं सिर्फ कोन माटी का एक बेटा हूं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह काम वोट के लिए नहीं, बल्कि जनता की तकलीफ को अपना समझ कर किया गया है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का जमाना है और जनता सब देख रही है, समझ रही है। 7 साल की चुप्पी और 6 महीने के संघर्ष में फर्क साफ है।

आनंद पटेल दयालु ने अंत में एक महत्वपूर्ण बात कही,जब कोई किसी के संघर्ष को नकारता है, उसे छोटा समझता है, तो समय वह सब याद रखता है। जो लोग दूसरों के पसीने की क़द्र नहीं करते, अक्सर उनकी पीढ़ियों के आंसुओं को भी समाज नजरअंदाज कर देता है। संघर्ष को कम मत आंकिए यही वो बीज होता है जो परिवर्तन का वटवृक्ष बनता है। अगर किसी के रास्ते पर नहीं चल सकते, तो कम से कम उसके संघर्ष के निशान मिटाने की कोशिश मत करिए।

उन्होंने दोहराया कि यह श्रेय उनका नहीं है, बल्कि उस माटी का, उस संघर्ष का और उस जनभावना का है जिसने उन्हें मजबूती दी और आनन्द पटेल दयालु प्रदेश उपाध्यक्ष अपना दल (एस) युवा मंचराष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय नवनिर्माण सेना ट्रस्ट कायह लेख तेलगुडवा-कोन रोड के निर्माण में हुई देरी और उसके बाद के जन-संघर्ष पर प्रकाश डालता है, साथ ही उन सवालों को भी उठाता है जो जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की भूमिका पर केंद्रित हैं। क्या यह संघर्ष अन्य अधूरी परियोजनाओं के लिए एक मिसाल कायम करेगा?

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