फास्ट फूड संस्कृति – स्वाद के पीछे सेहत की बलि

स्वाद के पीछे भागती दुनिया – और गिरती जीवन की नींव

फास्ट फूड संस्कृति – स्वाद के पीछे सेहत की बलि

बाजार की चमक-दमक और स्वाद की चटपटी लहर ने आज के इंसान को इस कदर जकड़ लिया है कि वह न सिर्फ इसके मायाजाल में फँसा हैबल्कि उसे अपनी कैद का अहसास तक भूल चुका है। फास्ट फूडजो कभी ऐशो-आराम का प्रतीक थाअब रोजमर्रा की जिंदगी का दिल और दिमाग बन गया है। चटकीले मसालों की महकरंग-बिरंगे व्यंजनों की सजावटपलक झपकते तैयार होने वाली थालियाँ और चमचमाती पैकेजिंग ने नई पीढ़ी को इस कदर सम्मोहित किया है कि घर का सादापौष्टिक खाना अब उन्हें फीका और बेमजा लगने लगा है। यह सिर्फ स्वाद की सनक नहींबल्कि एक ऐसा सामाजिक भंवर हैजो हमारी सेहतसंस्कृति और संवेदनाओं को लील रहा है।

पिज्जाबर्गरफ्रेंच फ्राइज़मोमोज़ और नूडल्स जैसे व्यंजन आज केवल भोजन नहींबल्कि एक फैशनएक स्टेटस और एक लत बन चुके हैं। स्कूलों के बाहर खड़े ठेलेमॉल में सजे-धजे आउटलेट्स और गली-गली में उभरते फास्ट फूड स्टॉल इस बात की ताकीद करते हैं कि हमारी प्राथमिकताएँ अब पेट की भूख से ज्यादा जीभ के स्वाद को तवज्जो देती हैं। यह लहर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तकहर उम्र को अपने रंग में रंग चुकी है। लेकिन इस रंग की चमक इतनी तेज है कि इसके पीछे छिपा सेहत का अंधेरा हमें दिखाई ही नहीं देता।

फास्ट फूड की चमक-दमक बाहर से जितनी लुभावनी हैभीतर से उतनी ही खतरनाक और विनाशकारी। इसमें इस्तेमाल होने वाला तेलमैदाकृत्रिम फ्लेवरसंरक्षक और रासायनिक रंग केवल स्वाद को बढ़ाते हैंशरीर को नहीं। नियमित सेवन से मोटापाहृदय रोगमधुमेहउच्च रक्तचापपाचन संबंधी समस्याएँ और यहाँ तक कि कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ पनप रही हैं। यह आधुनिक ज़हर चुपके-चुपके हमारे शरीर को खोखला कर रहा हैहमारी ऊर्जा को चूस रहा है और जीवन की गुणवत्ता को नष्ट कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसारअस्वास्थ्यकर आहार वैश्विक स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। फिर भीहम इस स्वाद के जाल में फँसकर अपनी सेहत का सौदा कर रहे हैं।

इस तेज रफ्तार संस्कृति का जहर सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य तक नहीं रुकाइसने हमारी सामाजिक नींवपारिवारिक रिश्तों और सांस्कृतिक धरोहर को भी बुरी तरह छलनी कर दिया है। कभी परिवार एक साथ मेज पर बैठकरगर्मागर्म घर के खाने की खुशबू और हँसी-मजाक के बीच अपनापन बाँटते थे। आज वही लोग मोबाइल स्क्रीन में गुमप्लास्टिक के डिब्बों में बंद फास्ट फूड के साथ अकेलेपन में डूबे नजर आते हैं। इसने न सिर्फ आपसी संवाद को निगल लियाबल्कि रिश्तों की गर्माहट और आत्मीयता को भी ठंडा कर दिया। भोजनजो कभी प्रेमसंस्कृति और एकजुटता का जीवंत प्रतीक थाअब महज एक खानापूर्ति बनकर रह गया है।

