कालनेमि बाबाओं के आगे नतमस्तक सरकार !
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इसे कलियुग का प्रभाव कहा जाए या कालनेमी बाबाओं की लोकलुभावन कला कि लाखों की संख्या में आम लोगों को अपना अनुयायी बनाने उनके परिवारों में भगवान की तरह पूजे जाने और लाखों लोगों को कथित सत्संग में जुटाने की सामर्थ्य को विकसित करने में कामयाब हो जाते हैं। इस बाबागिरी का ऐसा तिलिस्म है कि कई बार भक्तों की संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है और इन पाखंडियो के भ्रमजाल में फंसे लोग इनके एक ईशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। यही वजह है कि सत्संग या मंगल मिलन अथवा पूर्णिमा दर्शन के नाम पर ये बाबा लाखों भक्तों को जुटा कर समाज में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करते हैं एक बार मजुमा लगना शुरू हो जाए फिर तो भीड़ और अधिक लोगों की भीड़ को जुटाने का काम करती है और इनका कारवां बढता चला जाता है और अब बाबा लोग अपने भक्तों को निर्देश जारी कर किसी भी राजनीतिक दल को जिताने या हराने का दावा भी कर रहे हैं
यही वजह है कि यूपी के हाथरस में एक अवकाश प्राप्त सिपाही बाबा बन कर अपना भक्तों का साम्राज्य स्थापित कर लेता है और मंगल मिलन के नाम पर लाखों की संख्या में भक्तों को जुटा लेता है फिर मनमानी धर्म की व्याख्या कर अपने चरणों की रज से तमाम बाधा दूर करने का दावा करता है बाबा तो निकल जाता है लेकिन चरणों की रज लेने के चक्कर में 127 लोगों की मौत हो जाती है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि इस हादसे को लेकर यूपी की योगी सरकार एक बाबा के खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज करने का साहस नहीं जुटा पाती है बल्कि चेले चपाटो के खिलाफ मामला दर्ज करती है। आप को बता दें कि हाथरस हादसे में मृतकों का आंकड़ा 127 पर जा पहुंचा है। ज्ञात रहे कि यह कोई प्राकृतिक विपदा नहीं थी, यह एक कथित बाबा की अंधी भक्ति के कारण हुई दुर्घटना है।
हैरानी की बात देखिए कि हादसे को लगभग 48 घंटे बीत चुके हैं, लेकिन जिस बाबा के कारण वह भीड़ जुटी थी, उस पर एक पुलिस प्राथमिकी तक दर्ज नहीं हुई। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप जरूर शुरू हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार को होती है, उस कार्यक्रम में पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किए गए? अखिलेश परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उनकी भाजपा सरकार पर निशाना साध रहे थे। इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी ने भी कह दिया कि यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि 'सज्जन' का फोटो किसके साथ है। उनका इशारा अखिलेश यादव की ओर था, जिन्होंने पिछले साल न केवल इसी बाबा के कार्यक्रम में भाग लिया था, बल्कि उनकी जय-जयकार करते हुए सोशल मीडिया पर फोटो और वीडियो भी अपलोड किए थे।
भीड़ जुटाने वाले किसी बाबा के प्रति यह प्रेम अनायास नहीं है और न ही इसमें कोई आश्चर्य की बात है। राजनीति में हर उस आदमी को पसंद किया जाता है जो भीड़ जुटाने में सक्षम हो, भले वह कोई धार्मिक गुरु हो, कोई फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री हो या फिर कोई सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर हो क्यों न हो। हाथरस वाला बाबा भी इसका अपवाद नहीं है। इस देश में धर्म कितना बड़ा 'धंधा' हो गया है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचारी और यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों के आरोपी भी जब किसी धर्म का चोला पहन लेते हैं तो वह चोला उनके लिए 'कवच' का काम करने लगता है। हाथरस प्रकरण वाले सूरजपाल सिंह जाटव को ही ले लीजिए।
