स्वयंभू बाबाओं के भ्रम जाल से बचे समाज
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भारत देवभूमि है, यहां के अधिकांश लोग ईश्वर में विश्वास रख उससे डर कर जीने वाले लोग हैं। भारत भूमि पर समय समय पे महान योगी, साधु, संत, ऋषि, मुनि हुए हैं। जिन्होने अपने आचरण, चरित्र और विचारों से पूरे विश्व को नई दशा और दिशा दी। सनातन समाज में कई ऐसी महान आत्माए हुई हैं जिन्होंने समाज से अलग रहकर धर्म में ज्ञान और दक्षता हासिल की और फिर समाज को अलग दिशा दिखाई है। ये अलग बात है कि उन्होने अलग-अलग वेश-भूषा धारण की और अलग-अलग जीवनशैली अपनाई लेकिन इन सबमें एक बात आम है और वह है वैराग्य और लोक-कल्याण। इनमें से कुछ साधु, कुछ संत, तो कुछ मुनि कुछ ऋषि आदि कहलाते हैं। जो सत्य का आचरण करता है वो संत कहलाता है। संत आत्मज्ञानी होते हैं, आध्यात्मिक होते हैं और इस समाज में रहते हुए लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, जैसे संत कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास इत्यादि।
इनकी जीवनशैली या आचरण एक संन्यासी, साधु, मुनि, ऋषि से बहुत अलग होता है। ये शांत, सहज, सरल और जिज्ञासु होते हैं। ये रचनाएं भी करते हैं, समाज को संदेश भी देते हैं और भजन-कीर्तन भी करते हैं। साधु उन्हें कहा जाता है, जो समाज से थोड़ा हटकर अधिकतर समय साधना में लीन रहते हैं। साधु की वेश-भूषा थोड़ी अलग हो जाती है क्योंकि उन्हें समाज और भौतिक संसार से उतना लेना-देना नहीं होता। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादि से दूर रहता है, उन्हें साधु ही कहा जाता है। इनके लिए वेदों का ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक नहीं है। ये जो कुछ अर्जित करते हैं, वो अपनी साधना से ही करते हैं और एक वैरागी के समान जीवन व्यतीत करते हैं। प्राचीन समय में ऋषि उन ज्ञानियों को कहा जाता था, जिन्होंने वैदिक रचनाओं का निर्माण किया था।
ऋषि कठोर जीवन जीते हैं, कठोर तपस्या करते हैं और संसार के क्रोध, लोभ, मोह, माया, अहंकार, इर्ष्या इत्यादि से कोसों दूर रहते हैं। मुनि की प्रवृत्ति धार्मिक के बजाय आध्यात्मिक होती है। जो ज्ञानी अधिकांश समय मौन धारण करते हैं या बहुत कम बोलते हैं, उन्हें मुनि कहा जाता है। लेकिन मुनियों को वेद एवं ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान होता है। जो ऋषि घोर तपस्या के बाद मौन धारण करने की शपथ लेते हैं, वह भी मुनि कहलाते हैं। महर्षि का अर्थ है सबसे बड़े ऋषि। यह उपाधि ऋषि से ऊपर होती है। यह उन महात्माओं को कहा जाता है, जिन्हें दिव्य चक्षु की प्राप्ति होती है। मनुष्य को तीन प्रकार के चक्षु प्राप्त होते हैं - ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु। जिन्हें ज्ञान चक्षु की प्राप्ति होती है, उन्हें ऋषि कहा जाता है; जो दिव्य चक्षु प्राप्त कर लेते हैं वो महर्षि कहलाते हैं और जो परम चक्षु को जागृत कर लेते हैं उन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है।