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इस ललचाती संस्कृति को हवा देने में विज्ञापनों का जाल बेहद खतरनाक साबित हुआ है। चमचमाते होर्डिंग्ससेलिब्रिटीज की चमकती मुस्कान, “खाओजियोमजे लो जैसे दिलकश नारे और एक खरीदेंएक मुफ्त पाएँ जैसे लुभावने ऑफर हमारी सोच को इस कदर बहकाते हैं कि हम भूल जाते हैं—इस तात्कालिक स्वाद की कीमत हम अपनी सेहतसमय और जेब से चुका रहे हैं। बच्चे तो अब फास्ट फूड ब्रांड्स को देवता सा मानने लगे हैं। एक अध्ययन खुलासा करता है कि फास्ट फूड कंपनियाँ जानबूझकर बच्चों को अपने चटकीले विज्ञापनों का निशाना बनाती हैंजिससे उनकी खानपान की आदतें बचपन से ही बिगड़ रही हैंऔर भविष्य पर खतरे के बादल मँडराने लगे हैं।

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आज की हांफती-भागती जिंदगी में फास्ट फूड समय की बचत का लुभावना शॉर्टकट दिखता है। मगर इस सुविधा की असल कीमत तब सामने आती हैजब हम अस्पतालों की अंतहीन कतारों में खड़ेअपनी बारी का इंतजार करते हैं। जो भोजन हमें चंद मिनटों की राहत देता हैवही भविष्य में डॉक्टरों की चौखट पर घंटों और मोटे मेडिकल बिलों के बोझ तले हमारा समय व जेब दोनों चट कर जाता है। यह ऐसा सौदा हैजिसमें हम हर बार सिर्फ नुकसान उठाते हैं।

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समस्या केवल फास्ट फूड में नहींबल्कि हमारी उस मानसिकता में हैजो स्वाद को सेहत से ऊपर रखती है। हमें यह समझना होगा कि असली स्वाद वही हैजो शरीर को ताकत देमन को सुकून दे और जीवन को लंबा करे। घर का सादा खानामौसमी फल-सब्जियाँदादी-नानी के पारंपरिक व्यंजन और देसी मसालों की महक आज भी सर्वश्रेष्ठ हैं। ये न केवल पौष्टिक हैंबल्कि हमारी संस्कृति और जड़ों से भी जोड़ते हैं। लेकिन विदेशी स्वादों की चमक में हम अपनी इस अनमोल विरासत को भूलते जा रहे हैं।

यदि हम अब भी नींद से नहीं जागेतो हमारी भावी पीढ़ियाँ सिर्फ स्वाद की गुलामी करेंगीसेहत की नहीं। इस दलदल से निकलने की शुरुआत हमें अपने आप से करनी होगी। स्कूलों में पोषण शिक्षा को अनिवार्य बनानामाता-पिता का बच्चों को स्वस्थ खानपान की आदतें सिखानाऔर सरकार का फास्ट फूड विज्ञापनों पर कड़ा शिकंजा कसना—ये कदम इस लड़ाई में निर्णायक हथियार बन सकते हैं। साथ हीहमें अपने घरों में खाना पकाने की कला को फिर से जीवंत करना होगाताकि हमारी मेज पर प्यार और स्वास्थ्य दोनों परोसे जाएँ।

फास्ट फूड का गाहे-बगाहेसोच-समझकर किया गया सेवन शायद नुकसान न करे। मगर जब यह हमारी आदतहमारी लतबल्कि हमारी पहचान बन जाता हैतब यह भोजन नहींबल्कि एक धीमा ज़हर बनकर हमें खोखला करने लगता है। चाहे जिंदगी की रफ्तार कितनी भी तेज क्यों न होसेहत ही वह मजबूत नींव हैजिस पर सुखसमृद्धि और संतुलन का महल खड़ा होता है। स्वाद की क्षणिक लालच में हम अपने भविष्य को दाँव पर नहीं लगा सकते। आइएइस चटकीले मोहजाल से बाहर निकलें और उस स्वाद को गले लगाएँजो न सिर्फ जीभ को सुकून देबल्कि पूरे जीवन को रंगों से भर दे। क्योंकिसेहत से बढ़कर कोई स्वाद नहींऔर जीवन से अनमोल कोई खजाना नहीं।

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