वह पहले पुलिस में नौकरी करता था, वहां भ्रष्टाचार और यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप लगे तो उन्हें पुलिस विभाग से बर्खास्त कर दिया गया।इसके खिलाफ पांच आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसके बावजूद उसने बाबा का चोला पहना और बन बैठे नारायण साकार हरि। श्रद्धा का बिजनेस चल निकला और उनके कार्यक्रमों में लाखों की भीड़ जुटने लगी। मंगलवार को जो हादसा हुआ, उसमें भी आयोजकों ने 80 हजार लोगों के पहुंचने की उम्मीद जताई थी, जबकि वहां 2 लाख से अधिक लोग पहुंचे। इतनी भीड़ तो अच्छे-भले नेताओं की रैलियों में नहीं जुटती, ऐसे में नेताओं को ऐसे बाबाओं के सामने नतमस्तक होना कोई हैरानी पैदा नहीं करता।
यह बाबा इतना शातिर है कि अपने कार्यक्रमों की वीडियो या फोटो नहीं लेने देता था।इस ने अपनी और अपने पाखंड के किले की सुरक्षा के लिए तीन सैना बना रखी है इनके नाम नारायणी सैना गरूड वाहिनी और हरि वाहिनी हैं। गरूड वाहिनी में सौ ब्लेक केट ड्रैस के पारा मिलट्री जैसे दिखने वाले जवान बाबा को सुरक्षा कवच देते हैं हरी वाहिनी में रिटायर्ड पुलिस के करीब 25 जवान है जो ड्राईवर व अन्य काम देखते हैं जबकि गरूड वाहिनी में करीब पांच हजार स्त्री पुरुष स्वयंसेवकों की भर्ती है पिंक साड़ी पिंक शर्ट व कैप में इनकी ड्यूटी आश्रम कार्यक्रम में लगती है।
यह एकमात्र ऐसा केस नहीं है जिसमें धर्म की आड़ में कोई इतना शक्तिशाली हो गया हो। हरियाणा में भ्रष्टाचार के आरोप में सिंचाई विभाग से बर्खास्त किए गए और जेल भेजे गए जूनियर इंजीनियर रामपाल महाराज का भी मामला ठीक ऐसा ही है। जेल से निकलते ही वह भी बाबा बन गया और प्रवचन देने लगा, प्रवचन क्या आर्य समाज के प्रति जहर उगलने लगा। लोगों की बुद्धि देखिए कि सत्यार्थ प्रकाश जैसा ग्रंथ देने वाले महात्मा को गाली देने वाले के दर्शनों के लिए लाइन लगाने लगे। आर्य समाजियों ने विरोध किया तो दोनों पक्षों में भिड़ंत हो गई और एक युवक की मौत हो गई। सतलोक नामक उसके ठिकाने पर छापा मिला तो बोरियों में सोना- चांदी व अन्य गंभीर आपत्तिजनक सामान बरामद हुआ। अब वह जेल में है।
इसी तरह, डेरा सच्या सौदा का मुखिया गुरमीत राम रहीम एक पत्रकार की हत्या व दो शिष्याओं से बलात्कार के आरोप में कैद काट रहा है। हैरानी देखिए कि जब भी चुनाव आते हैं, उसे फरलो पर जेल से बाहर निकाल दिया जाता है, ताकि वह सत्ताधारी दल के पक्ष में वोट दिला सके। लोकसभा चुनावों से पहले भी हरियाणा की भाजपा सरकार ने ऐसा ही किया। आसाराम जैसे विरले ही मामले होते हैं जिनमें किसी बाबा को सजा होती है, अन्यथा भीड़तंत्र के दम पर वे इतने सशक्त हो जाते हैं कि उन पर कोई हाथ डालने का न मन बनाता है, न हिम्मत दिखाता है। हाथरस प्रकरण में भी केवल आयोजकों या बाबा के सुरक्षाकर्मियों पर कार्रवाई होकर बाबा का बख्श दिया जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी।
जाहिर है कि सरकार चाहे कितनी भी पावरफुल होने का दावा करे लेकिन सरकार बनाने के लिए जो वोटर चाहिए उसका रिमोट कंट्रोल बाबाओं के डेरो और आश्रमों से चल रहा है यही वजह है कि बाबा मनमानी कर रहे हैं यौन शोषण के मामले में बेल पर होकर भी महिलाओं को आशीर्वाद और प्रवचन दीक्षा दे रहे हैं। लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटा कर उनके जीवन से खेल रहे हैं।
127 घरों में पसरे मातम के इकलौता जिम्मेदार होने के बावजूद सरकार उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर पा रही है क्योंकि दलित व पिछड़ी जातियों के लोगों में बाबा का रुतबा है ऐसा रुतबा कि अखिलेश यादव भी उस के समारोह में मंच पर जयकारे लगा चुके हैं ऐसे हालात में बाबा को गिरफ्तार करने से पूर्व पहले से नाराज वोटर और अधिक बिगड़ गए तो क्या होगा? यह भय सरकार पर हावी है। राजनीतिक नफा नुकसान का तोल जोख किए बिना यूपी सरकार पहले बहुत खमियाजा भुगत चुकी है एक पुलिस टीम को मार गिराने वाले माफिया अपराधी का एनकाउंटर कराने पर उस की जाति के काफी वोटर खिलाफ हो गए थे अब जिस के पीछे लाखों की संख्या में भीड़ और कई लाख परिवार अनुयायी हैं उस पर हाथ कौन डाले?
मनोज कुमार अग्रवाल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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