वर्क फ्रॉम होम कल्चर: सुविधा की दुनिया या अकेलेपन की कैद?

[ऑनलाइन ऑफिस: जहां खिड़कियां खुलती नहीं, बल्कि स्क्रीनों में बंद होती हैं]

वर्क फ्रॉम होम कल्चर: सुविधा की दुनिया या अकेलेपन की कैद?

वैश्विक महामारी ने जब पूरी दुनिया को एक अनजान ठहराव में धकेल दियातब किसी ने नहीं सोचा था कि घर की चारदीवारीजो हमेशा से विश्राम और निजता का प्रतीक रहीएक दिन कार्यस्थल में तब्दील हो जाएगी। वर्क फ्रॉम होम कल्चरजो पहले एक वैकल्पिक व्यवस्था थीअब हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। इसने कार्य की परिभाषा को फिर से गढ़ासमय और स्थान की सीमाओं को तोड़ाऔर हमें एक ऐसी दुनिया में ले आयाजहां सुबह की कॉफी और ऑफिस डेस्क एक ही मेज पर सिमट गए। लेकिन यह बदलावजो बाहर से लचीलापन और सुविधा का प्रतीक दिखता हैक्या वाकई इतना सरल हैया यह हमें एक ऐसी राह पर ले जा रहा हैजहां सामाजिक रिश्तों की गर्माहट धीरे-धीरे डिजिटल स्क्रीनों की ठंडक में खो रही है?

वर्क फ्रॉम होम ने निस्संदेह कई द्वार खोले हैं। सुबह की भागदौड़ट्रैफिक की जाम में खोया हुआ समयऔर ऑफिस के औपचारिक माहौल से मुक्ति ने कर्मचारियों को एक नई आजादी दी। अब आप अपने पसंदीदा पजामे में मीटिंग अटेंड कर सकते हैंअपने बच्चों के साथ दोपहर का खाना खा सकते हैंऔर अपनी दिनचर्या को अपने हिसाब से ढाल सकते हैं। छोटे बच्चों के माता-पिता के लिए यह व्यवस्था किसी वरदान से कम नहीं। बड़े शहरों मेंजहां किराए और यातायात का खर्च जेब पर भारी पड़ता थावहां इसने आर्थिक राहत भी दी। कंपनियों के लिए भी यह फायदेमंद रहा। ऑफिस स्पेसबिजलीऔर अन्य सुविधाओं पर होने वाला खर्च कम हुआजिससे कई संगठनों ने इस मॉडल को स्थायी रूप से अपनाने की दिशा में कदम बढ़ाए। तकनीक ने इसे और आसान बनाया — हाई-स्पीड इंटरनेटवीडियो कॉन्फ्रेंसिंगऔर क्लाउड-बेस्ड टूल्स ने कार्य को निर्बाध बना दिया। लेकिन क्या यह सुविधा वाकई उतनी मुक्तिदायक हैजितनी दिखती है?

हर चमकती चीज सोना नहीं होतीऔर वर्क फ्रॉम होम का सिक्का भी इसका अपवाद नहीं। इस व्यवस्था ने जहां समय और संसाधनों की बचत कीवहीं यह कर्मचारियों को एक अनजाने एकाकीपन की ओर भी धकेल रहा है। ऑफिस की वह अनौपचारिक बातचीतकॉफी मशीन के पास होने वाली हंसी-मजाकऔर सहकर्मियों के साथ विचार-विमर्श की गर्मजोशी अब स्क्रीन की औपचारिकता में सिमट गई है। 'ज़ूम थकानअब एक वास्तविकता है। घंटों स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखनालगातार वर्चुअल मीटिंग्स में शामिल होनाऔर संवाद का केवल कार्य-केंद्रित रह जाना — यह सब मानसिक थकान को जन्म दे रहा है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों ने दिखाया है कि लंबे समय तक सामाजिक संवाद की कमी न केवल चिड़चिड़ापन और तनाव को बढ़ाती हैबल्कि अवसाद और अकेलेपन की भावना को भी गहरा करती है। एक सर्वे के अनुसार, 2024 में 65% से अधिक कर्मचारियों ने वर्क फ्रॉम होम के दौरान अकेलापन महसूस करने की बात स्वीकारी। यह आंकड़ा अपने आप में इस नई कार्य-संस्कृति के छिपे खतरों को उजागर करता है।