अंतिम महर्षि दयानंद सरस्वती हुए थे परन्तु आज के युग में टीवी पर या बड़े- बड़े आयोजन कर कथा सुनाने वाले कथावाचकों को ही लोग साधु-संत, ऋषि- मुनि समझने लगे हैं। लोग पहले इनके अनुयायी बनते हैं और फिर कब उनके भक्त बन जाते है उन्हे भी यह पता नही चलता। लोग उनकी फोटो अपने मन्दिरों में भगवान के बराबर रख पूजने लगते हैं और उन्हें भी भगवान का दर्जा दे देते हैं। इन्ही भक्तो से यह बाबा अपनी मार्किटिंग करवाते हैं और अपने आयोजनों में इकट्ठे होने वाले इन भक्तों से दान-दक्षिणा पाते हैं। यह स्वयंभू संत अपने आयोजनो में भक्तों के दुख एवंम उनकी समस्याओ को दूर करने के और उनके बिगड़े काम बनाने के फॉर्मूले बताने लगते है। सौ लोगों मे से एक-आध का काम स्वयं ही बन जाता है पर नाम बाबा का हो जाता है। जैसे जैसे प्रसिद्धी के साथ-साथ भक्तों की भीड बढ़ती है राजनेताओं को उनमें अपना वोट बैंक दिखने लगता है।
राजनीतिक संरक्षण पा और भक्तो के दान के दम पर इन बाबाओं के भव्य आश्रम बन जाते है। आजकल हाथरस में सत्संग के बाद मची भगदड़ में 120 से अधिक लोगों के मरने के बाद स्वयंभू संत नारायण साकार हरि भोले बाबा जिसका असली नाम सूरजपाल सिंह चर्चाओं में है। हाथरस में 2 जुलाई को एक सत्संग के दौरान मची भगदड़ से में 121 लोगों की मौत हो गई थी और 30 से अधिक घायल हुए थे। सूरजपाल स्वयंभू बाबा बनने से पहले पुलिस की नौकरी करता था। भगवान से साक्षात्कार होने का दावा कर अचानक उसने आध्यात्म की दुनिया में एंट्री ली और उसने अपना नाम सूरजपाल से बदलकर नारायण साकार हरि रख लिया और उसके अनुयायियों ने उसे भोले बाबा बना दिया। बाबा के पास एक-दो नहीं बल्कि 24 आश्रम हैं। उसके चल और अचल संपत्तियों का मूल्य 100 करोड़ से अधिक है।
बाबा 25 से 30 गाड़ियां के काफिले के साथ चलता है। मैनपुरी के बिछुवा गांव में भोले बाबा का 21 बीघा में पसरा आश्रम है। बाबा को यह जमीन मैनपुरी के ही विनोद बाबू आनंद ने दान में दी है। जमीन मिल गई तो इस पर बने आश्रम के लिए बाबा की मार्केटिंग करने वाले भक्तो ने इलाके में से चंदा इकट्ठा किया। इलाके के कई लोगों ने दिल खोलकर चंदा दिया। दस हजार रुपये से लेकर 2.51 लाख तक की धनराशि लोगों ने बाबा को दान स्वरूप भेंट की, चंदा देने वाले ये सभी लोग बाबा के मैनपुरी जिले की सेवादार कमेटी में शामिल हैं। बाबा पर उ.प्र पुलिस नौकरी के दौरान यौन शोषण के भी आरोप लगे जिस कारण से उसे पुलिस बल से बर्खास्त कर दिया गया था। हाल ही के दिनो में देखे तो हर धर्म में इस तरह के बाबाओं की भीड लगी हुई है।
हर बाबा के लाखों अनुयायी है जो अपने बाबा के लिए मरने और मारने के लिए तैयार रहते हैं। सनातन धर्म के पारंपरिक अखाड़े इन स्वयंभू संतो से बचने का अनुरोध लोगों से कई बार कर चुके हैं। हमें और हमारे समाज को एक बात समझनी होगी कि किसी भी समस्या का समाधान इन बाबाओं के बताए टोटको में नही बल्कि हमरी स्वयं की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। ये बाबा तो बस हमारी समस्या का तमाशा बना पैसे ऐंठ सकते है। अब तक हमारे सामने कई नामी बाबाओं के उदाहरण आ चुके है जिन्होने अपने दूषित चरित्र से लाखों लोगो की आस्था को चोट पहुंचाई है। हम सब को यह बात समझनी होगी की इन स्वयंभू बाबाओ के भ्रम जाल में फसने की बजाए अपने अराध्य देवी देवाताओं को आस्था के केन्द्र में रख कर पूजना ही हमारी, हमारे समाज की और हमारे धर्म की उन्नति के लिए उचित एवंम उत्तम पथ है।
(नीरज शर्मा'भरथल')
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