इसके अलावावर्क फ्रॉम होम ने कार्य और निजी जीवन की सीमाओं को धुंधला कर दिया है। पहले जहां ऑफिस से घर लौटना एक मानसिक बदलाव का प्रतीक थाअब काम और घर एक ही स्थान पर सिमट गए हैं। बॉस का देर रात मैसेज करनावीकेंड पर तत्काल काम की मांगऔर 'ऑलवेज ऑनकी संस्कृति ने कर्मचारियों पर अनावश्यक दबाव डाला है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण हैजिनके पास घर में एकांत कार्यस्थल या विश्वसनीय इंटरनेट नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों मेंजहां इंटरनेट की पहुंच सीमित हैया उन परिवारों मेंजहां एक ही कमरे में कई लोग रहते हैंवहां वर्क फ्रॉम होम एक बोझ बन जाता है। महिलाओं के लिए यह दोहरी मार है। घरेलू जिम्मेदारियों और नौकरी के दबाव के बीच संतुलन बनाना उनके लिए एक कठिन चुनौती बन गया है। एक अध्ययन के अनुसारभारत में 70% से अधिक कामकाजी महिलाओं ने बताया कि वर्क फ्रॉम होम ने उनकी घरेलू जिम्मेदारियों को और बढ़ा दिया हैजिससे उनकी उत्पादकता और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा।

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वर्क फ्रॉम होम ने कार्यस्थल की समानता को भी प्रभावित किया है। हर कर्मचारी के पास समान संसाधन या परिस्थितियां नहीं होतीं। एक व्यक्ति के लिए घर से काम करना शांत और उत्पादक हो सकता हैवहीं दूसरे के लिए यह बच्चों की आवाजघरेलू कामया खराब इंटरनेट के बीच जूझना हो सकता है। यह असमानता न केवल व्यक्तिगत प्रदर्शन को प्रभावित करती हैबल्कि करियर की प्रगति में भी बाधा बनती है। उदाहरण के लिएजो कर्मचारी ऑफिस में उपस्थित रहकर नेटवर्किंग और नेतृत्व के अवसर प्राप्त करते थेवे अब हाइब्रिड मॉडल में बेहतर स्थिति में हैंजबकि पूर्णकालिक घर से काम करने वाले कर्मचारी अक्सर 'आउट ऑफ साइटआउट ऑफ माइंडकी स्थिति का शिकार हो रहे हैं।

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इस बदलाव ने प्रबंधन की भूमिका को भी फिर से परिभाषित किया है। अब एक अच्छा लीडर वही हैजो न केवल टारगेट और डेडलाइन सेट करेबल्कि कर्मचारियों की मानसिक स्थिति को समझेउनकी जरूरतों के प्रति संवेदनशील होऔर एक ऐसी संस्कृति बनाएजहां संवाद और सहयोग बरकरार रहे। कई कंपनियां अब हाइब्रिड मॉडल की ओर बढ़ रही हैंजो घर और ऑफिस के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है। यह मॉडल न केवल कर्मचारियों को सामाजिक जुड़ाव का अवसर देता हैबल्कि लचीलापन भी बनाए रखता है। लेकिन इसके लिए संगठनों को कर्मचारियों की जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी। उदाहरण के लिएमानसिक स्वास्थ्य संसाधनोंजैसे काउंसलिंग या वेलनेस प्रोग्राम्सको बढ़ावा देनाऔर कार्य के घंटों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना जरूरी है।

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वर्क फ्रॉम होम एक तलवार की धार की तरह है — एक ओर यह स्वतंत्रता और सुविधा देता हैदूसरी ओर यह हमें सामाजिक और मानसिक रूप से कमजोर बना सकता है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम केवल उत्पादकता की दौड़ में हैंया एक ऐसी कार्य-संस्कृति की तलाश मेंजो हमें इंसान बनाए रखे। तकनीक ने हमें जोड़ालेकिन यह रिश्तों की जगह नहीं ले सकती। हमें यह तय करना होगा कि हमारा भविष्य कैसा हो — एक ऐसी दुनियाजहां स्क्रीन पर टिमटिमाते चेहरे ही हमारा एकमात्र संवाद होंया एक ऐसी व्यवस्थाजहां तकनीक और इंसानियत एक साथ चलें। अगर हम अभी नहीं चेतेतो सुविधा के इस भूलभुलैया में हमारा सामाजिक ताना-बाना कहीं खो जाएगा। और तब हमारे पास न ऑफिस की हलचल होगीन घर की रौनक — केवल एक डिजिटल स्क्रीनजो हमें अगली मीटिंग की याद दिलाएगीऔर फिर खामोश हो जाएगी।

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